Class 12 Biology Chapter 4 Notes in Hindi

Class 12 Biology Chapter 4 जनन स्वास्थ्य (Reproductive Health) in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 4 के लिए हिंदी में व्यापक नोट्स प्राप्त करें। सरलीकृत व्याख्या और शामिल प्रमुख अवधारणाएँ।

Class 12 Biology Chapter 4 जनन स्वास्थ्य (Reproductive Health) Notes in Hindi

जनन स्वास्थ्य (Reproductive Health)

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के अनुसार जनन स्वास्थ्य का अर्थ जनन के सभी पहलुओं सहित शारीरिक (Physical), भावनात्मक (Emotional), व्यवहारिक (Behavioral) तथा सामाजिक स्वास्थ्य हैं।

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भारत में जनन स्वास्थ्य के लिए 1951 में परिवार कल्याण कार्यक्रम प्रारंभ किया गया जो वर्तमान में जनन हुए बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम (Reproductive and Child Healthcare Programme) के नाम से जाना जाता है।

RCH का प्रमुख उद्देश्य लोगों में जनन अंगों, द्वितीयक लैंगिक लक्षणों, यौवनारंभ और उससे संबंधित परिवर्तनों, सुरक्षित लैंगिक संबंध, यौन संचारित रोगों, चाइल्ड एण्ड मेटेरनल हेल्थ केयर आदि के बाद बारे में जानकारी प्रदान करना है।

  1. जनसंख्या वृद्धि
  2. प्रजनन के प्रति सर्तकता
  3. लैंगिक अंगों की वृद्धि की तथा यौन संचारित रोगों जानकारी
  4. लैंगिक बुराई तथा लिंग सम्बन्धी अपराध को रोकना
  5. प्रजनन सम्बन्धित समस्याओं के बारे में सूचना

राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण [National Family Health Survey (NFHS)]

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उल्बवेधन (Amniocentesis)

यह एक तकनीक है, जिसमें गर्भाशय में स्थित विकासशील भ्रूण की एम्नियोन गुहा (उल्ब) से एम्नियोटिक द्रव (उल्ब द्रव) निकाल कर उसका परीक्षण किया जाता है‌।

एम्नियोटिक द्रव विकासशील भ्रूण के चारों ओर पाया जाने वाला तरल पदार्थ है, जिसमें विकासशील भ्रूण की कोशिकाएं होती है।

सोनोग्राफी द्वारा भ्रूण की स्थिति का पता लगाकर एम्नियोटिक द्रव को इंजेक्शन के सहायता से निकाला जाता है। इस द्रव में उपस्थित कोशिकाओं को सेंट्रीफ्यूगेशन द्वारा अलग करके उनकी जांच की जाती है।

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एम्नियोसेंटेंसेस के द्वारा भ्रूण में पाए जाने वाले अनुवांशिक अपसामान्यता, उपापचय अपसामान्यता आदि का निदान प्रसव से पहले किया जा सकता है।

वर्तमान समय में इसका दुरुपयोग लिंग की जांच में किया जाता है। इसे कन्या भ्रूण हत्या ( female infanticide) को बढ़ावा मिलता है। इसलिए इस पर रोक लग गई है।

पराध्वनि चित्रण/ अल्ट्रासोनोग्राफी (Ultrasonography)

इस तकनीक में अत्यधिक उच्च आवृत्ति (high frequency) की ध्वनि तरंगों ( sound waves) का उपयोग किया जाता है, जिनकी आवृत्ति 1-15 मेगाहट्र्ज होती है।इसमें ट्रांसड्यूसर नामक उपकरण द्वारा अल्ट्रासाउंड तरंगे उत्पन्न की जाती है, जो भ्रूण के अंगों द्वारा टकराकर वापस लौटती है इनको उसी उपकरण द्वारा ग्रहण किया जाता है। कंप्यूटर द्वारा इन ध्वनि तरंगों की व्याख्या करके प्रतिबिंब बनाया जाता है। इसका उपयोग तथा गर्भाशय में उसकी स्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है।

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जनसंख्या विस्फोट और जन्म नियंत्रण (population explosion and brith control)

मृत्यु दर में कमी आहोर जन्म दर में बढ़ोतरी जनसंख्या विस्फोट का कारण बनती है।

विश्व में सन 1900 में 2 अरब जनसंख्या थी, जो 2000 में बढ़कर 6 अरब हो गई। वर्तमान में यह 7.9 अरब हो चुकी है।

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भारत की जनसंख्या 1947 में 35 करोड़ थी। जो सन 2000 में 100 करोड़ हो गई और सन 2021 में 121 करोड़ हो चुकी है।

भारत की जनसंख्या वृद्धि दर जो 1991 में 2.1% थी वह घटकर 1.7% रह गई है।

जनसंख्या वृद्धि के लिए मुख्य कारण निम्न है-

  1. मृत्यु दर में तीव्र कमी
  2. मातृक मृत्यु दर (MMR) में कमी
  3. शिशू मृत्यु दर (IMR) में कमी
  4. जनन क्षम आयु के लोगों की संख्या में वृद्धि

जनसंख्या वृद्धि दर में कमी लाने के लिए गर्भधारण को रोकना उत्तम उपाय हैं।

गर्भधारण को रोकने के उपाय (Contraceptive Methods)

Class 12 Biology Chapter 4 Notes in Hindi
  • प्राकृतिक विधियां (Natural Methods)
  • रोधक साधन (Barrier Methods)
  • अंतः गर्भाशयी युक्तियां (Intra Uterine Device)
  • गोलियां (Contraceptive Pills)
  • बन्ध्यकरण (Sterilization)

प्राकृतिक विधियां  (Natural Methods)

आवधिक संयम (Periodic abstinence)

आर्तव चक्र के 10 से 17 दिन के बीच की अवधि के कारण गर्भावस्था की गर्भधारण की संभावना अधिक होती है क्योंकि 14 दिन अंडोत्सर्ग होता है इस अवधि में संयम रखकर मैथुन ना करके गर्भधारण से बचा जा सकता है। इसको Rthyme Methods भी कहते है।

स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhea)

प्रसव के बाद शिशु को लगातार स्तनपान कराते रहने से आर्तव चक्र शुरू नहीं होता। जिसे गर्भधारण से बचा जा सकता है। परंतु यह उपाय केवल 6 माह तक कारगर होता है।

बाह्य स्खलन (Coitus Interruptus)

वीर्यसेचन के दौरान शुक्राणुओं को महिला के जनन मार्ग  योनि में नहीं डालने से गर्भधारण को रोका जा सकता है।

रोधक विधियां (Barrier Methods)

विभिन्न प्रकार के रोधक साधन जननांगों को ढक लेते हैं जिसे शुक्राणु और अंडाणु का आपस में मिल नहीं पाते। तथा साथ ही ये साधन यौन संचारित  रोगों से भी सुरक्षा करते हैं। यह साधन रबड़ या लेटेक्स से बनाए जाते हैं। जैसे डायफ्राम, गर्भाशय ग्रीवा, वोल्ट, कंडोम आदि।

कॉन्डोम (Condom)

यह नलिकाकार लेटेक्स आच्छद है, जिसे लिंगन के दौरान नर मैथुनांग के ऊपर वलयित किया जाता है।

परिवार कल्याण कार्यक्रम द्वारा सामान्य ब्रान्ड प्रदान किया जाता है, जो कि निरोध है।

यह युक्ति लैंगिक संचरित रोग STD के विरूद्ध सुरक्षा भी प्रदान करती है।

फेम कवच (मादा कॉन्डोम, Female condom)

यह युक्ति वलय युक्त पोलियुरेथेन पाउच है।

आन्तरिक वलय छोटी होती है, तथा आन्तरिक बन्द सिरे पर उपस्थित होती है।

यह युक्ति बाह्य जेनाइटेलिया तथा योनि को रेखित करती है।

फेम कवच लैंगिक संचरित रोग से भी सुरक्षा प्रदान करती है।

डायफ्राम (Diaphram)

यह किनारों पर स्प्रिंग वलय या लचीली धातु युक्त नलिकाकार रबर आच्छद है, जो योनि के अन्दर स्थापित होता है।

ग्रीवीय केप (Cervical Cap)

यह रबर निप्पल है, जो ग्रीवा पर फिट हो जाती है।

यह युक्ति गर्भाशय में शुक्राणुओं के प्रवेश को रोकती है।

वोल्ट केप (Volt Cap)

यह मोटी रिम युक्त अर्द्धगोलाकार डम्बलाकार रबर या प्लास्टिक केप है, जो कि ग्रीवा पर योनिय वोल्ट के ऊपर फिट होती है।

अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ (आईयूडी, Intra Uterine Device)

आईयूडी वे युक्तियाँ होती है जो अंडाणु तथा शुक्राणु को मिलने से रोकती है। जिससे निषेचन नहीं हो पाता, फलस्वरुप गर्भधारण (Pregnant) नहीं हो पाता।

आईयूडी निम्नलिखित प्रकार की होती है-

औषधि रहित आईयूडी (Non-mediated IUD)

इस प्रकार की युक्ति में प्लास्टिक के बने डिवाइस को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है। जो गर्भाशय के अन्तःस्तर में परिवर्तन करके शुक्राणु को अंडाणु तक जाने से रोकते हैं। जैसे लिप्पेस लूप

तांबा मोचक आईयूडी (Copper Releasing IUD)

इस प्रकार के डिवाइस में T- आकार की संरचना वाले डिवाइस को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है। जिसमें तांबे के तंतु लगे रहते हैं, जो कॉपर आयनों को मोचित करते हैं। यह आयन शुक्राणुओं के भक्षण क्रिया को बढ़ा देते तथा उनकी गतिशीलता को कम कर देते हैं, जिससे निषेचन नहीं हो पाता। जैसे Cu-T, Cu-7, Multiload-375

हार्मोन मोचक आईयूडी (Hormone Releasing IUD)

इस प्रकार की युक्ति हार्मोन का स्राव करती है। जो गर्भाशय के एंडोमेट्रियम में परिवर्तन करके उसको भ्रूण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाते हैं तथा साथ ही गर्भाशय ग्रीवा में श्लेष्मा (Mucus) में परिवर्तन करके गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणु विरोधी बनाती है। जैसे LNG-20, Progestasert

गर्भनिरोधक गोलियां (Contraceptive Pills)

ये प्रोजेस्ट्रोन तथा एस्ट्रोजन हार्मोन के संयोजन वाली गोलियां होती है जो गर्भाशय में परिवर्तन कर देती है। यह गोलियां गर्भाशय ग्रीवा द्वारा स्रावित श्लेष्मा (Mucus) की गुणवत्ता को बदल देती है और गर्भाशय के अंतर को आरोपण के लिए अनुपयुक्त बनाती है, अंडोत्सर्ग में परिवर्तन करती है।

वर्तमान में विभिन्न प्रकार के कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स प्रचलित है। जैसे-

माला-D (Mala-D)

यह आर्तव चक्र के शुरुआत के पहले दिन से 22 दिन तक ली जाती है।

सहेली (Saheli)

यह हफ्ते में एक बार ली जाने वाली गोली है। इसका निर्माण केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (CDRI) लखनऊ द्वारा किया गया।

बन्ध्यकरण / नसबंदी (Sterlization)

नर के शुक्रवाहक तथा मादा के अंडवाहिनी को काटकर बांध देना बंद बन्ध्यकरण / नसबंदी (Sterlization) कहलाता है।

सगर्भता का चिकित्सीय समापन (Medical Termination of Pregnancy)

  • भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेन्सी एक्ट 1971 में लागू हुआ।
  • स्वैच्छा से गर्भ के समापन (voluntarily termination) की प्रक्रिया को प्रेरित गर्भपात या सगर्भता का चिकित्सीय समापन (induced abortion or medical termination of pregnancy.) कहते हैं।
  • जब असुरक्षित यौन संबंधों के कारण गर्भ निरोधक उपाय असफल हो जाते हैं तो गर्भधारण हो जाता है तो उस समय एमटीपी करवाया जाता है।
  1. कभी-कभी सगर्भता बने रहने की स्थिति में मां अथवा भ्रुण को हानि हो सकती है तो एमटीपी किया जाता है।
  2. यदि भ्रूण अत्यधिक रोगी या अपूर्ण होता है तो इस स्थिति में भी एमटीपी किया जाता है।
  3. किसी दुर्घटना जैसे बलात्कार के कारण यदि गर्भ ठहर जाता है तो इसे एमटीपी द्वारा हटाया जाता है।

जब सप्ताह की पहली तिमाही (trimester) होती है तो गर्भ को नष्ट करके इन्हें योनि द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। दूसरी तिमाही (trimester) में एमटीपी करवाना माता के लिए जानलेवा हो सकता है। एमटीपी का उपयोग कन्या भ्रूण हत्या (female feticide) किया जाता है जो एक अपराध है।

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यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Disease)

असुरक्षित यौन संबंधों के कारण फैलने वाले रोग यौन संचारित रोग कहलाते हैं इन्हें गुप्त रोग (Venereal Disease), रतीज रोग, जनन मार्ग संक्रमण (Reproductive Track Infection) आदि नामों से भी जाना जाता है।

गोनोरीया

बैक्टीरिया जनित रोग

रोगजनक – निस्सेरिया गोनोरिय

संचरण –  असुरक्षित यौन संबंध (unprotected sex)

लक्षण

यह मूत्र जनन नलिका की म्युकस झिल्ली का संक्रमण होता है।

मूत्रमार्ग में जलन एवं मूत्र त्याग में दर्द होता है।

मूत्र मार्ग में जलन व दर्द तथा श्वेत द्रव का स्राव होता है।

स्त्रियों में लंबे समय तक यह रोग बने रहने पर बांझपन उत्पन्न हो जाती है।

संक्रमित माता से जन्म लेने वाले बच्चे आँख के संक्रमण से पीड़ित होते हैं।

बचाव – असुरक्षित यौन संबंधों से बचना चाहिए

सिफिलिस

बैक्टीरिया जनित रोग

रोगजनक – ट्रीपोनीमा पेलिडम

संचरण –  असुरक्षित यौन संबंध (unprotected sex)

लक्षण

जनन नलिका में घाव तथा छाले हो जाते है।

मूत्रत्याग के समय जलन होती है। मूँह में छाले हो जाते है।

यदि उपचार नहीं किया जाए तो मृत्यु हो सकती है।

शिश्न तथा योनि पर छोटे छोटे दाने उत्पन्न हो जाते हैं।

मूत्र मार्ग में जलन होती हैं।

यह रोग अधिक फैलने पर श्वसन तंत्र व मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है‌।

दांतों पर विशेष प्रकार के चिह्न हो जाते हैं। जिन्हें हटकिन्सन्स दांत कहते हैं।

बचाव – असुरक्षित यौन संबंधों से बचना चाहिए

क्लैमीडियिएसिस

Class 12 Biology Chapter 4 Notes in Hindi

बैक्टीरिया जनित रोग

रोगजनक – क्लैमीडिया ट्रेकोमैटिस

संचरण –  असुरक्षित यौन संबंध (unprotected sex)

लक्षण– 

  1. मूत्र में गाढें  मवाद का स्राव होना
  2. मूत्र मार्ग में जलन
  3. महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा जलन
  4. गर्भाशय में शोथ (ureteritis)

बचाव – असुरक्षित यौन संबंधों से बचना चाहिए

जेनिटल हर्पीज

वायरस जनित रोग

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रोगजनक – हर्पीज सिंपलेक्स वायरस

संचरण – संक्रमित व्यक्ति से यौन संबंध

लक्षण

  1. शिशन मुंड पर फफोले
  2. मूत्र मार्ग में जलन
  3. बगलों की लसीका ग्रंथि में सूजन

बचाव – असुरक्षित यौन संबंधों से बचना चाहिए

जेनिटल मस्सा / मस्सा की बीमारी / Genital wort

वायरस जनित रोग

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रोगजनक – ह्यूमन पेपिलोमा वायरस

संचरण – रोगी से संबंध

लक्षण – गुदा के आसपास मस्सा हो जाना जो अधिक बढ़ने पर कैंसर उत्पन्न करता है।

हेपेटाइटिस बी

वायरस जनित रोग

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रोगजनक – हेपिटाइटिस बी वायरस

लक्षण –

  1. यकृत में सूजन
  2. विषाणु द्वारा एक कोशिकाओं को नष्ट करने पर पीलिया हो जाना
  3. थकावट हल्का बुखार व कमजोरी

AIDS

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वायरस जनित रोग

रोगजनक – HIV (ह्युमन इम्युनो डेफिसियेन्सि वायरस)

लक्षण

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  1. शरीर के प्रतिरक्षी तन्त्र नष्ट हो जाता है।
  2. लम्बे समय तक खाँसी तथा बुखार शरीर अन्य रोगों द्वारा संक्रमित हो जाता है, जैसे न्यूमोनिया,
  3. इसका कोई इलाज नहीं है। केवल बचाव ही इलाज है।

ट्राईकोमोनिएसिस

प्रोटोजोआ जनित रोग

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रोगजनक – ट्राइकोमोनास वेजिनेलिस

संचरण – संक्रमित व्यक्ति से यौन संबंध स्थापित करना

लक्षण

  1. मादा में जननांग से तरल पदार्थ का स्राव
  2. योनि में जलन एवं खुजली होती है योनि में सूजन
  3. मूत्र मार्ग में जलन व सूजन

बन्ध्यता (Infertility)

बांझपन का से ग्रसित दंपति संतति उत्पन्न करने में असक्षम होती हैं। जिसका कारण स्त्री या पुरुष में जनन संबंधी विकार का होना है।

बन्ध्य दंपति में संतति उत्पन्न करने के लिए सहायक जनन तकनीक (Assisted Reproductive Technique) काम में ली जाती है। जो निम्न प्रकार की होती है-

पात्रे निषेचन (In Vitro Fertilization – IVF)

इस विधि में शुक्राणु और अंडाणु का निषेचन स्त्री के शरीर के बाहर किसी पात्र में होता है। इस तकनीकी द्वारा उत्पन्न संतति परखनली शिशु कहलाती है।

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दाता या स्त्री अथवा पुरुष अंडाणु अथवा शुक्राणु प्राप्त करके उनका परखनली में निषेचन करवाया जाता है।जिससे युग्मनज का निर्माण होता है।

युग्मनज का स्थानांतरण माता के शरीर में दो प्रकार से होता है-

  • युग्मनज अंतः अण्ड वाहिनी स्थानांतरण (Zygote Indtra Fallopin tube Transfer)

यदि भ्रूण 8 ब्लास्टोमियर से कम होता है, तो इसे अंड वाहिनी में स्थानांतरित किया जाता है।

  • अंतः गर्भाशय स्थानांतरण (Intra Uterine Transfer)

यदि 8 से अधिक का होता है तो इसे गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है।

जीवे निषेचन (In Vivo Fertilization)

इस प्रकार की प्रक्रिया में अंडाणु का निषेचन स्त्री के शरीर में होता है। यह निम्न प्रकार से किया जा सकता है।

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अंडाणु अन्तः अंडवाहिनी स्थानांतरण (Gamete Indtra Fallopin tube Transfer)

यदि किसी स्त्री में अंडाणु का निर्माण नहीं होता तो किसी दाता से अंडाणु प्राप्त करके उसे इस तरीके फेलोपियन ट्यूब में स्थानांतरित कर दिया जाता है।

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अन्तः गर्भाशय स्थानांतरण (Intra Uterine Transfer)

यदि किसी पुरुष में शुक्राणु का निर्माण नहीं होता या शुक्राणु की संख्या बहुत कम होती है, तो दाता से शुक्राणु प्राप्त करके उसे कृत्रिम रूप से स्त्री के गर्भाशय में प्रवेश करवा दिया जाता है।

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