Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Question Answer in Hindi

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 9: खाद्य उत्पादन में वृद्धि के लिए रणनीतियाँ के लिए हिंदी में विस्तृत प्रश्न-उत्तर चर्चाओं का अन्वेषण करें। अपनी शंकाओं को स्पष्ट करें और अपनी समझ को प्रभावी ढंग से सुधारें।

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Question Answer in Hindi

अभ्यास (पृष्ठ संख्या 195-196)

प्रश्न 1 मानव कल्याण में पशुपालन की भूमिका की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।

उत्तर-

  • पशुपालन, पशुधन के वैज्ञानिक प्रबंधन से संबंधित है जिसमें पशुधन की जनसंख्या में वृद्धि के लिए उनके भोजन, प्रजनन तथा रोगों के नियंत्रण जैसे विभिन्न पहलुओं को शामिल किया जाता है।
  • इसका संबंध पशुधन जैसे- भैंस, गाय, सूअर, घोड़ा, भेंड़, ऊँट, बकरी आदि के प्रजनन तथा उनकी देखभाल से होता है जो मानव के लिए लाभप्रद है।
  • इन पशुओं का उपयोग व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण उत्पादों जैसे- दूध, मांस, ऊन, अंडे, रेशम, शहद आदि के उत्पादन के लिए किया जाता है।
  • मानव आबादी में वृद्धि के कारण पशुधन उत्पादों के माँग में वृद्धि होती है। इसलिए पशुधन के प्रबंधन में सुधार करना आवश्यक है।

प्रश्न 2 यदि आपके परिवार के पास एक डेरी फार्म है, तब आप दुग्ध उत्पादन में उसकी गुणवत्ता तथा मात्रा में सुधार लाने के लिए कौन-कौन से उपाय करेंगे?

उत्तर- डेरी फार्म प्रबन्धन से दुग्ध की गुणवत्ता में सुधार तथा उसका उत्पादन बढ़ता है। मूल रूप से डेरी फार्म में रहने वाले पशुओं की नस्ल की गुणवत्ता पर ही दुग्ध उत्पादन निर्भर करता है। क्षेत्र की जलवायु एवं परिस्थितियों के अनुरूप उच्च उत्पादन एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली नस्लों को अच्छी नस्ल माना जाता है। उच्च उत्पादन क्षमता प्राप्त करने के लिए पशुओं की अच्छी देखभाल, जिसमें उनके रहने के लिए अच्छा आवास तथा पर्याप्त स्वच्छ जल एवं रोगमुक्त वातावरण होना आवश्यक है। पशुओं को भोजन देते समय चारे की गुणवत्ता तथा मात्रा पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त दुग्धीकरण तथा दुग्ध उत्पादों के भण्डारण और परिवहन के दौरान स्वच्छता तथा पशुओं का कार्य करने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य का महत्त्व सर्वोपरि है। पशु चिकित्सक का नियमित जाँच हेतु आना अनिवार्य है। इन सभी कठोर उपायों को सुनिश्चित करने के लिए सही-सही रिकॉर्ड रखने एवं समय-समय पर निरीक्षण की आवश्यकता होती है। इससे समस्याओं की पहचान और उनका समाधान शीघ्रतापूर्वक निकालना सम्भव हो जाता है।

प्रश्न 3 नस्ल शब्द से आप क्या समझते हैं? पशु प्रजनन के क्या उद्देश्य हैं?

उत्तर- पशुओं का वह समूह जो वंश तथा सामान्य लक्षणों जैसे, सामान्य दिखावट, आकृति, आकार, संरूपण आदि में समान हों, एक नस्ल के कहलाते हैं।

उदाहरण- जर्सी तथा ब्राउन स्विस पशुओं के विदेशी नस्ल हैं| पशुओं की इन दो किस्मों में प्रचुर मात्रा में दुग्ध उत्पादन की क्षमता होती है, जिसमें उच्च प्रोटीन अंश होने के कारण पौष्टिक होता है।

पशु प्रजनन के उद्देश्य-

  • पशु उत्पादन के वांछनीय गुणवत्ता में सुधार करने के लिए।
  • पशुओं के उत्पादन में वृद्धि के लिए।
  • पशुओं के रोग प्रतिरोधी किस्मों का उत्पादन करने के लिए।

प्रश्न 4 पशु प्रजनन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विधियों के नाम बताएँ। आपके अनुसार कौन सी विधि सर्वोत्तम है? क्यों?

उत्तर-

  1. अन्तःप्रजनन (Inbreeding)- एक ही नस्ल के पशुओं के मध्य जब प्रजनन होता है तो वह अन्तःप्रजनन कहलाता है। इस विधि में एक नस्ल से उत्तम किस्म का नर तथा उत्तम किस्म की मादा को पहले अभिनिर्धारित किया जाता है तथा जोड़ों में उनका संगम कराया जाता है। ऐसे संगम से जो संतति उत्पन्न होती है, उस संतति का मूल्यांकन किया जाता है तथा भविष्य में कराए जाने वाले संगम के लिए अत्यन्त उत्तम किस्म के नर तथा मादा की पहचान की जाती है। इससे सामान्यत: जनन क्षमता तथा उत्पादन दोनों को बनाए रखने में सहायता मिलती है।
  2. बहिःप्रजनन (Out breeding)- इसमें एक ही नस्ल की या भिन्न-भिन्न नस्लों या भिन्न प्रजातियों के सदस्य भाग लेते हैं। यह निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है –
  • बहिःसंकरण (Out-crossing)- इसमें एक ही नस्ल के ऐसे पशुओं का चयन किया जाता है जो 4-6 पीढ़ियों तक किसी भी वंशावली में संयुक्त (उभय) पूर्वज नहीं होते। इससे अन्तः प्रजनन अवसादन या अवर्नमन (depression) समाप्त हो जाता है। इस संगम के फलस्वरूप प्राप्त संतति बहिःसंकर (out-cross) कहलाती है।
  • संकरण (Hybridization)- संकरण किसी जीव की ऐच्छिक विशिष्टताओं के संरक्षण एवं प्रसार की महत्त्वपूर्ण युक्ति है। जन्तु संकरण द्वारा मानवोपयोगी पशु-पक्षियों की नस्ल सुधारकर अधिकाधिक लाभ प्राप्त किया जाता है। संकरण दो विभिन्न नस्लों के वांछनीय गुणों के संयोजन में सहायक होता है। इससे नई नस्ल जो वर्तमान नस्लों से श्रेष्ठ होती हैं, प्राप्त की जाती हैं जैसे-हिसरडेल (Hisardale) नस्ल की भेड़ का विकास बीकानेरी भेड़ (ewes) तथा मैरीनो रेम्स (मेढ़ा-rams) से किया गया है।
  • अन्त:विशिष्ट संकरण (Interspecific hybridization)- जब विभिन्न प्रजातियों के नर तथा मादा पशुओं के मध्य संकरण कराया जाता है तो इसे अन्त:विशिष्ट संकरण (interspecific hybridization) कहते हैं। उदाहरण के लिए-गधा तथा घोड़ा अलग-अलग जाति के पशु हैं, किन्तु इन पशुओं के आपस में संकरण द्वारा खच्चर उत्पन्न कराया जाता है। खच्चर गधे एवं घोड़े से अधिक शक्तिशाली होता है।

कृत्रिम निषेचन (Artificial Insemination)- इस विधि में वांछित गुणों वाले नर पशुओं के वीर्य को वीर्य बैंकों में सुरक्षित रखते हैं तथा आवश्यकतानुसार इच्छित मादा पशु के गर्भाशय में एक विशेष पिचकारी द्वारा वीर्य को पहुँचा दिया जाता है।

भारत में संकरण विधि द्वारा जन्तुओं की नस्ल सुधार हेतु अनेक शासकीय एवं अशासकीय अनुसन्धान संस्थान आई०सी०ए०आर० (ICAR-Indian Council of Agriculture Research) के अधीन कार्यरत हैं। इन संस्थानों में कार्यरत वैज्ञानिकों के शोध एवं प्रयासों द्वारा गाय, भैंस, भेड़, बकरी, घोड़ा, ऊँट, कुक्कुट, मछली आदि जन्तुओं की नस्ल एवं उपयोगिता में गुणात्मक सुधार हुआ है। फलतः अनेक जन्तु उत्पादों में विश्व में भारत को अग्रणी स्थान प्राप्त है। कृत्रिम वीर्य-सेचन सबसे अच्छी (सर्वोत्तम) पशु प्रजनन विधि है। इससे अल्प समय में उच्च गुणवत्ता वाले पशुओं को सफलतापूर्वक जनित किया जाता है।

प्रश्न 5 मौन (मधुमक्खी) पालन से आप क्या समझते हैं? हमारे जीवन में इसका क्या महत्त्व है?

उत्तर- शहद के उत्पादन के लिए मधुमक्खियों के छत्तों का रखरखाव ही मधुमक्खी पालन कहलाता है।

हमारे जीवन में इसका बहुत ही महत्त्व है-

  • शहद उच्च पोषक तत्त्व का एक आहार है तथा औषधियों की देशी प्रणाली में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
  • यह सर्दी, फ्लू और पेचिश जैसे कई रोगों के उपचार में उपयोगी है।
  • मधुमक्खियाँ मोम भी पैदा करती हैं जिसका कांतिवर्द्धक वस्तुओं की तैयारी तथा विभिन्न प्रकार के पालिश वाले उद्योगों में प्रयोग किया जाता है।
  • शहद की बढ़ती हुई माँग ने मधुमक्खियों को बड़े पैमाने पर पालने के लिए बाध्य किया है। यह उद्योग चाहे लघु अथवा वृहत् पैमाने का ही क्यों न हों, एक आय जनक व्यवसाय बन चुका है।

प्रश्न 6 खाद्य उत्पादन को बढ़ाने में मत्स्यकी की भूमिका की विवेचना कीजिए।

उत्तर- मत्स्यकी की भूमिका (Role of Fishery)- मत्स्यपालन के अन्तर्गत मछली पालने के तरीकों एवं इनके रख-रखाव और उपयोग के बारे में अध्ययन किया जाता है। मछलियों से मांस (प्रोटीन का स्रोत), तेल इत्यादि प्राप्त होता है। मत्स्यकी एक प्रकार का उद्योग है, जिसका सम्बन्ध मछली अथवा अन्य जलीय जीव को पकड़ना, उनका प्रसंस्करण (processing) तथा उन्हें बेचने से होता है। हमारी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग आहार के रूप में मछली, मछली उत्पादों तथा अन्य जलीय जन्तुओं पर आश्रित है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्यकी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह समुद्र तटीय राज्यों में अनेक लोगों को आय तथा रोजगार प्रदान करती है। बहुत-से लोगों के लिए यह जीविका का एकमात्र साधन है। मत्स्यकी की बढ़ती हुई माँग को देखते हुए इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीकें अपनाई जा रही हैं। नीली क्रान्ति (Blue Revolution) मछली उत्पादन से जुड़ी है। इसके अन्तर्गत अलवणीय तथा लवणीय जलीय प्राणियों के उत्पादन में-द्धि की जाती है।

मछली उत्तम प्रोटीन का खाद्य संसाधन है। मछलियों की अलवणीय नस्लों कतला, रोहू, मृगल, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प आदि प्रमुख हैं। कतला मछलियों की वृद्धि सबसे तेज होती है। समुद्री मछलियों के अतिरिक्त झींगा (prawn), केकड़ा (crabs), लॉबस्टर (lobster), ऑयस्टर (oyester) आदि प्रमुख समुद्री खाद्य संसाधन हैं।

प्रश्न 7 पादप प्रजनन में भाग लेने वाले विभिन्न चरणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर- पादप प्रजनन पादप प्रजातियों का एक उद्देश्यपूर्ण परिचालन है, ताकि वांछित पादप किस्में तैयार हो सकें| यह किस्में खेती के लिए अधिक उपयोगी, अच्छा उत्पादन करने वाली एवं रोग प्रतिरोधी होती हैं।

पादप प्रजनन में भाग लेने वाले विभिन्न चरण निम्नलिखित हैं-

  1. परिवर्तनशीलता का संग्रहण- आनुवांशिक परिवर्तनशीलता किसी भी प्रजनन कार्यक्रम का मूलाधार है। बहुत सी शस्यों (फसलों) में पूर्ववर्ती आनुवांशिक परिवर्तनशीलता उन्हें अपनी जंगली प्रजातियों से प्राप्त होती है| किसी फसल में पाए जाने वाले सभी जीनों के विविध अलील का समस्त संग्रहण (पादप/ बीजों) को उसका जननद्रव्य संग्रहण कहते हैं।
  2. जनकों का मूल्यांकन तथा चयन- जननद्रव्य मूल्यांकित किए जाते हैं, ताकि पादपों को उनके लक्षणों के वांछनीय संयोजनों के साथ अभिनिर्धारित किया जा सके। चयनित पादपों को बहुगुणित कर उनका प्रयोग संकरण की प्रक्रिया में किया जाता है।
  3. चयनित जनकों के बीच पर संकरण- वांछित लक्षणों को बहुधा दो भिन्न पादपों (जनकों) से प्राप्त कर संयोजित किया जाता है। यह परसंकरण द्वारा संभव है कि दो जनक ऐसे संकर पैदा करें, जिससे आनुवांशिक वांछित लक्षणों का संगम एक पौधों में हो सके। वांछित पौधे का परागकण का संग्रहण जिसे नर जनक के रूप में चुना गया है तथा उसे मादा पौधे के वर्तिकाग्र पर डालना जिसे मादा जनक के रूप में चुना गया है।
  4. श्रेष्ठ पुनर्योगज का चयन तथा परीक्षण- इसके अंतर्गत संकरों की संतति के बीच से पादप का चयन किया जाता है जिनमें वांछित लक्षण संयोजित हो। इसमें संतति के वैज्ञानिक मूल्यांकन की आवश्यकता होती है। ये कई पीढ़ियों तक स्वपरागण तब तक करते हैं जब तक कि समरूपता की अवस्था नहीं आ जाती (समयुग्मजता)।
  5. नए कंषणों का परीक्षण, निर्मुक्त होना तथा व्यापारीकरण- नव चयनित वंशक्रम का उनके उत्पादन तथा अन्य गुणवत्ता वाली शस्य विशेषकों, रोगप्रतिरोधकता आदि गुणों के आधार पर मूल्यांकित किया जाता है। अनुसंधानिक खेत में मूल्यांकन के बाद पौधों का परीक्षण देश भर में किसानों के खेत में कई स्थानों पर, कम से कम तीन ऋतुओं तक किया जाता है। उपरोक्त विधि से उत्पन्न शस्य की तुलना सर्वोत्तम उपलब्ध स्थानीय शस्य कंषण से करने के बाद मूल्यांकित करना चाहिए।

प्रश्न 8 जैव प्रबलीकरण का क्या अर्थ है? व्याख्या कीजिए।

उत्तर- जैव प्रबलीकरण (Biofortification)- उन्नत खाद्य गुणवत्ता रखने वाली फसलों में पादप प्रजनन को जैव प्रबलीकरण कहते हैं। जैव प्रबलीकरण द्वारा प्राप्त उच्च विटामिन, खनिज, प्रोटीन तथा स्वास्थ्यवर्द्धक वसा वाली प्रजनित फसलें जनस्वास्थ्य को सुधारने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक माध्यम होती हैं। उन्नत पोषक गुणवत्ता के लिए निम्नलिखित को सुधारने के उद्देश्य से प्रजनन किया जाता है-

  • प्रोटीन की मात्रा तथा गुणवत्ता,
  • तेल की मात्रा तथा गुणवत्ता,
  • विटामिन की मात्रा,
  • सूक्ष्मपोषक तथा खनिज की मात्रा।

जैव प्रबलीकरण के द्वारा ही मक्का, गेहूँ तथा धान की उच्च गुणवत्ता वाली किस्में विकसित की गई हैं। सन् 2000 में विकसित की गई मक्का में ऐमीनो एसिड, लाइसीन तथा ट्रिप्टोफैन की दुगुनी मात्रा विकसित की गई। गेहूं की किस्म (एटलस 66 कृष्य) जिसमें उच्च प्रोटीन मात्रा है, विकसित की गई हैं। धान की उच्च लौह तत्त्व वाली किस्म विकसित की गई, इसमें सामान्यत: प्रयोग में लाई गई किस्मों की तुलना में लौह तत्त्व की मात्रा पाँच गुना अधिक है। भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली ने प्रचुर मात्रा में विटामिन तथा खनिज वाली सब्जियों की फसलें विकसित की हैं।

प्रश्न 9 विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप को कौन-सा भाग सबसे अधिक उपयुक्त है। तथा क्यों?

उत्तर- विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप का विभज्योतक (शीर्ष तथा कक्षीय) सबसे अधिक उपयुक्त है। रोग ग्रसित पादपों में पौधों के अन्य भागों की तुलना में यह भाग विषाणु से अप्रभावित रहता है। इसलिए वैज्ञानिक रोग ग्रसित पादपों के विभज्योतक (मेरेस्टेम) को अलग कर उसे विट्रो में उगाते हैं ताकि विषाणु मुक्त पादप तैयार हो सकें। उन्हें केला, गन्ना, आलू आदि संवर्धित विभज्योतक तैयार करने में काफी सफलता मिली है।

प्रश्न 10 सूक्ष्मप्रवर्धन द्वारा पादपों के उत्पादन के मुख्य लाभ क्या हैं?

उत्तर- सूक्ष्मप्रवर्धन (Micropropagation)- ऊतक संवर्धन द्वारा हजारों की संख्या में पादपों को उत्पन्न करने की विधि सूक्ष्मप्रवर्धन कहलाती है। इनमें प्रत्येक पादप आनुवंशिक रूप से मूल पादप के समान होते हैं जिससे वे तैयार किए जाते हैं। ये सोमाक्लोन (somaclones) कहलाते हैं। अधिकांश महत्त्वपूर्ण खाद्य पादपों जैसे-टमाटर, केला, सेब आदि का बड़े पैमाने पर उत्पादन इस विधि द्वारा किया गया है।

इस विधि द्वारा अत्यन्त ही अल्प अवधि में हजारों पादप तैयार किए जा सकते हैं। इस विधि का अन्य महत्त्वपूर्ण उपयोग रोगग्रसित पादपों से स्वस्थ पादपों को प्राप्त करना है। यद्यपि पादप विषाणु से संक्रमित है, परन्तु विभज्योतक (शीर्ष तथा कक्षीय) विषाणु से अप्रभावित रहती है। अत: विभज्योतक (मेरिस्टेम) को अलग करके उन्हें विट्रो संवर्धन में उगाया जाता है, ताकि विषाणु मुक्त पादप तैयार हो सकें। वैज्ञानिकों को केला, गन्ना, आलू आदि संवर्धित विभज्योतक तैयार करने में काफी सफलता मिली है।

वैज्ञानिकों ने पादपों से एकल कोशिकाएँ अलग की हैं तथा उनकी कोशिकाभित्ति का पाचन हो जाने से प्लाज्मा झिल्ली द्वारा घिरा नग्न प्रोटोप्लास्ट पृथक् किया जा सका है। प्रत्येक किस्म में वांछनीय लक्षण विद्यमान होते हैं। पादपों की दो विभिन्न किस्मों से अलग किया गया प्रोटोप्लास्ट युग्मित होकर संकर प्रोटोप्लास्ट उत्पन्न करता है जो आगे चलकर नए पादप को जन्म देता है। यह संकर कायिक संकर (somatic hybrid) कहलाता है तथा यह प्रक्रम कायिक संकरण (somatic hybridization) कहलाता है।

प्रश्न 11 पत्ती में कर्तातक पादप के प्रवर्धन में जिस माध्यम का प्रयोग किया जाता है, उसके विभिन्न घटकों का पता लगाओ।

उत्तर- पत्ती में कर्तोतक पादप के प्रवर्धन में जिस माध्यम का प्रयोग किया गया है। उसके विभिन्न घटकों में कार्बन स्रोत जैसे स्युक्रोज तथा अकार्बनिक लवण, विटामिन, अमीनो अम्ल तथा वृद्धि नियंत्रक जैसे ऑक्सिन, सायटोकाइनिन आते हैं।

प्रश्न 12 शस्य पादपों के किन्हीं पाँच संकर किस्मों के नाम बताएँ, जिनका विकास भारतवर्ष में हुआ है।

उत्तर-

  1. शर्बती सोनोरा (गेहूं की किस्म)
  2. गंगा 5 (मक्का की किस्म)
  3. साबरमती BC-S/ 55 (धान की किस्म)
  4. पूसा-240 (चने की किस्म)
  5. पूसा बोतड (सरसों की किस्म)

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