Class 12 Biology Chapter 8 प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं (Cells of Immune System) Notes in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 8: प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं के लिए हिंदी में विस्तृत प्रश्न-उत्तर चर्चा का अन्वेषण करें। अपनी शंकाओं का समाधान करें और अपनी समझ को प्रभावी ढंग से बढ़ाएं।
Class 12 Biology Chapter 8 प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं (Cells of Immune System) Question Answer in Hindi
अभ्यास (पृष्ठ संख्या 179-180)
प्रश्न 1 कौन-से विभिन्न जन स्वास्थ्य उपाय हैं जिन्हें आप संक्रामक रोगों के विरुद्ध रक्षा-उपायों के रूप में सुझायेंगे?
उत्तर- संक्रामक रोगों के विरुद्ध हम निम्नलिखित जन-स्वास्थ्य उपायों को सुझायेंगे-
- अपशिष्ट व उत्सर्जी पदार्थों का समुचित निपटान होना।
- संक्रमित व्यक्ति व उसके सामान से दूर रहना।
- नाले-नालियों में कीटनाशकों का छिड़काव करना।
- आवासीय स्थलों के निकट जल-ठहराव को रोकना, नालियों के गंदे पानी की समुचित निकासी होना।
- संक्रामक रोगों की रोकथाम हेतु वृहद स्तर पर टीकाकरण कार्यक्रम चलाये जाना।
प्रश्न 2 जीव विज्ञान (जैविकी) के अध्ययन ने संक्रामक रोगों को नियन्त्रित करने में किस प्रकार हमारी सहायता की है?
उत्तर-
- जैविकी के विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति से हमें अनेक संक्रामक रोगों से निबटने के लिए कारगर हथियार मिल गए हैं।
- जैविकी के विकास से विभिन्न परजीवियों, परपोषियों तथा रोगवाहकों के जीवन चक्र के साथ विभिन्न रोगों के संचरण के तरीकों और उन्हें नियंत्रित करने के उपायों के बारे में जान पाते हैं।
- चेचक, चिकनपॉक्स, टीबी जैसी संक्रमित बीमारियों के लिए टीकाकरण कार्यक्रम इन रोगों को खत्म करने में सहायता करता है।
- जैवप्रौद्योगिकी ने विकसित तथा सुरक्षित दवा और वैक्सीन बनाने में सहायता की है।
- विभिन्न संक्रामक रोगों के उपचार में प्रतिजैविकों मुख्य भूमिका निभाई है।
प्रश्न 3 निम्नलिखित रोगों का संचरण कैसे होता है?
- अमीबता
- मलेरिया
- ऐस्कैरिसता
- न्यूमोनिया
उत्तर-
- अमीबता (Amoebiasis)- अमीबता या अमीबी अतिसार (amoebic dysentery) नामक रोग मानव की वृहद् आंत्र में पाए जाने वाले एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका (Entumoeba histobytica) नामक प्रोटोजोआ परजीवी से होता है। इस रोग के लक्षण कोष्ठबद्धता (कब्ज), उदर पीड़ा और ऐंठन, अत्यधिक श्लेष्म और रुधिर के थक्के वाला मल आदि हैं। इस रोग की वाहक घरेलू मक्खियाँ होती हैं जो परजीवी को संक्रमित व्यक्ति के मल से खाद्य और खाद्य पदार्थों तक ले जाकर उन्हें संदूषित (contaminated) कर देती हैं। संदूषित पेयजल और खाद्य पदार्थ संक्रमण के प्रमुख स्रोत हैं। इससे बचने के लिए स्वच्छता के नियमों का पालन करना चाहिए और खाद्य पदार्थों को ढककर रखना चाहिए।
- मलेरिया (Malaria)- इस रोग के लिए प्लाज्मोडियम (Plasmodium) नामक प्रोटोजोआ उत्तरदायी है। मलेरिया के लिए प्लाज्मोडियम की विभिन्न प्रजातियाँ (जैसे–प्ला० वाइवैक्स, प्ला० मैलेरिआई, प्ला० फैल्सीपेरम) तथा प्ला० ओवेल उत्तरदायी हैं। इनमें से प्ला० फैल्सीपेरम (Plasmodium fulsipurum) द्वारा होने वाला दुर्दम (malignant) मलेरिया सबसे गम्भीर और घातक होता है। इसके संक्रमण के कारण रक्त केशिकाओं में थ्रोम्बोसिस हो जाने के कारण ये अवरुद्ध हो जाती हैं और रोगी की मृत्यु हो जाती है।
मादा ऐनोफेलीज रोगवाहक अर्थात् रोग का संचारण करने वाली है। जब मादा ऐनोफेलीज मच्छर किसी. संक्रमित व्यक्ति को काटती है तो परजीवी उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और जब संक्रमित मादा मच्छर किसी अन्य स्वस्थ मानव को काटती है तो स्पोरोज्वाइट्स (sporozoites) मादा मच्छर की लार से मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। मलेरिया में ज्वर की पुनरावृत्ति एक निश्चित अवधि (48 या 72 घण्टे) के पश्चात् होती रहती है। इसमें लाल रक्त कणिकाओं की निरन्तर क्षति होती रहती है।
- ऐस्कैरिसता (Ascariasis)- यह रोग आंत्र परजीवी ऐस्कैरिस (Ascaris) से होता है। इस रोग के लक्षण आन्तरिक रुधिरस्राव, पेशीय पीड़ा, ज्वर, अरक्तता, आंत्र का अवरोध आदि है। इस परजीवी के अण्डे संक्रमित व्यक्ति के मल के साथ बाहर निकल आते हैं और मिट्टी, जल, पौधों आदि को संदूषित कर देते हैं। स्वस्थ व्यक्ति में संक्रमण संदूषित पानी, शाक-सब्जियों, फलों, वायु आदि से होता है। इससे रक्ताल्पता (anaemia), दस्त (diarrhoea), उण्डुकपुच्छ शोध (appendicitis) आदि रोग हो जाते हैं। कभी-कभी ऐस्कैरिस के लार्वा पथ भ्रष्ट होकर विभिन्न अंगों में पहुँचकर क्षति पहुँचाते हैं।
- न्यूमोनिया (Pneumonia)- मानव में न्यूमोनिया रोग के लिए स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी (Streptococcus pneumoniae) और हिमोफिलस इंफ्लुएन्ज़ी (Haemophilus influenzae) जैसे जीवाणु उत्तरदायी हैं। इस रोग में फुफ्फुस अथवा फेफड़ों (lungs) के वायुकोष्ठ संक्रमित हो जाते हैं। इस रोग के संक्रमण से वायुकोष्ठों में तरल भर जाता है जिसके कारण साँस लेने में परेशानी होती है। इस रोग के लक्षण ज्वर, ठिठुरन, खाँसी और सिरदर्द आदि हैं। न्यूमोनिया विषाणुजनित एवं कवक जनित भी होता है।
प्रश्न 4 जलवाहित रोगों की रोकथाम के लिये आप क्या उपाय अपनायेंगे?
उत्तर- जल-वाहित रोग जैसे- हैजा, टाइफॉइड, हेपेटाइटिस बी आदि संदूषित पानी पीने से फैलते हैं।
- अपशिष्ट पदार्थ और मल-मूत्र उत्सर्ग का समुचित निपटान, नियमित सफाई द्वारा जल-वाहित रोगों की रोकथाम की जा सकती है।
- सामुदायिक जलाशयों में कीटनाशकों का छिड़काव, उबले हुए पेयजल का प्रयोग।
प्रश्न 5 डी०एन०ए० वैक्सीन के सन्दर्भ में ‘उपयुक्त जीन के अर्थ के बारे में अपने अध्यापक से चर्चा कीजिए।
उत्तर- DNA वैक्सीन में उपयुक्त जीन’ का अर्थ है कि इम्युनोजेनिक प्रोटीन का निर्माण इसे नियन्त्रित करने वाले जीन से हुआ है। ऐसे जीन क्लोन किये जाते हैं तथा फिर वाहक के साथ समेकित करके व्यक्ति में प्रतिरक्षा उत्पन्न करने के लिए उसके शरीर में प्रवेश कराये जाते हैं।
प्रश्न 6 प्राथमिक और द्वितीयक लसिकाओं के अंगों के नाम बताइये।
उत्तर-
- प्राथमिक लसीकाभ अंगों में अस्थिमज्जा और थाइमस आते हैं।
- द्वितीयक लसीकाभ अंगों में प्लीहा, लसीका ग्रंथि, टांसिल, क्षुदांत्र के पेयर पैच और परिशेषिका आते हैं।
प्रश्न 7 इस अध्याय में निम्नलिखित सुप्रसिद्ध संकेताक्षर इस्तेमाल किये गये हैं। इनका पूरा रूप बताइये-
- एम०ए०एल०टी०
- सी०एम०आई०
- एड्स
- एन०ए०सी०ओ
- एच०आई०वी०
उत्तर-
- एम०ए०एल०टी० (MALT)- म्यूकोसल एसोसिएटिड लिम्फॉइड टिशू (Mucosal Associated Lymphoid Tissue)
- सी०एम०आई० (CMI)- सेल मीडिएटिड इम्यूनिटी (Cell Mediated Immunity)।
- एड्स (AIDS)- एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएन्सी सिन्ड्रोम (Acquired Immunodeficiency Syndrome)।
- एन०ए०सी०ओ० (NACO)- नेशनल एड्स कन्ट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (National AIDS Control Organisation)।
- एच०आई०वी० (HIV)- ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएन्सी वायरस (Human Immunodeficiency Virus)।
प्रश्न 8 निम्नलिखित में भेद कीजिए और प्रत्येक के उदाहरण दीजिए-
- सहज (जन्मजात) और उपार्जिल प्रतिरक्षा।
- सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा।
उत्तर-
- सहज (जन्मजात) और उपर्जित प्रतिरक्षा-
क्रम.सहज (जन्मजात) प्रतिरक्षाउपर्जित प्रतिरक्षा1.सहज प्रतिरक्षा एक प्रकार की अविशिष्ट रक्षा है।उपर्जित प्रतिरक्षा रोगजनक विशिष्ट है।2.यह जन्म के समय से मौजूद होती है।इसका अभिलक्षण स्मृति है।3.यह प्रतिरक्षा हमारे शरीर में बाह्य कारकों के प्रवेश के सामने विभिन्न प्रकार के रोध खड़ा करने से हासिल होती है।हमारे शरीर का जब पहली बार किसी रोगजनक से सामना होता है तो यह एक अनुक्रिया करता है जिसे निम्न तीव्रता की प्राथमिक अनुक्रिया कहते हैं। बाद में उसी रोगजनक से सामना होने पर बहुत ही उच्च तीव्रता की द्वितीयक या पूर्ववृत्तीय अनुक्रिया होती है।4.उदाहरण के लिए, अमाशय में अम्ल, मुँह के आँसू रोगाणीय वृद्धि को रोकते हैं।उदाहरण के लिए चेचक, टिटनेस, पोलियो आदि रोगों के लिए प्रतिरक्षा। |
- सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा-
क्रम. सक्रिय प्रतिरक्षानिष्क्रिय प्रतिरक्षा1.जब परपोषी प्रतिजनों का सामना करता है तो उसके शरीर में प्रतिरक्षी स्वयं ही पैदा होते हैं, जो सक्रिय प्रतिरक्षा कहलाते हैं। ये प्रतिजन जीवित या मृत रोगाणु या अन्य प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं। जब शरीर की रक्षा के लिए बने बनाए प्रतिरक्षी सीधे ही दूसरे शरीर को दिए जाते हैं तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है। जैसे- नवजात शिशु के लिए माँ का दूध, जिससे स्रावित पीले से तरल ‘पीयूष’ में प्रतिरक्षियों की प्रचुरता होती है जो शिशु की रक्षा करता है।2.सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी गति से कार्य करता है।यह तुरंत क्रियाशील होती है।3.यह चिरस्थायी होता है।यह स्थायी नहीं होता है। |
प्रश्न 9 प्रतिरक्षी (प्रतिपिण्ड) अणु का अच्छी तरह नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-
प्रश्न 10 वे कौन-कौन से विभिन्न रास्ते हैं जिनके द्वारा मानव में प्रतिरक्षान्यूनता विषाणु (एच०आई०वी०) का संचारण होता है?
उत्तर- एड्स एक विषाणु रोग है जो मानव में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच आई वी) के कारण होता है।
इसका संचारण निम्नलिखित तरीकों से होता है-
- संक्रमित व्यक्ति के यौन संपर्क से।
- संदूषित रक्त और रुधिर उत्पादों के आधान से।
- संक्रमित सूइयों के साझा प्रयोग से जैसा कि अंतः शिरा द्वारा ड्रग का कुप्रयोग करने से।
- संक्रमित माँ से अपरा द्वारा उसके बच्चों में।
प्रश्न 11 वह कौन-सी क्रियाविधि है जिससे एड्स विषाणु संत व्यक्ति के प्रतिरक्षा तन्त्र का ह्रास करता है?
उत्तर-
- संक्रमित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने के पश्चात् एड्स विषाणु वृहद् भक्षकाणु (macrophage) में प्रवेश करता है।
- यहाँ इसका RNA जीनोम, विलोम ट्रांसक्रिप्टेज विकर (reverse transcriptase enzyme) की मदद से, रेप्लीकेशन (replication) द्वारा विषाणुवीय DNA (viral DNA) बनाता है जो कोशिका में DNA में प्रविष्ट होकर, संक्रमित कोशिकाओं में विषाणु कण निर्माण का निर्देशन करता है।
- वृहद् भक्षकाणु विषाणु उत्पादन जारी रखते हैं व HIV की उत्पादन फैक्टरी का कार्य करते हैं।
- HIV सहायक T-लसीकाणु में प्रविष्ट होकर अपनी प्रतिकृति बनाता है व संतति विषाणु उत्पन्न करता है।
- रक्त में उपस्थित संतति विषाणु अन्य सहायक T-लसीकाणुओं पर आक्रमण करते हैं।
- यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है जिसके परिणामस्वरूप संक्रमित व्यक्ति के शरीर में T-लसीकाणुओं की संख्या घटती रहती है।
- रोगी ज्वर व दस्त से निरन्तर पीड़ित रहता है, वजन घटता जाता है, रोगी की प्रतिरक्षा इतनी कम हो जाती है कि वह इन प्रकार के संक्रमणों से लड़ने में असमर्थ होता है।
प्रश्न 12 प्रसामान्य कोशिका से कैंसर कोशिका किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर-
क्रम. प्रसामान्य कोशिकाकैंसर कोशिका1.प्रसामान्य कोशिका संस्पर्श संदमन का गुण दर्शाती है। इसलिए दूसरी कोशिकाओं से उनका संस्पर्श उनकी अनियंत्रित वृद्धि को संदमित करता है।कैंसर कोशिका में संस्पर्श संदमन के गुण का अभाव होता है। इसके फलस्वरूप कैंसर कोशिकाएँ विभाजित होना जारी रख कोशिकाओं का भंडार खड़ा कर देती है जिसे अर्बुद (ट्यूमर) कहते हैं।2.इनमें विशिष्ट विकास होने के बाद विभेदन होता है।इनमें विभेदन नहीं होता है।3.ये कोशिकाएँ अपने मूल स्थान तक सीमित रहते हैं।ये कोशिकाएँ अपने मूल स्थान तक सीमित नहीं रहते हैं, आस-पास के सामान्य उत्तकों पर हमला करके उन्हें क्षति पहुँचाती हैं। |
प्रश्न 13 मेटास्टेसिस का क्या मतलब है? व्याख्या कीजिये।
उत्तर-
- मेटास्टेसिस में कैंसर कोशिकाओं के अन्य ऊतकों व अंगों में स्थानान्तरण से कैंसर फैलता है। परिणामस्वरूप द्वितीयक ट्यूमर का निर्माण होता है।
- यह प्राथमिक ट्यूमर की अति वृद्धि के परिणामस्वरूप फैलता है।
- अति वृद्धि करने वाली ट्यूमर कोशिकायें रक्त वाहिनियों में से गुजरती हैं या सीधे द्वितीयक बनाती हैं।
- दूसरे उपयुक्त ऊतक या अंग पर पहुँचने के बाद, एक नया ट्यूमर बनता है।
- यह बना ट्यूमर, जो द्वितीयक बना सकते हैं, घातक ट्यूमर कहलाता है।
- वे कोशिकाएँ जो ट्यूमर से फैलने के योग्य होती हैं, घातक (malignant) कोशिकायें होती हैं।
प्रश्न 14 ऐल्कोहॉल/ ड्रग के द्वारा होने वाले कुप्रयोग के हानिकारक प्रभावों की सूची बनाइये।
उत्तर- ऐल्कोहल/ ड्रग का व्यक्तिगत रूप से, परिवार और समाज पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- ऐल्कोहल का प्रभाव-
- व्यक्ति पर प्रभाव- ऐल्कोहल व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। जब एक व्यक्ति अधिक ऐल्कोहल का सेवन करता है तो उसके तंत्रिका तंत्र और यकृत को क्षति पहुँचती है। परिणामस्वरूप, व्यक्ति में अवसाद, थकावट, आक्रमणशील, भूख और वजन में घट-बढ़ जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। कभी-कभी ऐल्कोहल के अत्यधिक मात्रा से हृद-पात अथवा प्रमस्तिष्क रक्तस्राव के कारण संमूर्च्छा (कोमा) और मृत्यु भी हो सकती है। ऐल्कोहल दुरूपयोग के सबसे सामान्य लक्षण विद्रोही व्यवहार, परिवार और मित्रों से बिगड़ते संबंध आदि हैं। गर्भावस्था के दौरान ऐल्कोहल का उपयोग गर्भ पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- परिवार पर प्रभाव- ऐल्कोहल परिवार या मित्र आदि के लिए भी मानसिक और आर्थिक कष्ट का कारण बन सकता है। यह घरेलू कष्टों जैसे झगड़ा, निराशा, असुरक्षा का भी कारण होता है।
- समाज पर ऐल्कोहल का प्रभाव-
- झगड़ालू व्यवहार
- बर्बरता और हिंसा
- सामाजिक गतिविधियों के रुचि में कमी, खाने और सोने की आदतों में परिवर्तन।
- ड्रग का प्रभाव- एक व्यक्ति जो ड्रग का व्यसनी होता है वह न केवल स्वयं के लिए बल्कि अपने परिवार के लिए भी समस्याएँ उत्पन्न करता है।
- व्यसनी व्यक्ति पर प्रभाव- एक व्यक्ति के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर ड्रग का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे शरीर के कई अंगों जैसे- वृक्क, यकृत, आदि के दुष्क्रियता की संभावना होती है। एड्स और यकृतशोथ-बी जैसे गंभीर रोगों के विषाणु संक्रमित सूई और सिरिंज के साझा प्रयोग द्वारा ड्रग लेने के कारण स्थानांतरित होते हैं। ड्रग का स्त्री तथा पुरूष दोनों पर दीर्घकालीन कुप्रभाव होता है। इन दुष्प्रभावों में बढ़ी अक्रामकता, भावदशा में उतार-चढ़ाव, और अवसाद शामिल हैं।
- परिवार तथा समाज पर प्रभाव- ड्रग्स का व्यसनी व्यक्ति अपने परिवार तथा समाज के लिए आर्थिक तथा मानसिक कष्ट का कारण बन सकता है। ड्रग्स पर निर्भर व्यक्ति निराश, परेशान और सामाजिक-विरोधी हो जाता है।
प्रश्न 15 क्या आप ऐसा सोचते हैं कि मित्रगण किसी को ऐल्कोहॉल/ड्रग सेवन के लिये प्रभावित कर सकते हैं? यदि हाँ, तो व्यक्ति ऐसे प्रभावों से कैसे अपने आपको बचा सकते हैं?
उत्तर- मित्रगण किसी को ऐल्कोहॉल/ ड्रग लेने के लिये प्रभावित कर सकते हैं। युवा प्रायः ऐसे मित्रों के चंगुल में फंस जाते हैं जो मादक द्रव्यों के आदी हो चुके होते हैं। ऐसे मित्र युवाओं को धीरे-धीरे मादक पदार्थों के सेवन की लत लगा देते हैं तथा युवा इन पदार्थों के चंगुल में बुरी तरह फंस जाते हैं।
स्वयं को इस प्रकार के प्रभाव से बचाने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-
- प्रथम माता-पिता व अध्यापकों का विशेष उत्तरदायित्व है। ऐसा लालन-पालन जिसमें पालन-पोषण का स्तर ऊँचा हो व सुसंगत अनुशासन हो।
- ऐसे मित्रों के चंगुल में आने पर तुरन्त अपने माता-पिता व समकक्षियों से मदद व उचित मार्गदर्शन लें।
- समस्याओं व प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने, निराशाओं व असफलताओं को जीवन का एक हिस्सा समझकर स्वीकार करने की शिक्षा व परामर्श लेना इस प्रकार के प्रभाव से बचने में सहायक होता है।
- क्षमता से अधिक कार्य करने के दबाव से बचें।
प्रश्न 16 ऐसा क्यों है कि जब कोई व्यक्ति ऐल्कोहॉल या ड्रग लेना शुरू कर देता है तो उस आदत से छुटकारा पाना कठिन होता है? अपने अध्यापक से चर्चा कीजिये।
उत्तर-
- ड्रग/ ऐल्कोहॉल लाभकारी है। इसी सोच के कारण व्यक्ति इसे बार-बार लेता है। ड्रग/ ऐल्कोहॉल के प्रति लत मनोवैज्ञानिक आशक्ति है।
- ड्रग/ ऐल्कोहॉल के बार-बार सेवन से शरीर में मौजूद ग्राहियों का सहन स्तर बढ़ जाता है। जिसके कारण अधिकाधिक मात्रा में ड्रग लेने की आदत पड़ जाती है।
- इस प्रकार ऐल्कोहॉल/ ड्रग व्यसनी शक्ति प्रयोग करने वाले को दोषपूर्ण चक्र में घसीट लेती है। तथा व्यक्ति इनका नियमित सेवन करने लगता है और इस चक्र में फंस जाता है।
प्रश्न 17 आपके विचार से किशोरों को ऐल्कोहॉल या ड्रग के सेवन के लिये क्या प्रेरित करता है और इससे कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर- ऐल्कोहल या ड्रग के सेवन के लिए किशोरों को प्रेरित करने के लिए विभिन्न कारक उत्तरदायी हैं-
- जिज्ञासा, जोखिम उठाने और उत्तेजना के प्रति आकर्षण और प्रयोग करने की इच्छा किशोरों को ऐल्कोहल या ड्रग के लिए अभिप्रेरित करते हैं।
- कुछ समय से शैक्षिक क्षेत्र में या परीक्षा में सबसे आगे रहने के दबाव से उत्पन्न तनाव ने भी किशोरों को ऐल्कोहल या ड्रग को आजमाने के लिए फुसलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- इसे बढ़ावा देने में टेलीविज़न, सिनेमा, समाचार पत्र, इंटरनेट ने भी सहायता की है।
- परिवार के ढाँचे में अस्थिरता या एक दूसरे को सहारा देने तथा मित्रों के दबाव का अभाव भी ऐल्कोहल या ड्रग पर निर्भर होने का कारण हो सकता है।
ऐल्कोहल या ड्रग के व्यसन के रोकथाम के उपाय-
- माता-पिता द्वारा प्रेरित किया जाना चाहिए और अपने बच्चे की इच्छाशक्ति बढाने का प्रयास करना चाहिए।
- माता-पिता को अपने बच्चों को के ऐल्कोहल के कुप्रभाव के बारे में शिक्षित करना चाहिए। उन्हें ऐल्कोहल की व्यसन के परिणाम के बारे में उचित ज्ञान और परामर्श देना चाहिए।
- यह माता-पिता का उत्तरदायित्व है कि ऐल्कोहल के प्रयोग करने के लिए बच्चे को हतोत्साहित किया जाए। किशोरों को उन मित्रों की संगति से दूर रखा जाना चाहिए, जो ड्रग का सेवन करते हैं।
- किशोरों की ऊर्जा को मनोरंजक तथा स्वस्थ गतिविधियों की दिशा में लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- बच्चे में अवसाद तथा हताशा के लक्षण देखे जाने पर उचित व्यावसायिक तथा चिकित्सा सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
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