Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 9 के लिए व्यापक हिंदी नोट्स एक्सेस करें: खाद्य उत्पादन में वृद्धि के लिए रणनीतियाँ। सरलीकृत स्पष्टीकरण और प्रमुख अवधारणाओं को शामिल किया गया।

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

पशुपालन: पशुपालन कृषि विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं के विभिन्न पक्षों जैसे भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि का अध्ययन किया जाता है। पशुपालन का पठन-पाठन विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों में एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में किया जा रहा है।जिनसेन मठ कोल्हापुर का प्रधान जैन मठ है यहाँ के स्वामी भट्टारक लक्ष्मीसेन है जो भारत के सबसे बड़े भट्टारक है कोल्हापुर क्षेत्र के सभी जैन (ब्राह्मण,वैश्य,क्षत्रिय,शूद्र) इनकी आज्ञा का पालन करते है

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं पशुपालन का विशेष महत्व है। सकल घरेलू कृषि उत्पाद में पशुपालन का 28-30 प्रतिशत का योगदान सराहनीय है जिसमें दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसका योगदान सर्वाधिक है। भारत में विश्व की कुल संख्या का 15 प्रतिशत गायें एवं 55 प्रतिशत भेड़ है और देश के कुल दुग्ध उत्पादन का 53 प्रतिशत भैंसों व 43 प्रतिशत गायों और 3 प्रतिशत बकरियों से प्राप्त होता है। भारत लगभग 121.8 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन करके विश्व में प्रथम स्थान पर है जो कि एक मिसाल है और उत्तर प्रदेश इसमें अग्रणी है। यह उपलब्धि पशुपालन से जुड़े विभिन्न पहलुओं ; जैसे- मवेशियों की नस्ल, पालन-पोषण, स्वास्थ्य एवं आवास प्रबंधन इत्यादि में किए गये अनुसंधान एवं उसके प्रचार-प्रसार का परिणाम है। लेकिन आज भी कुछ अन्य देशों की तुलना में हमारे पशुओं का दुग्ध उत्पादन अत्यन्त कम है और इस दिशा में सुधार की बहुत संभावनायें है।

छोटे, भूमिहीन तथा सीमान्त किसान जिनके पास फसल उगाने एवं बड़े पशु पालने के अवसर सीमित है, छोटे पशुओं जैसे भेड़-बकरियाँ, सूकर एवं मुर्गीपालन रोजी-रोटी का साधन व गरीबी से निपटने का आधार है। विश्व में हमारा स्थान बकरियों की संख्या में दूसरा, भेड़ों की संख्या में तीसरा एवं कुक्कुट संख्या में सातवाँ है। कम खर्चे में, कम स्थान एवं कम मेहनत से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए छोटे पशुओं का अहम योगदान है। अगर इनसे सम्बंधित उपलब्ध नवीनतम तकनीकियों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाय तो निःसंदेह ये छोटे पशु गरीबों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi
Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi
Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है। छोटे व सीमांत किसानों के पास कुल कृषि भूमि की 30 प्रतिशत जोत है। इसमें 70 प्रतिशत कृषक पशुपालन व्यवसाय से जुड़े है जिनके पास कुल पशुधन का 80 प्रतिशत भाग मौजूद है। स्पष्ट है कि देश का अधिकांश पशुधन, आर्थिक रूप से निर्बल वर्ग के पास है। भारत में लगभग 19.91 करोड़ गाय, 10.53 करोड़ भैंस, 14.55 करोड़ बकरी, 7.61 करोड़ भेड़, 1.11 करोड़ सूकर तथा 68.88 करोड़ मुर्गी का पालन किया जा रहा है। भारत 121.8 मिलियन टन दुग्धउत्पादन के साथ विश्व में प्रथम, अण्डा उत्पादन में 53200 करोड़ के साथ विश्व में तृतीय तथा मांस उत्पादन में सातवें स्थान पर है। यही कारण है कि कृषि क्षेत्र में जहाँ हम मात्र 1-2 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त कर रहे हैं वहीं पशुपालन से 4-5 प्रतिशत। इस तरह पशुपालन व्यवसाय में ग्रामीणों को रोजगार प्रदान करने तथा उनके सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने की अपार सम्भावनायें हैं।

पशु प्रजनन

वैज्ञानिक तरीके से पशुओं की आनुवंशिक क्षमता में सुधार करके गायों और भैंसों की उत्पादकता में लगातार वृद्धि हासिल की जा सकती है । एनडीडीबी ने निम्नलिखित विकसित किया है:

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi
Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

(i) आनुवंशिक मूल्यांकन और श्रेष्ठ आनुवंशिक गुण (एचजीएम) वाले सांड़ों के उत्पादन के लिए बुनियादी ढांचा विकसित किया गया जिसके अंतर्गत आनुवंशिक सुधार कार्यक्रमों जैसे संतान परीक्षण, वंशावली चयन, सीब चयन (ओपन न्यूक्लियस ब्रीडिंग सिस्टम), जीनोमिक चयन परियोजना चल रहा है;

(ii) आनुवंशिक सुधार कार्यक्रमों के माध्यम से उत्पादित सांड़ों से रोग मुक्त श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले वीर्य डोज के उत्पादन के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण;

(iii) सांड़ उत्पादन, वीर्य उत्पादन और कृत्रिम गर्भाधान वितरण के लिए विनियमन की प्रणालियां स्थापित करना, और

(iv) सभी घटनाओं के आंकड़ों को रिकॉर्डिंग करने के लिए बुनियादी ढांचा और सभी हितधारकों को निगरानी रखने, निर्णय लेने और योजना बनाने के लिए समय पर जानकारी उपलब्ध कराना।

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

आनुवंशिक सुधार में सफलता के मुख्य घटक

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

मधुमक्खी पालन

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

मधु, परागकण आदि की प्राप्ति के लिए मधुमक्खियाँ पाली जातीं हैं। यह एक कृषि उद्योग है। मधुमक्खियां फूलों के रस को शहद में बदल देती हैं और उन्हें छत्तों में जमा करती हैं। जंगलों से मधु एकत्र करने की परंपरा लंबे समय से लुप्त हो रही है। बाजार में शहद और इसके उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण मधुमक्खी पालन अब एक लाभदायक और आकर्षक उद्यम के रूप में 

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

स्थापित हो चला है। मधुमक्खी पालन के उत्पाद के रूप में शहद और मोम आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

मधुमक्खी पालन के लाभ

  • पुष्परस व पराग का सदुपयोग, आय व स्वरोजगार का सृजन |
  • शुद्धध मधु, रायल जेली उत्पादन, मोम उत्पादन, पराग, मौनी विष आदि |
  • ३ बगैर अतिरिक्त खाद, बीज, सिंचाई एवं शस्य प्रबन्ध के मात्र मधुमक्खी के मौन वंश को फसलों के खेतों व मेड़ों पर रखने से कामेरी मधुमक्खी की परागण प्रकिया से फसल, सब्जी एवं फलोद्यान में सवा से डेढ़ गुना उपज में बढ़ोत्तरी होती है |
Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi
  • मधुमक्खी उत्पाद जैसे मधु, रायलजेली व पराग के सेवन से मानव स्वस्थ एवं निरोगित होता है | मधु का नियमित सेवन करने से तपेदिक, अस्थमा, कब्जियत, खून की कमी, रक्तचाप की बीमारी नहीं होती है | रायल जेली का सेवन करने से ट्यूमर नहीं होता है और स्मरण शक्ति व आयु में वृद्धि होती है | मधु मिश्रित पराग का सेवन करने से प्रास्ट्रेटाइटिस की बीमारी नहीं होती है | मौनी विष से गठिया, बताश व कैंसर की दवायें बनायी जाती हैं | बी- थिरैपी से असाध्य रोगों का निदान किया जाता है |
  • मधुमक्खी पालन में कम समय, कम लागत और कम ढांचागत पूंजी निवेश की जरूरत होती है,
Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi
  • कम उपजवाले खेत से भी शहद और मधुमक्खी के मोम का उत्पादन किया जा सकता है,
  • मधुमक्खियां खेती के किसी अन्य उद्यम से कोई ढांचागत प्रतिस्पर्द्धा नहीं करती हैं,
  • मधुमक्खी पालन का पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मधुमक्खियां कई फूलवाले पौधों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस तरह वे सूर्यमुखी और विभिन्न फलों की उत्पादन मात्रा बढ़ाने में सहायक होती हैं,
  • शहद एक स्वादिष्ट और पोषक खाद्य पदार्थ है। शहद एकत्र करने के पारंपरिक तरीके में मधुमक्खियों के जंगली छत्ते नष्ट कर दिये जाते हैं। इसे मधुमक्खियों को बक्सों में रख कर और घर में शहद उत्पादन कर रोका जा सकता है,
  • मधुमक्खी पालन किसी एक व्यक्ति या समूह द्वारा शुरू किया जा सकता है,
  • बाजार में शहद और मोम की भारी मांग है।

मत्स्यपालन

मछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित जलिय जीव है तथा जलचर पर्यावरण को संतुलित रखने में इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कथन अपने में पर्याप्त बल रखता है जिस पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं है। वैज्ञानिकों द्वारा 

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

मछली को जीवन सूचक (बायोइंडीकेटर) माना गया है। विभिन्न जलस्रोतों में चाहे तीव्र अथवा मन्द गति से प्रवाहित होने वाली नदियां हो, चाहे प्राकृतिक झीलें, तालाब अथवा मानव-निर्मित बड़े या मध्यम आकार के जलाशय, सभी के पर्यावरण का यदि सूक्ष्म अध्ययन किया जाय तो निष्कर्ष निकलता है कि पानी और मछली दोनों एक दूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की विशेष उपयोगिता है।

महत्व

शरीर के पोषण तथा निर्माण में संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। संतुलित आहार की पूर्ति विभिन्न खाद्य पदार्थों को उचित मात्रा में मिलाकर की जा सकती है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज लवण आदि की आवश्यकता होती है जो विभिन्न भोज्य पदार्थों में भिन्न-भिन्न अनुपातों में पाये जाते हैं। स्वस्थ शरीर के निर्माण हेतु प्रोटीन की अधिक मात्रा होनी चाहिए क्योंकि यह मांसपेशियों, तंतुओं आदि की संरचना करती है। विटामिन, खनिज, लवण आदि शरीर की मुख्य क्रियाओं को संतुलित करते हैं। मछली, मांस, अण्डे, दूध, दालों आदि का उपयोग संतुलित आहार में प्रमुख रूप से किया जा सकता है। मछलियों में लगभग 70 से 80 प्रतिशत पानी, 13 से 22 प्रतिशत प्रोटीन, 1 से 3.5 प्रतिशत खनिज पदार्थ एवं 0.5 से 20 प्रतिशत चर्बी पायी जाती है। कैल्शियम, पोटैशियम, फास्फोरस, लोहा, सल्फर, मैग्नीशियम, तांबा, जस्ता, मैग्नीज, आयोडीन आदि खनिज पदार्थ मछलियों में उपलब्ध होते हैं जिनके फलस्वरूप मछली का आहार काफी पौष्टिक माना गया है। इनके अतिरिक्त राइबोफ्लोविन, नियासिन, पेन्टोथेनिक एसिड, बायोटीन, थाइमिन, विटामिन बी12, बी 6 आदि भी पाये जाते हैं जोकि स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी होते हैं। विश्व के सभी देशों में मछली के विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर उपयोग में लाये जाते हैं। मछली के मांस की उपयोगिता सर्वत्र देखी जा सकती है। मीठे पानी की मछली में वसा बहुत कम पायी जाती है व इसमें शीघ्र पचने वाला प्रोटीन होता है। सम्पूर्ण विश्व में लगभग 20,000 प्रजातियां व भारत वर्ष में 2200 प्रजातियां पाये जाने की जानकारी हैं। गंगा नदी प्रणाली जो कि भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है, में लगभग 375 मत्स्य प्रजातियां उपलब्ध हैं।[तथ्य वांछित] वैज्ञानिकों द्वारा उत्तर प्रदेश व बिहार में 111 मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता बतायी गयी है।

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

पादप प्रजनन

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

पादप प्रजनन (Plant Breeding) से आशय किसी पादप की एक नयी प्रजाति तैयार करना जो वांछित गुणों से युक्त हो। यह एक विज्ञान है। इसका अब पर्याप्त विकास हुआ है।

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

मेंडेल (1865 ई.) की खोजों से पहले भी यह मिस्र देश में अच्छे प्रकार से ज्ञात था। बहुत समय पहले जब इस विषय का वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं हुआ था तब भी अच्छे प्रकार के फूलों और फलों के उत्पादन के लिये बाग बगीचों में यह कार्य संपन्न किया जाता था। इस विषय पर सबसे पुराना साहित्य चीन की एनसाइक्लोपीडिया में मिलता है। अच्छे फूलों और फलों के लिये ऐसे पेड़ों का चुनाव किया जाता था जो अच्छे फूल और फल दे सकते थे। कुछ लोगों का कथन है कि यह कार्य प्राचीन काल में चीन और इटली में गुलाब तथा अच्छी जाति के अन्य पौधों के लिये किया जाता था। डार्विन के मतानुसार हॉलैंड के पुष्पप्रेमियों के द्वारा भी ऐसी ही क्रिया की जाती थी।

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi
Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi
Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

ऊतक संवर्धन

ऊतक संवर्धन (टिशू कल्चर) वह क्रिया है जिससे विविध शारीरिक ऊतक अथवा कोशिकाएँ किसी बाह्य माध्यम में उपयुक्त परिस्थितियों के विद्यमान रहने पर पोषित की जा सकती हैं। यह भली भाँति ज्ञात है कि शरीर की विविध प्रकार की कोशिकाओं में विविध उत्तेजनाओं के अनुसार उगने और अपने समान अन्य कोशिकाओं को उत्पन्न करने की शक्ति होती है। यह भी ज्ञात है कि जीवों में एक आंतरिक परिस्थिति भी होती है। (जिसे क्लाउड बर्नार्ड की मीलू अभ्यंतर कहते हैं) जो सजीव ऊतक की क्रियाशीलता को नियंत्रित रखने में बाह्य परिस्थितियों की अपेक्षा अधिक महत्व की है। ऊतक-संवर्धन-प्रविधि का विकास इस मौलिक उद्देश्य से हुआ कि कोशिकाओं के कार्यकारी गुणों के अध्ययन की चेष्टा की जाए और यह पता लगाया जाए कि ये कोशिकाएँ अपनी बाह्य परिस्थितियों से किस प्रकार प्रभावित होती हैं और उनपर स्वयं क्या प्रभाव डालती हैं। इसके लिए यह आवश्यक था कि कोशिकाओं को अलग करके किसी कृत्रिम माध्यम में जीवित रखा जाए जिससे उनपर समूचे जीव का प्रभाव न पड़े।

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

यद्यपि ऊतक संवर्धन में सफलता पाने की चेष्टा १८८५ ई. में की गई थी, तथापि सफलता १९०६ ई. में मिली, जब हैरिसन ने एक सरल प्रविधि निकाली जिससे कृत्रिम माध्यम में आरोपित ऊतक उगता और विकसित होता रहता था। इसके बाद से प्रविधि अधिकाधिक यथार्थ तथा समुन्नत होती गई। पोषक माध्यम की संरचना भी अधिक उपर्युक्त होती हुई है। अब तो शरीर के प्राय: प्रत्येक भाग से कोशिकाओं और ऊतकों का संवर्धन संभव है और उनको आश्चर्यजनक काल तक जीवित रखा जा सकता है।

काच में (अर्थात्‌ शरीर से पृथक्‌) पोषित की जा सकनेवाली कोशिकाएँ अनेक हैं, जैसे धारिच्छद कोशिकाएँ (एपिथिलियल सेल्स), तंतुघट (फाइब्रोब्लास्ट्स), अस्थि तथा उपास्थि (कार्टिलेज), तंत्रिका (नर्व), पेशी (मसल्‌) और लसीकापर्व (लिंफनोड्स) की कोशिकाएँ, प्लीहा (स्प्लोन), प्रजन ग्रंथियाँ (गोनद), गर्भकला (एंडोमेट्रियम), गर्भकमल (प्लैसेंटा), रक्त, अस्थिमज्जा (बोन मैरो) इत्यादि।

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

कोशिकाओं के कार्यकारण तथा संरचनात्मक गुणों के अध्ययन के अतिरिक्त, ऊतक-संवर्धन-प्रविधि प्रयोगात्मक जीवविज्ञान और आयुर्विज्ञान के प्राय: सभी क्षेत्रों में उपयोगी सिद्ध हुई है, विशेष कर कोशिका तत्व (साइटॉलोजी), औतिकी (हिस्टॉलोजी), भ्रूण तत्व (एंब्रिऑलोजी), कोशिकाकायिकी (सेल फ़िज़ियॉलोजी), कोशिका-व्याधि-विज्ञान (सेल पैथॉलोजी), प्रातीकारिकी (इंम्यूनॉलोजी) और अर्बुदों तथा वाइरसों के अध्ययन में। इस प्रविधि से निम्नलिखित विषयों के अध्ययन में सहायत मिली है : रुधिर का बनना, कार्यकरण तथा रोगों की उत्पत्ति; कोशिका के भीतर होनेवाली प्रकिण्वीय (एनज़ाइमैटिक) तथा उपापचयी (मेटाबोलिक) रासायनिक प्रतिक्रियाएँ; अंग-संचालन-क्रिया, कोशिका विभाजन तथा भेदकरण (डिफ़रेनशिएशन); कोशिका की अतिसूक्ष्म रचनाएँ, जैसे विमेदाभ जाल (गोलगी ऐपारेटस) तथा कणभसूत्र (मिटोकॉण्ड्रिया); कोशिका पर विकिरण, ताप, भौतिक अथवा रासायनिक आघात अथवा जीवाणुओं के आक्रमण; उनसे उत्पन्न पदार्थो की क्रिया के कारण होनेवाली क्षति; अर्बुदवाली तथा साधारण कोशिकाओं का अंतर और साधारण कोशिकाओं से अर्बुदवाली कोशिकाओं का बनना।

ऊतक संवर्धन के लिए प्रयुक्त प्रविधियाँ अनेक प्रकार की है; जैस वे जिनमें लटकते हुए बिंदु बोतल, काच की छिछली तश्तरी अथवा अन्य विशेष बरतन का उपयोग होता है। संवर्धन के लिए प्रयुक्त माध्यम विविध प्रकार के हैं, जैसे रक्तप्लाविका (प्लैज्म़ा), लसी (सीरम), लसीका, शरीरक्रिया के लिए उपयुक्त लवण घोल (जैसे टाइरोड, रिंगर-लॉक, आदि के घोल)। ऊतक-संवर्धन के लिए माध्यम चुनते समय जीव की कोशिका के असामान्य पर्यावरण का सूक्ष्म ज्ञान अत्यावश्यक है। इसके अतिरिक्त इसका भी निर्णय कर लेना आवश्यक है कि प्रत्येक जाति की कोशिका के लिए पर्यावरण में क्या-क्या बातें आवश्यक हैं। उपर्युक्त पर्यावरण स्थापित करने के लिए यह भी नितांत आवश्यक है कि माध्यम तक अन्य किसी प्रकार के जीवाणु न पहुँचे क्योंकि जिस माध्यम में कोशिकाएँ पाली जाती हैं वह अन्य जीवाणुओं के पनपने के लिए भी अति उत्तम होता है, चाहे वे जीवाणु रोगोत्पादक हों या न हों। इन जीवाणुओं की वृद्धि अवश्य ही संवर्धनीय कोशिकाओं को मार डालेगी। हाल में सल्फ़ोनामाइडों और पेनिसिलिन के समान जीवाणु द्वेषियों से इस प्रकार के संक्रमण को दबाए रखने में बड़ी सहायता मिली है।

Class 12 Biology Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Notes in Hindi

माध्यम में उगते हुए ऊतकों में उपापचयी परिवर्तन होते रहते हैं और यदि उपापचय से उत्पन्न पदार्थ माध्यम में एकत्र होते रहेंगे तो कोशिकाओं के लिए वे घातक हो सकते हैं। इसलिए उच्छिष्ट पदार्थों की मात्रा के हानिकारक सीमा तक पहुँचने के पहले ही माध्यम को बदल देना आवश्यक है।

ऊतक-संवर्धन के विषय में ऊपर केवल थोड़ी सी बातें दी जा सकी हैं। इसका ध्यान रखना आवश्यक है कि ऊतक संवर्धन केवल कुछ जीववैज्ञानिक क्रियाओं को समझने में एक सहायक विधि है। न तो इसे मूल्यरहित मानकर इसकी उपेक्षा की जा सकती है और न इसे जीवप्रक्रियाओं को समझने के लिए जादू की छड़ी माना जा सकता हैं।

Class 12 Biology All Chapter Notes and Que & Ans