Class 12 Biology Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत Question Answer in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 5: विरासत और भिन्नता के सिद्धांत के लिए हिंदी में विस्तृत प्रश्न-उत्तर चर्चा का अन्वेषण करें। अपनी शंकाओं का समाधान करें।
Class 12 Biology Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत Question Answer in Hindi
अभ्यास (पृष्ठ संख्या 104)
प्रश्न 1 मेंडल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पौधे को चुनने से क्या लाभ हुए?
उत्तर- मंडल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पौधे को चुनने से निम्नलिखित लाभ हुए-
- यह एकवर्षीय पौधा है वे इसे आसानी से बगीचे में उगाया जा सकता था।
- इसमें विभिन्न लक्षणों के वैकल्पिक रूप (alternate forms) देखने को मिले।
- इसके स्व-परागित (self pollinated) होने के कारण कोई भी अवांछित जटिलता नहीं आ पायी।
- नर व मादा एक ही पौधे में मिल गए।
- यह पौधा आनुवंशिक रूप से शुद्ध था व पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसके पौधे शुद्ध बने रहे।
- इस पौधे की एक ही पीढ़ी में अनेक बीज उत्पन्न होते हैं अतः निष्कर्ष निकालने में आसानी रही।
प्रश्न 2 निम्नलिखित में विभेद कीजिए-
- प्रभाविता और अप्रभाविता
- समयुग्मजी और विषमयुग्मजी
- एक संकर और द्विसंकर
उत्तर-
- प्रभाविता और अप्रभाविता
प्रभाविता | अप्रभाविता | |
1 | प्रभाविता युग्म विकल्पी की अभिव्यक्ति अप्रभाविता कारकों की उपस्थिति में भी हो सकती है। | अप्रभाविता युग्म विकल्पी की अभिव्यक्ति प्रभाविता कारक की उपस्थिति में नहीं हो सकती है। |
2 | दृश्य प्ररूप पर अपना प्रभाव उत्पन्न करने के लिए इसे किसी अन्य समान युग्म विकल्पी की आवश्यकता नहीं होती। जैसे- Tt लंबा है। | यह समान युग्म विकल्पी की उपस्थिति में ही अपना दृश्य प्ररूप प्रभाव उत्पन्न करता है। जैसे- tt बौना है। |
- समयुग्मजी और विषमयुग्मजी
समयुग्मजी | विषमयुग्मजी | |
1 | यह एक विशेषक के लिए शुद्ध होता है तथा तद्रूप प्रजनन होता है अर्थात् समयुग्मजी व्यक्ति उत्पन्न होता है। | यह कभी-कभी शुद्ध होता है तथा स्वपरागण से ही विभिन्न जीनोटाइप (जीन प्ररूप) के साथ संतति उत्पन्न करता है। जैसे- TT. |
2 | दोनों युग्म विकल्पी के लक्षण एक समान होते हैं। उदाहरण- TT, tt. | विषमयुग्मजी में युग्म विकल्पी असमान हो सकते हैं। उदाहरण- Tt. |
3 | यह केवल एक प्रकार के युग्मक उत्पन्न करता है। | यह दो अलग प्रकार के युग्मक उत्पन्न करता है। |
- एक संकर और द्विसंकर
एकसंकर | द्विसंकर | |
1 | युग्म विकल्पी के एकल जोड़ी के वंशागति अध्ययन के लिए यह दो शुद्ध जीवों के बीच का संकरण है। | युग्म विकल्पी के दो जोड़ी के वंशागति के अध्ययन यह एक प्रजाति के दो शुद्ध जीवों के बीच का संकरण है। |
2 | यह F2 पीढ़ी में 1 : 2 : 1 के जीनोटाइप अनुपात में उत्पादन करता है। | यह F2 पीढ़ी में 9 : 3 : 3 : 1 के फीनोटाइप द्विसंकर अनुपात में उत्पादन करता है। |
प्रश्न 3 कोई द्विगुणित जीन 6 स्थलों के लिए विषमयुग्मजी (heterozygous) है, कितने प्रकार के युग्मकों का उत्पादन सम्भव है?
उत्तर- सूत्र 2n को लागू करने पर, (जहाँ n = स्थलों की संख्या)
6 स्थलों में = 26
= 64 युग्मकों का उत्पादन संभव है।
प्रश्न 4 एक संकर क्रॉस का प्रयोग करते हुए, प्रभाविता नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- एक ही लक्षण के लिए विपर्यासी पौधे के मध्य संकरण एक संकर क्रॉस कहलाता है, जैसे मटर के लम्बे (T) व बौने (t) पौधे के मध्य कराया गया संकरण। F1 पीढ़ी में सभी पौधे लम्बे किन्तु विषमयुग्मजी (Tt) होते हैं। F1 पीढ़ी में लम्बेपन के लिए उत्तरदायी कारक T, बौनेपन के कारक है पर प्रभावी होता है। कारक अप्रभावी होता है अत: F1 पीढ़ी में उपस्थित होते हुए भी स्वयं को प्रकट नहीं कर पाता है। सभी F1 पौधे लम्बे होते हैं। अत: एक लक्षण को नियन्त्रित करने वाले कारक युग्म में जब एक कारक दूसरे कारक पर प्रभावी होता है, तो इसे प्रभाविता का नियम कहते हैं।
प्रश्न 5 परीक्षार्थ संकरण की परिभाषा लिखिए व चित्र बनाइए।
उत्तर- परीक्षार्थी संकरण में अनजाने प्रभावी फीनोटाइप का अप्रभावी पौधे से संकरण किया जाता है। इसका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि एक व्यक्ति लक्षण के लिए समयुग्मजी है या विषमयुग्मजी। यदि अनजाना पौधा समयुग्मजी लंबा (TT) है तो अप्रभावी बौने प्रजाति (tt) के साथ संकरण कराने पर भी इसके संतति लंबे (Tt) होते हैं। यदि अनजाना पौधा विषमयुग्मजी लंबा है तो बौने के साथ संकरण कराने पर 50% लंबे (Tt) तथा 50% बौने (tt) संतति प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 6 एक ही जीन स्थल वाले समयुग्मजी मादा और विषमयुग्मजी नर के संकरण से प्राप्त प्रथम संतति पीढ़ी के फीनोटाइप वितरण का पुनेट वर्ग बनाकर प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर- गुणसूत्रों पर विभिन्न लक्षणों वाले जीन एक निश्चित स्थल (locus) पर स्थित होते हैं। एक ही जीन स्थल वाले समयुग्मजी मादा जैसे- शुद्ध नाटे पौधे और विषमयुग्मजी नर जैसे- संकर लम्बे पौधों के मध्य संकरण कराने पर प्राप्त प्रथम पुत्रीय संतति सदस्यों में 50% प्रभावी लक्षण वाले विषमयुग्मजी और 50% समयुग्मजी प्रभावी लक्षण वाले होते हैं। जैसे-
प्रश्न 7 पीले बीज वाले लम्बे पौधे (YyTt) का संकरण हरे बीज वाले लम्बे (yyTt) पौधे से कराने पर निम्न में से किस प्रकार के फीनोटाइप संतति की आशा की जा सकती है?
- लम्बे हरे।
- बौने हरे।
उत्तर- पीले बीज वाले लंबे पौधों (Yy Tt) का संकरण हरे बीज वाले लंबे (yy Tt) पौधे से करने पर उत्पन्न होगा-
प्रश्न 8 दो विषमयुग्मजी जनकों का क्रॉस है और 2 किया गया। मान लीजिए दो स्थल (loci) सहलग्न हैं तो द्विसंकर क्रॉस में F1 पीढ़ी के फीनोटाइप के लक्षणों का वितरण क्या होगा?
उत्तर- एक ही गुणसूत्र पर उपस्थित जीन्स के एकसाथ वंशागत होने को जीन सहलग्नता (gene linkage) या सहलग्न जीन (linked genes) कहते हैं। सहलग्न जीन्स द्वारा नियन्त्रित होने वाले लक्षणों को सहलग्न लक्षण (linked characters) कहते हैं। जीन सहलग्नता (gene linkage) के अध्ययन के लिए मॉर्गन ने ड्रोसोफिला (Drosophila) पर अनेक प्रयोग किए। ये मेण्डेल द्वारा किए गए द्विसंकर संकरण के समान थे। मॉर्गन ने पीले शरीर और श्वेत नेत्रों वाली मादा मक्खियों का संकरण भूरे शरीर और लाल नेत्रों वाली मक्खियों के साथ किया। इनसे प्राप्त प्रथम पुत्रीय संतति (F1 पीढ़ी) के सदस्यों में परस्पर क्रॉस कराने पर उन्होंने पाया कि ये दो जोड़ी जीन एक-दूसरे से स्वतन्त्र रूप से पृथक् नहीं हुए और F2 पीढ़ी का अनुपात मेण्डेल के नियमानुसार प्राप्त अनुपात 9 : 3 : 3 : 1 से काफी भिन्न प्राप्त होता है (यह अनुपात दो जीन्स के स्वतन्त्र कार्य करने पर अपेक्षित था)। यह सहलग्नता के कारण होता है।
प्रश्न 9 आनुवंशिकी में टी०एच० मॉर्गन के योगदान का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर- आनुवंशिकी में टी.एच मौरगन का योगदान-
- मौरगन ने लिंग-सहलग्न लक्षणों को समझने में योगदान दिया।
- उन्होंने फल-मक्खियों का संकरण भूरे शरीर और लाल आँखों मक्खियों वाली के साथ किया और फिर F1 संततियों को आपस में द्विसंकर क्रॉस करवाने पर दो जीन जोड़ी एक दूसरे से स्वतंत्र विसंयोजित नहीं हुई और F2 का अनुपात 9 : 3 : 3 : 1 से काफी भिन्न मिला।
- उन्होंने यह भी जान लिया कि जब द्विसंकर क्रॉस में दो जीन जोड़ी एक ही क्रोमोसोम में स्थित होती हैं तो जनकीय जीन संयोजनों का अनुपात अजनकीय प्रकार से काफी ऊँचा रहता है।
- उन्होंने संकरण सहलग्नता संबंधों तथा वंशागति लिंग-सहलग्न के सिद्धांत की व्याख्या की तथा संबंधों की खोज की।
- उन्होंने क्रोमोसोम मानचित्र के तकनीक की स्थापना की।
- उन्होंने उत्परिवर्तन को देखस तथा उस पर काम किया।
प्रश्न 10 वंशावली विश्लेषण क्या है? यह विश्लेषण किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर- वंशावली विश्लेषण- मानव एक सामाजिक प्राणी है। मानव पर भी आनुवंशिकी के नियम अन्य प्राणियों की भाँति लागू होते हैं और इन्हीं के अनुसार आनुवंशिक लक्षण पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशागत होते हैं। प्राकृतिक तथ्यों को जानने के लिए वैज्ञानिकों को जीव-जन्तुओं पर अनेक प्रायोगिक परीक्षण करने पड़ते हैं। मानव पर प्रयोगशाला में ऐसे परीक्षण नहीं किए जा सकते। अतः मानव आनुवंशिकी के अधिकांश तथ्य जन समुदायों के अध्ययन एवं अन्य जीवों की आनुवंशिकी पर आधारित हैं। मानव के आनुवंशिक लक्षणों या विशेषकों का पता लगाने के लिए-
सर फ्रांसिस गैल्टन (Sir Francis Galton) ने दो विधियाँ बताईं-
- कुछ विशेष आनुवंशिक लक्षणों को प्रदर्शित करने वाले मानव कुटुम्बों की वंशावलियों (Pedigrees or Genealogies) का अध्ययन।
- यमजों (twins) के अध्ययन से आनुवंशिक एवं उपार्जित लक्षणों में भेद स्थापित करना।
हार्डी एवं वीनबर्ग (Hardy and Weinberg) ने पूरे-पूरे जन समुदायों में आनुवंशिक लक्षणों का निर्धारण करने की विधि का अध्ययन किया।
मानव आनुवंशिकी में वंशावली अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण उपकरण होता है जिसका उपयोग विशेष लक्षण, असामान्यता (abnormality) या रोग का पता लगाने में किया जाता है। वंशावली विश्लेषण में प्रयुक्त कुछ महत्त्वपूर्ण मानक प्रतीकों (symbols) को अग्रांकित चित्र में दिखाया गया है।
मानव वंशावली विश्लेषण में प्रयुक्त प्रतीक।
प्रश्न 11 मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर- मानव में कुल 23 जोड़े क्रोमोसोम के होते हैं। इसमें से 22 जोड़े नर और मादा में बिलकुल एक जैसे होते हैं, इन्हें अलिंग क्रोमोसोम कहते हैं। मादा में X क्रोमोसोमों का एक जोड़ा भी होता है और नर में X के अतिरिक्त एक क्रोमोसोम Y होता है जो नर लक्षण का निर्धारक होता है। नर में शुक्रजनन के समय दो प्रकार के युग्मक बनते हैं। कुल उत्पन्न शुक्राणु संख्या का 50 प्रतिशत X युक्त होता है और शेष 50 प्रतिशत Y युक्त, इनके साथ अलिंग क्रोमोसोम तो होते ही हैं। मादा में केवल एक ही प्रकार के अंडाणु बनते हैं जिनमें X क्रोमोसोम होता है। यदि अंडाणु का निषेचन X धारी शुक्राणु से हो गया तो युग्मनज मादा (XX) में परिवर्धित हो जाता है। इसके विपरीत Y क्रोमोसोम धारी शुक्राणु से निषेचन होने पर नर संतति जन्म लेती है।
प्रश्न 12 शिशु का रुधिर वर्ग O है। पिता का रुधिर वर्ग A और माता का B है। जनकों के जीनोटाइप मालूम कीजिए और अन्य संतति में प्रत्याशित जीनोटाइप की जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर- रुधिर वर्गों की वंशागति (Inheritance of Blood Groups)- मेण्डेल के नियमों के अनुसार होती है। इसकी वंशागति दो या अधिक तुलनात्मक लक्षणों वाले जीन्स (genes) अर्थात् ऐलील्स (alleles) पर निर्भर करती है।
रुधिर वर्गों को स्थापित करने वाले प्रतिजन (antigens) की उपस्थिति या अनुपस्थिति तीन जीन्स के कारण होती है। प्रतिजन A के लिए जीन Ia, प्रतिजन ‘B’ के लिए जीन ।b तथा दोनों प्रतिजन के अभाव के लिए जीन I° उत्तरदायी होते हैं। एक मनुष्य में इनमें से कोई एक या दो प्रकार के जीन्स गुणसूत्र जोड़े पर एक निश्चित स्थल (loci) पर स्थित होते हैं। जीन Ia तथा Ib क्रमशः I° पर प्रभावी होते हैं, जबकि जीना Ia तथा Ib में प्रभाविता का अभाव होता है अर्थात् ये सहप्रभावी (codominant) होते हैं। विभिन्न रुधिर वर्ग के व्यक्तियों के रुधिर वर्ग की जीनी संरचना निम्नांकित तालिका के अनुसार हो। सकती है।
रुधिर वर्ग | A | B | AB | O |
जीनी संरचना | Ia IaIa Io | Ib IbIb Io | Ia Ib | Io Io |
उदाहरण- A तथा B रुधिर वर्ग वाले माता-पिता की सम्भावित सन्तानों के रुधिर वर्गों का जीनोटाइप (genotype) निम्नानुसार होगा।
‘O’ रुधिर वर्ग वाले शिशु के माता-पिता का जीनोटाइप Ia Io तथा Ib Io है। ‘AB’ रुधिर वर्ग वाले का जीनोटाइप Ia Ib A रुधिर वर्ग वाले का Ia Io ‘B’ रुधिर वर्ग वाले का Ib Io और ‘O’ रुधिर वर्ग वाले का जीनोटाइप I° I° होगा।
प्रश्न 13 निम्नलिखित को उदाहरण सहित समझाइए-
- सह-प्रभाविता
- अपूर्ण प्रभाविता
उत्तर-
- सह प्रभाविता- सह प्रभाविता ऐसी घटना है जिसमें F1 पीढ़ी दोनों जनकों से मिलती है तथा जनक लक्षणों को एक साथ व्यक्त किया जाता है।
उदाहरण- यदि पीले रंग के फूल वाले पौधे का संकरण लाल रंग के फूल वाले पौधे से होता है तथा F1 पीढ़ी में, लाल और पीले रंग के दोनों अलील के लिए सह प्रभाविता के कारण सभी संतति नारंगी फूल होते हैं।
- अपूर्ण प्रभाविता- अपूर्ण प्रभाविता ऐसी घटना है जिसमें युग्म विकल्पी के जोड़े को प्रभावी या अप्रभावी रूप में व्यक्त नहीं किया जाता है, लेकिन संकर में एक साथ स्थित होने पर आंशिक रूप से स्वयं को व्यक्त करते हैं।
उदाहरण- गुल अब्बास के पौधे में दो प्रकार के फूल होते हैं, लाल और सफ़ेद तथा संकर गुलाबी रंग के फूल होते हैं।
प्रश्न 14 बिन्दु उत्परिवर्तन क्या है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर- DNA के किसी एक क्षार युग्म (base pair) या न्यूक्लिओटाइड क्रम में होने वाला परिवर्तन, बिन्दु उत्परिवर्तन कहलाता है।
उदाहरण- हँसियाकार कोशिका अरक्तता। (sickle cell anaemia)
प्रश्न 15 वंशागति के क्रोमोसोमवाद को किसने प्रस्तावित किया?
उत्तर- वंशागति के क्रोमोसोम वाद को वाल्टर सटन तथा थियोडर बोमेरी ने प्रस्तावित किया।
प्रश्न 16 किन्हीं दो अलिंगसूत्री आनुवंशिक विकारों का उनके लक्षणों सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर- शरीर में होने वाली उपापचय क्रियाओं के प्रत्येक चरण पर एन्जाइम नियन्त्रण रखते हैं। पूर्ण प्रक्रिया में कहीं भी एक एन्जाइम के बदल जाने या एन्जाइम का निर्माण न होने की दशा में कोई-न-कोई व्यतिक्रम (disorder) उत्पन्न हो जाता है। बीडल तथा टॉटम (George Beadle and E. L. Tatum, 1941) के एक जीन एक एन्जाइम परिकल्पना’ (one gene one enzyme concept) के पश्चात् यह निश्चित हो गया कि अनेक रोग जीनी व्यतिक्रम (genetic disorder) के कारण होते हैं। मानव में होने वाले ऐसे कुछ रोग निम्नलिखित हैं।
दात्र कोशिका अरक्तता (Sickle cell anaemia)- यह मनुष्य में एक अप्रभावी जीन से होने वाला रोग है। जब अप्रभावी जीन समयुग्मकी (Hb Hb) अवस्था में होती है, तब सामान्य हीमोग्लोबिन के स्थान पर असामान्य हीमोग्लोबिन का निर्माण होने लगता है। अप्रभावी जीन के कारण हीमोग्लोबिन की बीटा शृंखला ( 3-chain) में छठे स्थान पर ग्लूटैमिक अम्ल (glutamic acid) का स्थान वैलीन (valine) ऐमीनो अम्ल ले लेता है।
असामान्य हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन का वहन नहीं कर सकता तथा लाल रुधिराणु हँसिए के आकार के (sickle shaped) हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में घातक रक्ताल्पता (anaemia) हो जाती है। जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। विषमयुग्मकी व्यक्ति सामान्य होते हैं, किन्तु ऑक्सीजन का आंशिक दाब कम होने पर इनके लाल रुधिराणु हँसिए के आकार के हो जाते हैं। HbA जीन सामान्य हीमोग्लोबिन के लिए है तथा HbS जीन दात्र कोशिका हीमोग्लोबिन के लिए है।
फिनाइलकीटोन्यूरिया (Phenylketonuria)- यह रोग एक अप्रभावी जीन के कारण होता है। इस लक्षण का अध्ययन सर्वप्रथम सर आर्चीबाल्ड गैरड (Sir Archibald Gariod) ने किया था। फिनाइलएलैनीन (phenylalanine) ऐमीनो अम्ल का उपयोग अनेक उपापचयी पथ (metabolic pathways) में होता है। प्रत्येक पथ में अनेक एन्जाइमें भाग लेते हैं। किसी भी एक एन्जाइम का निर्माण न होने से वह पथ पूर्ण नहीं हो पाता जिससे रोग उत्पन्न हो जाता है।
एक अप्रभावी जीन के कारण फिनाइलएलैनीन से टायरोसीन (tyrosine) के निर्माण के लिए आवश्यक एन्जाइम का निर्माण नहीं हो पाता, इस कारण रुधिर में फिनाइलएलैनीन की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है तथा इसका स्रावण मूत्र में भी होने लगता है। इस अवस्था को फिनाइलकीटोन्यूरिया (phenylketonuria) या PKU कहते हैं। ऐसे बालकों में मस्तिष्क अल्पविकसित रह जाता है। I.Q. का स्तर सामान्यतः 20 से कम रहता है।
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