Class 12 Biology Chapter 3 शुक्राणु की संरचना एवं प्रकार तथा वीर्य Notes in Hindi

Class 12 Biology Chapter 3 Notes in Hindi: शुक्रानु की संरचना: कक्षा 12 जीव विज्ञान शुक्राणु कोशिकाओं की संरचना, प्रकार और कार्य को समझें अध्याय 3 नोट्स हिंदी में – कक्षा 12 के लिए विशेषज्ञ जीव विज्ञान नोट्स

आपको “शुक्रानु की संरचना” (शुक्राणु की संरचना) विषय पर हिंदी में कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 3 के व्यापक नोट्स मिलेंगे। कक्षा 12 के छात्रों के लिए तैयार किए गए विशेषज्ञ जीवविज्ञान नोट्स के साथ शुक्राणु कोशिकाओं के विभिन्न प्रकारों और कार्यों की गहरी समझ प्राप्त करें।

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शुक्राणु की संरचना एवं प्रकार तथा वीर्य

शुक्राणु (Sperm): शुक्राणु के अंग्रेजी शब्द Sperm की व्युत्पती  ग्रीक शब्द  स्पर्मा से  हुई है जिसका अर्थ है ‘बीज’ (Seed)। शुक्राणु  सूक्ष्म धागेनुमा संरचना है। शुक्राणु  के उत्पन्न होने की प्रक्रिया को शुक्रजनन या स्पर्मेटोजेनेसिस (Spermatogenesis) कहा जाता है। शुक्राणु नर युग्मक होते है। जो वृषण के भीतर नर जर्म कोशिकाओ के द्वारा  उत्पन्न होते हैं।

शुक्राणुओं की संरचना अलग-अलग जीवों में अलग-अलग प्रकार की होती है। जैसे- मानव में चम्मच के आकर का, चूहे में हुक के आकर का, एस्केरिस में अमिबोइड और पूंछविहीन, क्रिस्टेशियन जीवों में तारेनुमा, तथा पक्षियों में सर्पिलाकार।

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शुक्राणु की संरचना एवं प्रकार तथा वीर्य

शुक्राणु अधिवृषण में संचित रहने पर गतिहीन (Motile) रहते हैं। लेकिन नर की सहायक जनन ग्रंथियों के स्रावों की सहायता से ये ओर अधिक सक्रिय व गतिशील हो जाते हैं। शुक्राणुओं के विभिन्न सहायक ग्रंथियों के स्रावों के साथ मिलने से वीर्य (Semen)) का निर्माण होता है। एक स्खलन में लगभग 1 मिलियन (10 लाख की संख्या) शुक्राणु विसर्जित होते हैं। ये शुक्राणु जब मादा की योनि में प्रविष्ट कराये जाते हैं। तो ये मादा की योनि के भीतर 2mm प्रति मिनट की चाल से गति करते हैं।

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संरचनात्मक रूप से मानव शुक्राणु के चार मुख्य भाग होते है- शीर्ष ग्रीवा, मध्यभाग एवं पुच्छ।

शुक्राणु का शीर्ष भाग दो भागों से मिलकर बना होता है –

अग्रपिंडक या एक्रोसोम  (ACROSOME )

शुक्राणु का शीर्ष भाग पर एक टोपीनुमा संरचना होती है,  जिसे  अग्रपिंडक (ACROSOME )कहते हैं। जो कि निषेचन के समय शुक्राणु द्वारा अंड भेदन (Penetrate) यानी अंड में प्रवेश करने में सहायता करता है। अग्रपिंडक (ACROSOME ) गोल्जी काय का रूपांतरण होता है।

अग्रपिंडक या एक्रोसोम  (ACROSOME ) में अंड  को भेदने के लिए एंजाइम होते है, जिनको Sperm Lysin कहते है। मानव में तीन प्रकार के Sperm Lysin Enzyme पाए जाते है –

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  1. Hyaluronidase Enzyme
  2. Proacrosine Enzyme
  3. Corona Penetrating Enzyme

Hyaluronidase Enzyme

यह एंजाइम अण्डाणु के चारों  ओर पायी जाने वाली कोरोना रेडीयेटा को पुटकीय कोशिकाओ के बीच में पाए जाने वाले हायलुरोनिक अम्ल को अपघटित करता है। जिससे कोरोना रेडीयेटा मे छेद हो जाता है।

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Proacrosine Enzyme

यह जोना पेलुसिडा को भेदने का कार्य करता है।

Corona Penetrating Enzyme

यह कोरोना रेडीयेटा को भेदने मेंसहायता करता है।

अगुणित केन्द्रक (HAPLOID NUCLEUS)

अग्रपिंडक या एक्रोसोम  (ACROSOME ) के पीछे की ओर एक अगुणित (HAPLOID , n) केन्द्रक  होता है। जो पिता  से आनुवंशिक लक्षणों को संतति में पहुचता  है। केन्द्रक में हिस्टोन प्रोटीन के स्थान पर प्रोटामाइन प्रोटीन पायी जाती है।

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एक्रोसोम  (ACROSOME ) तथा केन्द्रक के बीच में रिक्त स्थान को परफोरटोरियम (PERFORATORIUM) कहते है।

ग्रीवा(NECK)

इसमें दो तारक काय (Centriole) होते है।  जो एक दुसरे के 90० के कोण पर स्थित होते है। इसमें एक समीपस्थ (Proximal Centriole) तथा दूसरा दूरस्थ (Distal Centriole) कहलाता है।   समीपस्थ तारक काय  युग्मनज (Zygote) में समसूत्री विभाजन विदलन  (Cleavage) की शुरुआत करता है।  जबकि दूरस्थ तारक काय अक्षीय तंतु (Axial Filament) बनाता है। जो पूंछ का निर्माण करता है।

मध्यभाग (Middle Piece)

इस भाग में MITOCONDRIA होते है, जो गति के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं। माइटोकांड्रिया अक्षीय तंतु (Axial Filament) के  चारों ओर व्यवस्थित होते है जिसे निबेनकर्न (Nebenkern) कहा जाता  है।

मध्यभाग को कोशिका द्रव्य एक महीन परत के रूप में घेरा रहता है, जिसे मेनचैट (MANCHETTE)  कहते है। कुछ जन्तुओ के शुक्राणुओं के मध्यभाग के अंतिम भाग में एक गहरे रंग की वलय होती है, जिसे मुद्रिका सेंट्रीओल (RING CENTRIOLE)  कहा जाता है।

पुच्छ(TAIL)

शुक्राणु का सबसे अधिक लम्बा भाग पूंछ होता है। ये गति के लिए आवश्यक हैं। इसमें अक्षीय तंतु (Axial Filament) पाया जाता है। जिसे एक्सोनीमा भी कहते है। ये कशाभ के समान 9+2 विन्यास वाली संरचना है।

नोट – सबसे छोटे शुक्राणु मगरमच्छ तथा एम्फीओक्सकस तथा सबसे बड़े शक्राणु ड्रोसोफिला बाइफरका के होते है।

शुक्राणु के प्रकार (TYPES OF SPERM)

शुक्राणुओं को उनकी संरचना के आधार पर दो भागों में बंटा जाता है –

कशाभी शुक्राणु (FLAGELLATED SPERMATOZOA)

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इस प्रकार के शुक्राणु में पूंछ में  एक या दो  कशाभ पाए जाते है

एक कशाभी शुक्राणु -कशेरुकी जीवो में पाए जाते है।  M89

द्विकशाभी शुक्राणु – ते टॉडफिश में पाए जाते है।

अकशाभी शुक्राणु (FLAGELLATED SPERMATOZOA)

इस प्रकार के शुक्राणु में कशाभ नहीं पाए जाते। ऐसेशुक्राणुनिमेटोड तथा क्रिस्टेसियन जंतुओं में पाए जाते है। जैसे – एस्केरिस के अमिबोइड शुक्राणु।

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वीर्य (SEMEN)

शुक्राणु  तथा प्रोस्टेट ग्रंथि से स्रावित शुक्रीय प्लाज्मा मिलकर वीर्य का निर्माण करते है। जो क्षारीय श्वेत गाढ़ा द्रव होता है। जिसका pH का मान 7.2 होता है। वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या तथा स्थिति के आधार पर निम्न शब्दावली काम में लेते है।

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ओलिगोस्पेर्मिया (OLIGOSPERMIA)– प्रति ml वीर्य में 2मिलियन से कम शुक्राणुओं का पाया जाना।

एजूस्पेर्मिया (AZOOSPERMIA) – वीर्य में शुक्राणुओं अनुपस्थित होना।

नेर्कोस्पेर्मिया (NECROSPERMIA) – वीर्य में अचल शुक्राणुओं का पाया जाना।

मादा जनन तंत्र

मादा जनन तंत्र (Female Reproductive System) इसे मादा जननांग (Female reproductive organ)  मादा के लैंगिक अंग (Female sexual organs) भी कहा जाता है।

यह जनन तंत्र स्त्रियों के श्रोणि या पेल्विक में भाग (Pelvic Region) में स्थित होता हैं। इस तंत्र में अंडाशय (ovaries), अंडवाहिनी(Fallopian Tube), गर्भाशय (uterus), योनि (vagina) तथा बाह्य जननांग (Outer genital) शामिल है।

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मादा जनन के इन सभी लैंगिक अंगो की स्थिति (Position of sexual organs) को निम्न चित्र द्वारा जान सकते है-

अंडाशय (Ovary)

यह माता का प्राथमिक लैंगिक अंग (Primary Sex oragan) है।

प्रत्येक अंडाशय 3 सेमी लंबा 2 सेमी चौड़ा तथा 1 सेमी मोटा होता है। दोनों अंडाशय उदर गुहा (Abdominal Cavity) में पृष्ठ रज्जू (Spinal Cord) के दोनों ओर श्रोणि भाग (Pelvic Region) में स्थित होते हैं।

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अंडाशय स्नायु (लिगामेंट, Ligament)  द्वारा गर्भाशय से जुड़े रहते हैं।

प्रत्येक अंडाशय मिसोवेरियम (Mesovarium) द्वारा श्रोणि भाग की दीवार से टिका होता है। मिसोवेरियम (Mesovarium) के लगने के स्थान पर नाभिका या हाइलम (Hilum) होता है। जिससे रुधिर वाहिनियां (Blood vessels) तथा तंत्रिकाएं (Nurve) अंडाशय में प्रवेश करती है।

अंडाशय के द्वारा मादा हार्मोन (एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्ट्रोन ) तथा अंडाणुओं (Ovem) का निर्माण होता है।

अंडाशय तीन परतों (Layers) द्वारा घिरा रहता है-

सबसे बाहरी परत पेरिटोनियम (Peritoneum)

मध्य में जनन एपिथीलियम (Germinal Epithelium)

सबसे आंतरिक टयुनिका एल्बूजीनिया (Tunica Albuginea)

इन परतों से घिरा अंडाशय का आंतरिक भाग स्ट्रोमा (Stroma) या पीठिका कहलाता है। जो दो प्रकार का होता है-

बाहर की तरफ स्ट्रोमा कोर्टेक्स (Stroma Cortex ,पीठिका वल्कुट) तथा अंदर की तरफ स्ट्रोमा मेडुला (Stroma Medulla, पीठिका मध्यांश) होता है।

स्ट्रोमा कोर्टेक्स में अंडाशय  पुट्टीकाए (Ovarian Follicle) पाई जाती है। जबकि स्ट्रोमा मेडुला में रुधिर वाहिनियां होती है।

अंडवाहिनी या फैलोपियन ट्यूब (Fallopian Tube)

प्रत्येक अंडाशय से एक लंबी कुंडलीत नलिका निकलती है। जिसको अंडवाहिनी, डिंबवाहिनी, या फैलोपियन ट्यूब (Fallopian Tube or Oviduct) कहा जाता है।

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फैलोपियन ट्यूब 10-12 सेमी लंबी होती है। इस नलिका के तीन भाग होते हैं-

  1. कीपक (Infundibulum)
  2. तुम्बिका (Ampulla)
  3. संकिर्ण पथ (Isthumus)

कीपक इफंडीबुल्म (Infundibulum)

कीपक भाग अंडाशय को घेरे रखता है। इस पर अंगुली नुमा उभार होते हैं जिनको झालर या फिम्ब्री (Fimbri) कहते हैं।

अंडोत्सर्ग (Ovulation) के दौरान निकलने वाला अंडाणु (Ovem) फिम्ब्री के द्वारा ही ग्रहण किया जाता है।

तुम्बीका (Ampulla)

कीपक या इफंडीबुल्म से  जुड़ा चौड़ा भाग तुम्बिका या एम्पुला (Ampulla) कहलाता है।

संकिर्ण पथ (Isthmus)

तुम्बीका या एम्पुला (Ampulla) के आगे का संकरा भाग इस्थमस (Isthmus) या संकिर्ण पथ कहलाता है।

एम्पुला तथा इस्थमस के संधि स्थल (Connective Site) पर ही निषेचन (fertilization) की प्रक्रिया संपन्न होती है।

गर्भाशय (Utrus)

श्रोणि गुहा (Pelvic Cavity ) के मध्य मे पेशियों से बना थैलीनुमा गर्भाशय होता है। ये  उल्टी रखी नाशपति के आकार की एक संरचना है। जिस में भ्रूण का विकास (Embryo Development) होता है।

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इसकी तीन भित्तिया होती  हैं-

  1. सबसे बाहरी भित्ति परिगर्भाशय या पेरीमेट्रियम (Perimetrium)
  2. मध्य की भित्ति पेशीस्तर या मायोमेट्रियम (Mayometrium)
  3. सबसे अंदर अंतस्तर या एंडोमेट्रियम (Endometrium)

मादा के गर्भाशय (Utrus) के तीन भाग होते है-

  1. ऊपरी भाग फंडस(Fundus)
  2. बीच का भाग काय (Body)
  3. सबसे निचला भाग ग्रीवा (Cervix)

गर्भाशय का ग्रीवा (सर्विक्स) भाग एक नलिका में खुलता है जो योनि (Vagina) कहलाता  है। ग्रीवा (Cervix)  में होने वाले केंसर को सर्विकल केंसर (Cervical Cancer) कहते है।

योनि (Vagina)

यह लगभग 7 से 10 सेमी लंबी एक नलिका है। जिसके द्वारा शुक्राणुओं को ग्रहण किया जाता है। इसलिए इसे मैथुन कक्ष (Copulation Chamber) भी कहते है। इसका निचला सिरा शरीर के बाहर खुलता है। जो बाह्य जननांग (External sex organ) बनाता है।

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बाह्य जननांग (Outer Sex Organ)

स्त्री के बाह्य जननांग में योनिमुख (Vaginal Orifice), जघन शैल (Mons Pubis), दीर्घ भगोष्ठ (Labia Majora), लघु भगोष्ठ (Labia Minora) तथा भगशेफ (Clitoris) सम्मिलित है। इन सभी को सम्मिलित रुप से भग कहा जाता है।

सहायक ग्रंथियां (Associary Glands)

स्त्री के सहायक ग्रंथियों में स्तन ग्रंथि (Mammary Gland), बर्थोलिन ग्रंथि (Bartholin Gland),  स्केनि ग्रंथि (Skene Gland),  पेरीनियल ग्रंथि (Perineal Gland) तथा रेक्टल ग्रंथि (Rectal Gland) सम्मिलित है-

स्तन ग्रंथियां (Mammary Gland)

ये श्वेत ग्रंथियों (Sweat Gland) का रूपांतरण होती है। ये नर में भी पाई जाती है। लेकिन उनमें यह अवशेषी अंग के रूप में होती है।

प्रत्येक स्तन का ग्रंथिल उत्तक 15-20 स्तन पालियों (Mammary Lobes) में विभक्त होता है। इनमें कोशिकाओं के गुच्छ होते हैं जिन्हें कुपिका (Alveoli) कहते हैं।

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कुपिकाओं की कोशिकाओं से दुग्ध (Milk Production) स्रावित होता है। और जो कुपिकाओं की गुहा (Lumen) में एकत्रित होता है।

कुपिका स्तन नलिकाओं (Mammary Tubes) में खुलती है। प्रत्येक पाली की नलिकाएं मिलकर स्तन वाहिनी (Mammary duct) का निर्माण करती है। कई स्तन वाहिनीयां (Mammary ducts) आपस में मिलकर तुम्बिका (Ampulla) बनाती है।

तुम्बिका 15 से 20 दुग्ध वाहिनी (Lactiferous Ducts द्वारा स्तन से बाहर निकलती है।

स्तनों (Breast) के आगे की ओर का उभार निप्पल या चूचक (Nipple) कहलाता है। चूचक के चारों ओर का भूरे रंग का भाग एरिओला (Areola) कहलाता है।

स्किनी ग्रंथि (Skene Gland)

यह छोटी ग्रंथियां होती है। जो मूत्राशय (Urethra) के चारों ओर पाई जाती है। यह नर में पाई जाने वाली प्रोस्टेट ग्रंथि (Prostate Gland) के समान होती है। जो श्लेष्मा (Mucus) का स्राव करती है।

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बर्थोलिन ग्रंथि (Bartholin Gland)

ये जोड़ीदार ग्रंथि होती है। जो योनि के दोनों ओर पाई जाती है। योनीमुख (Vaginal Orifice) के दोनों ओर खुलती है।

यह मानव में पाए जाने वाली बल्बोंयूरोथल ग्रंथि (Bulbourethral Gland) के समान होती है। इनके द्वारा स्रावित रस स्नेहक (Lubricant) का कार्य करता है।

पेरेनियल ग्रंथि (Perineal Gland)

यह एक जोड़ी ग्रंथियां होती है। जो बर्थोलिन (Bartholin Gland) के पीछे स्थित होती है।

इस से स्रावित रस फेरेमोन (Pheromone) की तरह  कार्य करती है। जो उत्तेजना उत्पन्न करता है।

रेक्टल ग्रंथि (Rectal Gland)

यह ग्रंथि मलाशय (Rectum) के दोनों ओर स्थित होती है। जिनका स्राव उत्तेजना उत्पन्न करता है।

अंडजनन (Oogenesis)

अंडाशय (Ovary) में अण्डाणु के निर्माण की प्रक्रिया को अंडजनन (Oogenesis) कहते है।

अंड जनन की शुरुआत भुर्णीय अवस्था में हो जाती है।

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जब भूर्ण 7 माह का होता है तो उनमे अंड जननी कोशिकाओं (oogonia) का निर्माण हो जाता है।

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अंडजनन निम्न अवस्थाओ में सम्पन्न होता है-

  1. गुणन प्रावस्था  (Multiplication phase)
  2. वृद्धि प्रावस्था  (Growth phase)
  3. परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase)

गुणन प्रावस्था  (Multiplication phase)

इस प्रावस्था में अण्डाशय की प्राम्भिक जननिक कोशिकाए (primordial germinal cell ) अनेक समसूत्री विभाजनों द्वारा अण्डजननी कोशिका (oogonia) का निर्माण करती है।

उगोनिया में भी समसूत्री विभाजन के द्वारा संख्या में वृद्धि होती है।

वृद्धि प्रावस्था  (Growth phase)

उगोनिया आकार में वृद्धि करके प्राथमिक अण्डक (Primary Oocyte) का निर्माण करती है।

प्राथमिक उसाइट के अर्द्धसूत्री विभाजन प्रारम्भ हो जाता है। परन्तु यह अर्द्धसूत्री विभाजन प्रथम (Meiosis-I) की प्रोफेज–I की डिप्लोटिन उप-प्रावस्था में रुक जाता है । और अन्य विभाजन यौवनारम्भ के पश्चात होता है इसे डिक्टीऐट अवस्था (dictyate stage) कहते है।

पुटकों का निर्माण (Formation of Follicals)

प्राथमिक अण्डक कोशिकाओं (Primary Oocytes) के चारों ओर कणिकीय कोशिकाओं (granulasa cells) का जमाव होने से प्राथमिक पुटक (Primary Follical) बनते है।

उपरोक्त सम्पूर्ण प्रक्रिया भुर्णीय अवस्था में हो जाती है जिसके कारण जन्म के समय स्त्री के अंडाशय (Ovary) में  प्राथमिक अण्डक (Primary Oocytes) युक्त  प्राथमिक पुटक (Primary Follical) पाए जाते है।

प्राथमिक पुटक (Primary Follical) की संख्या वयस्क होने तक कम होती रहती है। और यौवनारम्भ के समय स्त्री के प्रत्येक अंडाशय (Ovary) में 60,000 – 80,000 प्राथमिक पुटक (Primary Follical) शेष रहते है।

प्राथमिक पुटक (Primary Follical) के चारों और कणिकीय कोशिकाओं (granulasa cell) की संख्या में वृद्धि होती है और दो स्तर का निर्माण कर लेती है। जिसे द्वितीयक पुटक (Secondary Follical) कहते है ।

द्वितीयक पुटक के चारों और गुहा बनने से ये तृतीयक पुटक (Turtary Follical) में रुपांतरीत हो जाता है। इसमें एक गुहा (Cavity) का निर्माण हो जाता है। जिसे एंट्रम गुहा कहते है।

प्राथमिक अण्डक (Primary Oocytes)  इस गुहा (Cavity) में एक संरचना डिस्कस प्रोलीजेरीयस (discus proligerious) के द्वारा लटका रहता है। इसे cumulus oopharus  भी कहते है ।

तृतीयक पुटक के चारों ओर दो स्तर पाए जाते है जिन्हें अन्त प्रवारक (थीका एंट्रना Theca Interna) तथा बाह्य प्रवारक (थीका एकस्टरना Theca externa) कहते है।

परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase)

तृतीयक पुटक में उपस्थित प्राथमिक अण्डक (Primary Oocyte) अर्द्धसूत्री विभाजन के द्वारा एक वृहद द्वितीयक अण्डक (Seconday Oocyte) एव एक धुर्वीय पिण्ड (polar body) का निर्माण कर लेता है। अब इस संरचना को ग्राफियन पुटक (Graafian follicle) कहते है।

द्वितीयक अण्डक (Seconday Oocyte) के चारों ओर एक पारदर्शी झिल्ली का निर्माण होता है। जिसे जोना पेल्युसिडा (Zona Pellucida) कहते है।

ग्राफियन पुटक फटकर द्वितीयक अण्डक (Secondary Oocyte) को अंडाशय (Ovary) से बाहर मोचित करता है। जिसे अण्डोत्सर्ग (Ovulation) कहते है।

द्वितीयक अण्डक (Secondary Oocyte) अर्द्धसूत्री विभाजन द्वितीय (Meiosis-II) निषेचन (Fertilization) से ठीक पहले होता है।

महिलाओं में आर्तव चक्र

आर्तव चक्र (menstrual cycle)

प्राइमेट मादाओं में होने वाले जननिक चक्रीय परिवर्तन को आर्तव चक्र या मासिक धर्म या माहवारी कहते है।

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रजोदर्शन (menarch)

10-14 वर्ष की आयु में प्रथम बार आर्तव चक्र की शुरुआत को रजोदर्शन (menarch) कहते है।

रजोनिवृति (menopause)

45-50 वर्ष की आयु में आर्तव चक्र लगभग बंद हो जाता है। और मादा में अंडाणुओं का निर्माण नहीं होता इसे रजोनिवृति (menopause) कहते है।

रजोदर्शन (menarch) तथा रजोनिवृति (menopause) के मध्य की अवधि को जनन अवधि कहते है।

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आर्तव चक्र की प्रावस्थाएँ (Phages of Menstrual cycle )

महिलाओं में होने वाले आर्तव चक्र को  निम्न प्रावस्थाओ में विभक्त किया जाता है-

  1. स्रावी प्रावस्था (menses phases)
  2. पुटकीय प्रावस्था (follicular phase)
  3. अण्डोत्सर्ग प्रावस्था (ovulatory phase)
  4. ल्युटीयल प्रावस्था (luteal phase)

स्रावी प्रावस्था (Menses phases)

यह 1 से  5th  दिन के मध्य होती है। निषेचन की प्रक्रिया नहीं होने पर अनिषेचित अण्डाणु का योनी (Vagina) के माध्यम से निष्कासन होता है।

इस दौरान पीत पिण्ड (Carpus Lutium) ह्रासित होता है और यह श्वेत पिण्ड (Carpus Abucans) में बदल जाता है।

कार्पस ल्युटीयम के ह्रासित होने पर किसी प्रकार के हॉर्मोन का स्राव नहीं होता जिससे गर्भाशय के अन्त स्तर (endometrium) का विखंडन होने लगता है।

योनी मार्ग द्वारा रक्त के रूप में गर्भाशय अन्त स्तर (endometrium) तथा अनिषेचित अण्डाणु को बहार निकाल दिया जाता है जिसे ऋतु स्रावी कहते है।

पुटकीय प्रावस्था (Follicular phase)

यह 6th से 13th  दिन के मध्य होती है।

इस प्रावस्था के दौरान अण्डाशय के अन्दर प्राथमिक पुटक (Primary follicle) में वृद्धि होती है। और यह एक पूर्ण परिपक्व ग्राफीयन पुटक (Graafian follicle) में बदल जाता है।

गर्भाशय में पुनरुदभवन (proliferation) के द्वारा अन्तस्तर  (endometrium ) का पुन: निर्माण होता है। इसलिए इसे पुनरुदभवन प्रावस्था (proliferation phase) भी कहते है।

अण्डाशय तथा गर्भाशय में इस प्रकार का परिवर्तन पीयुष हार्मोन (Pittutary gland) तथा अण्डाशयी हार्मोन द्वारा प्रेरित होते है।

पीयुष ग्रंथि (Pittutary gland) द्वारा गोनेडोट्रोपिनस (LH a FSH) का स्राव अधिक होता है।

गोनेडोट्रोपिनस (LH a FSH)  पुटकीय परिवर्धन (Follicle Development) को प्रेरित करता है। तथा साथ ही पुट्को द्वारा एस्ट्रोजन हार्मोन के स्राव को प्रेरित करता है।

अण्डोत्सर्ग प्रावस्था (Ovulatory phase)

LH व FSH का स्राव आर्तव चक्र के मध्य में (14 वे दिन) सर्वाधिक होता है। जिसे LH सर्ज कहते है।

14 वे दिन LH सर्ज  ग्राफियन पुटक के फटने को प्रेरित करता है जिससे ग्राफीयन पुटक फटकर अण्डाणु को मोचित करता है। इसे अण्डोत्सर्ग (Ovulation) कहते है।

पीतक/ ल्युटीयल प्रावस्था (Luteal phase)

यह 15th से 28th  दिन के मध्य होती है।

इस प्रावस्था को  पश्च अण्डोत्सर्ग प्रावस्था (Post ovulation phase) या स्रावी पूर्व प्रावस्था permenstrual phase भी कहते है।

अण्डोत्सर्ग पश्चात शेष बचे पुटकीय कोशिकाओ के द्वारा एक पीत पिण्ड (कार्पस ल्युटीयम) का निर्माण होता है।

पीत पिण्ड (कार्पस ल्युटीयम) प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन का स्राव करता है।

प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन गर्भाशय के अन्त स्तर (endometrium) को बनाय रख़ने का कार्य करता है।

यह हार्मोन अन्तस्तर (endometrium) में निषेचित अंड के अन्तरोपण (Implantation) तथा सगर्भता (Pregnancy) को बनाय रखने का कार्य करता है।

सगर्भता (Pregnancy) के दौरान आर्तव चक्र बंद हो जाता है।

यदि निषेचन नहीं होता तो रक्त स्रावी प्रावस्था पुनः आ जाती है।

स्रावी प्रावस्था (menses phases) की अनुपस्थिति निषेचन (Fertilization) तथा गर्भधारण (Pregnancy) का संकेत है।

निषेचन (Fertilization in women)

शुक्राणु (Sperm) तथा अण्डाणु (Ovum) के संलयन (Fusion) से द्विगुणित युग्मनज (zygote) का निर्माण होना निषेचन (Fertilization) कहलाता है।

निषेचन दो प्रकार का होता है-

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  1. बाह्य निषेचन (External Fertilization)
  2. आंतरिक निषेचन (Internal Fertilization)

बाह्य निषेचन (External Fertilization)

जब निषेचन की प्रक्रिया मादा शरीर के बाहर जल या किसी अन्य माध्यम में होती है तो इसे बाह्य निषेचन कहते है। 

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मादा के द्वारा जल में अंडाणुओं को छोड़ा जाता है, जिसे स्पोनिंग (spawing) कहते है। इन अंडाणुओं पर नर शुक्राणुओं को छोड़ता है, जिससे निषेचन होता है।

ऐसा जलीय अशेरुकियों, अस्थिल मछलियों (bony fish) तथा उभयचर (Amphibia) में होता है।

आंतरिक निषेचन (Internal Fertilization)

जब निषेचन की प्रक्रिया मादा शरीर के अन्दर होती है तो इसे आंतरिक निषेचन कहते है।

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ऐसा उपास्थिल मछलियों, रेप्टाइल, एवीज तथा मेमेलिया में होता है।

मानव में निषेचन की क्रियाविधि (Fertilization in Human)

  • शुक्राणु गति करते हुए अंडवाहिनी (Fellopian tube) तक पहुँचते है। जहाँ निषेचन होता है।
  • शुक्राणु (Sperm) तथा अण्डाणु (Ovum) के सम्पर्क में आने पर अण्डाणु (Ovum) के कोरोना रेडिएटा पर फर्टीलाइजीन प्रोटीन पाया जाता है इसके विपरित शुक्राणु (Sperm) पर एंटीफर्टीलाइजीन पाया है।
  • फर्टीलाइजीन एक ग्लाइकोप्रोटीन है। जो एमिनो अम्ल तथा कार्बोहाइड्रेट का बना होता है।
  • फर्टीलाइजीन तथा एंटीफर्टीलाइजीन जाति विशिष्ट होते (Species specific) है। जो ताला-चाबी सिद्धांत पर कार्य करते है| इस प्रकार शुक्राणु (Sperm) की पहचान होती है।
  • शुक्राणु (Sperm) की पहचान होने के पश्चात एक्रोसोम के द्वारा स्पर्मलाइसिन एंजाइम हाइलुरीडीनेज स्त्रावित किए जाते है।
  • हाइलुरीडीनेज कोरोना रेडिएटा में पाए जाने वाले हाइलुरोनिक अम्ल का पाचन करता है
  • हाइलुरोनिक अम्ल के  पाचन से जोना पेलुसिडा में छेद करके शुक्राणु (Sperm) का शीर्ष भाग अण्डाणु (Ovum) के जीवद्रव्य में प्रवेश करता है।
  • शुक्राणु (Sperm) के अण्डाणु (Ovum) में प्रवेश होने के पश्चात पोलीस्पर्मी  को रोकने के लिए जोनाप्लेसुडा के स्तर में बदलाव आ जाता है।
  • जब शुक्राणु (Sperm) अण्डाणु (Ovum) में प्रवेश कर जाता है तो शुक्राणु (Sperm) द्वितीयक अण्डक में अर्द्धसूत्री विभाजन -II को प्रेरित करता है।
  • अर्द्धसूत्री विभाजन -II से एक अण्डाणु (Ovum) व एक धुर्वीय पिण्ड बनता है।
  • शुक्राणु (Sperm) अण्डाणु (Ovum) के अगुणित केन्द्रक के साथ संलयित हो जाता है जिससे द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है।

निषेचन से सम्बंधित शब्दार्थ (Terms Related to Fertilization)

केरियोगेमी – युग्मकों के केन्द्रकों का संलयन (Fusion) होना। [Karyo – केन्द्रक gamy – संलयन ]

साइटोगेमी – युग्मकों के कोशिकाद्रव्यों का संलयन (Fusion) होना।  [Cyto – कोशिका gamy- संलयन ]

आइसोगमी – समान आकार के युग्मकों का संलयन होना।  [Iso – समान ]

एनआइसोगमी – असमान आकार के युग्मकों का संलयन (Fusion) होना।  [an अ/ नहीं – iso – समान]

एम्फीमिक्सिंग – युग्मकों के गुणसूत्र समुच्चय का संलयन होना।  [Apmhi – उभय ]

पोलीस्पर्मी –  एक से अधिक शुक्राणु (Sperm)ओं का अण्डाणु (Ovum) में प्रवेश होना।

अन्तर्रोपण, सगर्भता, भूर्णीय परिवर्धन, प्रसव तथा दुग्धस्त्रावण

अन्तर्रोपण (Implantation)

निषेचन के पश्चात बनने वाले युग्मनज में विदलन के द्वारा 2,4,8,16 कोशिकाओं का निर्माण होता है। इन कोशिकाओं को कोरकखण्ड या ब्लास्टोमियर कहते है। इस 8-16 कोरक खण्ड युक्त संरचना को तुतक या मोरुला कहते है।

मोरुला के बाहर की ओर ब्लास्टोमियर बाहरी परत के रूप में व्यवस्थित हो जाते है।, जिसे पोषकोरक (Trophoblast) कहते है। तथा इसके अन्दर की ओर की कोशिकाएँ अन्तर कोशिका समूह (Inner cell mass) कहलाती है। इनमें एक गुहा होती है। जिसे कोरकगुहा कहते है। तथा इस संरचना को कोरक कहते है।

पोषकोरक गर्भाशय के अन्तःस्तर से जुड़ जाता है। इसके बाद गर्भाशय की कोशिकाएँ कोरक को ढक लेती है। इसे अन्तर्रोपण कहते है।

सगर्भता (Pregnancy)

  • अन्तर्रोपण के पश्चात पोषकोरक पर एक अँगुलीनुमा उभार बनता है। जिसे जरायु अंकुरक कहते है। यह अंकुरक परिवर्धित होकर अपरा का निर्माण करता है।
Class 12 Biology Chapter 3 शुक्राणु की संरचना एवं प्रकार तथा वीर्य Notes in Hindi
  • मानव में प्लेसेंटा के निर्माण के लिए दो झिल्लियों कोरियोनिक झिल्ली तथा एलेंटोनिक झिल्ली भाग लेती है। इसलिए मानव के प्लेसेंटा को कोरियो-एलेंटोइक झिल्ली कहते है। इन दोनों झिल्लियों का निर्माण पोषकोरक द्वारा होता है।
  • प्लेसेंटा भुर्ण और मातृ शरीर के साथ संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई का कार्य करता है। इसके द्वारा ऑक्सीजन तथा पोषक पदार्थो की आपूर्ति तथा अपशिष्ट पदार्थ और कार्बन डाई ऑक्साइड को बाहर निकलने का कार्य किया जाता है।
Class 12 Biology Chapter 3 शुक्राणु की संरचना एवं प्रकार तथा वीर्य Notes in Hindi
  • प्लेसेंटा नाभि रज्जु (AMBILICAL CORD) द्वारा भुर्ण से जुड़ता है।
  • अपरा या प्लेसेंटा के द्वारा अन्तःस्त्रावी के रूप में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रन, मानव अपरा लेक्टोजेन (HPL), मानव जरायु गोनेड़ोट्रपिन (HCG) आदि हॉर्मोन का स्त्राव किया जाता है।
  • अन्तर्रोपण के पश्चात ब्लास्टुला गेस्टुला में बदलता है। जिसमे अंतर कोशिका समूह द्वारा एक्टोडर्म एन्डोडर्म तथा मिजोडर्म का निर्माण किया जाता है।
  • तीनों भूर्णीय स्तर अलग-अलग अंगो का निर्माण करते है। अंगो के निर्माण की प्रक्रिया organogenesis कहलाती है।

भूर्णीय परिवर्धन (Embryonic Development)

प्रथम माह :- भूर्ण का ह्रदय निर्मित होता है।

द्वितीय माह :- भूर्ण के पाद व अँगुलियों का विकास होता है।

तृतीय  माह :- भूर्ण के सभी प्रमुख अंग तंत्रों की रचना होती है। बाह्य जननांग बन जाते है।

पंचम माह:- गर्भ की पहली गतिशीलता व सिर पर बालो का विकास होता है।

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छटे माह :-पुरे शरीर पर कोमल बाल व आँखों पर बिरोनिया बन जाती है। एव आँखों की पलके अलग-अलग हो जाती है।

नवे माह :- गर्भ पूर्ण रूप से विकसित व प्रसव के लिए तैयार

प्रसव (Parturition)

  • सगर्भता के अन्त में गर्भाशय में  संकुचनों के कारण गर्भ (foetus) का बाहर आना प्रसव कहलाता है।
  • पूर्ण विकसित गर्भ तथा अपर से  संकेत उत्पनन होते है। जिन्हें (foetal ejection reflex ) गर्भ उत्क्षेपण प्रतिवर्त कहते है।
  • यह प्रतिवर्त पियूष ग्रंथि से ऑक्सीटोसिन (oxytosin) हॉर्मोन के स्त्राव को प्रेरित करता है।
  • ऑक्सीटोसिन (oxytosin) गर्भाशय के पेशीस्तर (Mayometrium) पर कार्य करके उन्हें संकुचन को प्रेरित करता है। यह संकुचन ओर अधिक oxytosin के स्त्राव को प्रेरित करता है।
  • रिलेक्सिन हॉर्मोन श्रोणी मेखला व श्रोणी क्षेत्र को शिथिल करता है। फलस्वरूप oxytosin के कारण गर्भाशय में तेज संकुचन होता है। जिसे प्रसव पीड़ा कहते है। और गर्भ जनन-नाल के द्वारा बाहर आ जाता है।

दुग्धस्त्रावण (Lactation)

सगर्भता के दौरान स्तन ग्रन्थियों में बदलाव आते है। तथा पियूष ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित हार्मोन प्रोलेक्टन तथा ऑक्सीटोसिन दुग्ध स्त्राव को प्रेरित करते है।

प्रसव के बाद कुछ दिनों तक स्रावित दुग्ध में एंटीबॉडी (IgA) तथा पोषक पदार्थो की मात्र अधिक होती है। जिसे प्रथम स्तन्य कोलोस्ट्रम या खीस कहते है।

Class 12 Biology Chapter 3 शुक्राणु की संरचना एवं प्रकार तथा वीर्य Notes in Hindi

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