Class 12 Biology Chapter 2 Notes in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 2 हिंदी में व्यापक नोट्स के साथ अपने सीखने को सरल बनाएं। अपनी परीक्षाओं में महारत हासिल करें और प्रमुख अवधारणाओं को सहजता से समझ लें।
Class 12 Biology Chapter 2 Notes in Hindi
पुष्पीय पादपो में लैंगिक जनन
पुष्प रूपांतरित परोह होता है। यह एन्जियोस्पर्म का जननांग होता है।
एक पुष्प में चार भाग होते है जो चक्रों में व्यवस्थित होते है-
1. बाह्यद्लपुंज (sepals)
यह पुष्प का सबसे बाहरी चक्र होता है। इनका रंग हरा होता है इनके एकल सदस्य को बाह्यद्ल (calayx) कहते है।
2. दलपुंज (patals)
यह पुष्प की रंगीन पंखुड़ियों का चक्र होता है। इनके एकल सदस्य को द्ल (corolla) कहते है।
दलदलपुंज (petals) तथा बाह्यदलपुंज (sepal) पुष्प के सहायक अंग है।
3. जायांग (carpels)
यह पुष्प का मादा जननांग (Male reproductive organ) है। इसके एकल सदस्य को (gynocium) कहते है।
4. पुमंग (androcium)
यह पुष्प का नर जननांग (Female reproductive orgon) है। इसके एकल को पुंकेसर (stamens) कहते है।
पुमंग (stamen) तथा जायँग (gynocium) पुष्प के जननांग (reproductive orgon) है।
पुष्प की खेती करना फ्लोरिकल्चर (floriculture) कहते है।
पुंकेसर की संरचना (Structure of Stamens)
पुंकेसर के तीन भाग होते हैं-
- परागकोष (Anther)
- योजी (Connective)
- पुतन्तु (Filaments)
परागकोष की संरचना (Structure of Anther)
परागकोष पुंकेसर का उपरी फुला हुआ भाग होता है। परागकोष द्विपालित, चतुकोष्ठकीय होता है।
यानि के परागकोष दो पालियों में बंटा होता है। तथा प्रत्येक पाली दो कोष्ठको में बंटी होती है एक लम्बवत खांच प्रवारक दोनों पालियो को अलग करते हुए तन्तु तक जाता है ।
परागकोष की प्रत्येक कोष्ठको में लघुबिजाणुधानियाँ पाई जाती है ।
लघुबीजाणुधानी (Microsporangium)
लघुबीजाणुधानी एक थैली है जिसमें लघुबीजाणु का निर्माण होता है इसमें परागमातृ कोशिका (pollen mother cell) या लघुबीजाणु मातृ कोशिका पायी जाती है।
इन लघुबीजाणु मातृ कोशिकाओं के द्वारा परागकणों (pollen) का निर्माण होता है ।
लघुबीजाणुधानी की संरचना में चार भित्तियाँ होती हैं –
1. बाह्यत्वचा (epidermis)
यह सबसे बाहरी परत है जो लघुबीजाणुधानी की सुरक्षा का कार्य करता है।
2. अन्तथिसीयम (endothesium)
यह बाह्यत्वचा (epidermis) के अन्दर की ओर पायी जाती है। यह सुरक्षा तथा
परागकोष के स्फुटन का कार्य करती है।
3. मध्यपरत (middle layer)
यह अन्तथिसीयम (endothesium) के अन्दर की और 2-3 कोशिकाओ की परत होती है।
4. टेपिटम (tapitum)
यह मध्य परत के अंदर की ओर की परत होती है। यह बहुकेन्द्रकी तथा सघन जीवद्रव्य वाली कोशिकाओं से बनी होती है ।
इसका कार्य बीजाणुजन उत्तकों को पोषण प्रदान करना होता है।
इसके द्वारा वसा युक्त युबिस कणों का स्त्राव किया जाता है। जिन कणों में स्पोरोपोलेनिन होता है। तथा साथ ही इसके द्वारा IAA (इन्डोल एसिटिक अम्ल) हार्मोन का स्त्राव होता है।
योजी (Connective)
यह परागकोष को पुतंतु से जोड़ता है।
पुतंतु (Filaments)
यह तंतु पुष्प से पुष्पासन से जुडा रहता है।
लघुबीजाणुजनन (Microsporogenesis)
परागमातृ कोशिका (Pollen mother cell) से लघुबीजाणु (Microspore) बनने की प्रक्रिया लघुबीजाणुजनन (Microsporogenesis) कहलाती है।
पुष्प के बनने के समय जब पुंकेसर बन रहा होता है । तो इनकी लघुबीजाणुधानियों में बीजाणुजन उत्तक (sporogenous tissue) पाये जाते है । इन बीजाणुजन उत्तक (sporogenous tissue) में परागमातृ कोशिकाएँ (PMC) होती है।
परागमातृ कोशिकाओं (PMC) में अर्द्धसूत्री विभाजन से चार अगुणित लघुबीजाणु (n, Microspore) बनते है। जो एक साथ एक ही भिती में व्यवस्थित होते है। जिसे लघुबीजाणु चतुष्क (tedrad) कहते है।
लघुबीजाणु चतुष्क (tedrad) की भित्ति कैलोज नामक कार्बोहाइड्रेट से बनी होती है।
लघुबीजाणु चतुष्क (tedrad) की प्रत्येक कोशिका में समसूत्री विभाजन (mitosis) होता है, जिससे दो कोशिका युक्त (कायिक व जनन कोशिका) परागकण (Pollen) का निर्माण होता है।
परागकण का स्फुटन (Dehisence of Pollen Grain)
परागकोष (anther) से परागकण (pollen grain) का बाहर निकलना स्फुटन (dehisence) कहलाता है। यह निम्न प्रकार होता हैं-
परागकोश की टेपीटम व मध्यपरत (मिडिल लेयर) नष्ट हो जाती है।
अन्तथीसियम की कोशिकाओं में जल की हानि से उनकी कोशिका भिती सिकुड़ जाती है। जिससे इन कोशिकाओ में स्टोमियम (stomium) पर दबाव पड़ता है। जिससे इन कोशिकाओ में दरार हो जाती है एव परागकण मुक्त हो जाते है।
परागकण (Pollen grain)
यह नर युग्मकोद्भिद (male gamete) होता है। यह गोलाकार तथा इसका व्यास 25-50mm होता है।
परागकण में दो भित्तियाँ (layer) होती है। जिनको चोल कहते हैं-
- बाह्यचोल (Exin)
- अन्तचोल (Intine)
बाह्यचोल (Exin)
यह बाहरी भित्ति (outer layer) है। यह कठोर व स्पोरोपोलेनिन (sporopolllenin) की बनी होती है।
स्पोरोपोलेनिन (Sporopollenin) एक कार्बनिक पदार्थ है जो उच्च तापमान , अम्लों व क्षारको के प्रति अधिक प्रतिरोधी होता है। इसका पाचन करने वाला एंजाइम अभी तक खोजा नहीं गया है।
बाह्यचोल असतत (Discontinous) होती है। इस पर कुछ छिद्र (pore) पाए जाते है। जिन्हें जनन छिद्र (germinal pore) कहते है। इस पर स्पोरोपोलेनिन अनुपस्थित है ।
अन्तचोल (Intine)
यह आंतरिक भित्ति (inner layer) है। यह पतली व सतत (Continous) होती है। यह सेलुलोज व पेक्टिन की बनी होती है।
अन्तचोल (Intine) में जनन छिद्र अनुपस्थित होते है।
परिपक्व परागकण में दो प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं-
- कायिक कोशिका (vegetative cell)
- जनन कोशिका (generative cell)
कायिक कोशिका (vegetative cell)
ये बड़ी व अनियमित केन्द्रकवाली कोशिका है। तथा खाघ प्रदार्थ युक्त होती है। यह जनन छिद्र द्वारा निकलने वाली पराग नलिका (pollen tube) का निर्माण करती है। ये अगुणित (Haploid) होती है।
जनन कोशिका (generative cell)
ये छोटी तथा तर्कुरूपी (cone shape) तथा कायिका कोशिका के जीवद्रव्य में तेरती रहती है। ये अगुणित (Haploid) होती है।
जनन कोशिका में समसूत्री विभाजन (mitosis) से दो नर युग्मक (male gamete) बनते है। जो दोहरे निषेचन में भाग लेते है।
पराग उत्पाद(pollen product)
परागकण पोषक पदार्थ युक्त होते है। इसका उपयोग कार्यक्षमता वृद्धक दवाइयाँ बनाने में किया जाता है। जिन्हें पराग उत्पाद कहते है।
घोड़ो व एथलीट की कार्यक्षमता बढ़ाने के लीए पराग उत्पादो का प्रयोग करते है।
परागकण में उपस्थित असंतृप्त वसा अम्ल UV किरणों से सुरक्षा करते है। अतः इनका प्रयोग त्वचा क्रीम बनाने में किया जाता है।
परागकणों की जीवन क्षमता (Viability of Pollen Grain)
वह अवधि जिसमें परागकण कार्यक्षम हो या निषेचन में भाग लेने की क्षमता रखते हो, परागकणों की जीवन क्षमता (pollen viability) कहलाती है। यह तापमान व आर्दता पर निर्भर करती है। जो 30 मिनट से कई महीनों तक होती है। जैसे-
अनाजो में 30 मिनट
मालवेसी व राजेसी कई महीने, पुरातत्व खुदाई के दौरान खोजा गया खजूर फियोनिक्स डेक्टलिफेरा 2000 सालों बाद अंकुरित हुआ था।
परागकिट (pollen kit)
टेपीटम द्वारा स्त्रावित चिपचिपा रासायनिक पदार्थ जो परागकणों को कीटो से चिपकने में सहायता करता है। परागकिट (pollen kit) कहलाता है।
परागपुटी (pollen sec)
चारों लघुबीजाणुधानियां विकसित होकर एक थैली या धानी का निर्माण करते है। जिसमें परागकण ठसाठस भरे रहते है इस थैली को परागपुटी (pollen sec) कहते है।
परागकणों द्वारा एलर्जी (Pollen grain as an allergen)
परागकणों में उपस्थित प्रोटीन मानव में एलर्जी उत्पन्न करती है। ऐसे परागकणों को एलर्जन कहते है। जैसे गाजर घास (पार्थोनियम) के परागकण द्वारा मानव में एलर्जी उत्पन्न की जाती है।
गुरुबीजाणुजनन एवं भूर्णकोष
गुरुबीजाणुजनन (Megasporogenesis)
- गुरुबीजाणुमातृ कोशिका (Megaspore Mother Cell) से गुरुबीजाणु के निर्माण की प्रक्रिया को गुरुबीजाणुजनन कहते है।
- पुष्प के बनने के समय अंडाशय में पाये जाने वाले बीजाण्ड में केवल एक ही द्विगुणित (Diploid) कोशिका पायी जाती है, जिसे गुरुबीजाणुमातृ कोशिका (Megaspore Mother Cell) कहते है।
- गुरुबीजाणुमातृ कोशिका में अर्द्धसूत्री विभाजन से चार गुरुबीजाणु (megaspore) का निर्माण होता है। ये चारों गुरुबीजाणु रैखिक क्रम (Linear order) में विन्यासित होकर गुरुबीजाणु चतुष्क (megaspore tetrad) बनाते है। जो बीजांडकाय से ढके रहते है।
- गुरुबीजाणु चतुष्क की तीन कोशिकाएँ नष्ट हो जाती है। निभाग की ओर स्थित केवल एक गुरुबीजाणु कोशिका ही भूर्णकोष का निर्माण करती है। जिसे एकबीजाणुज विकास कहते है।
- गुरुबीजाणु की एक कोशिका में वृद्धि तथा विभाजन होता है। जिससे 2 ,4 , 8 केन्द्रकों का निर्माण होता है।
- आठ केन्द्रकों में से तीन केन्द्रक बीजांडद्वार की जाते है। तथा दो सहाय कोशिकाओं (synergids call) व एक अंडकोशिका (Egg cell) का निर्माण करते है।
- दोनों सहायक कोशिका (synergids call) व एक अंडकोशिका (Egg cell) मिलकर अण्डसम्मुचय या अण्ड उपकरण (Egg Apparatus) बनाते है।
- 3 केन्द्रक निभाग (Chalaza) की ओर जाकर प्रतिव्यसांत (Antipodal cell) कोशिका का निर्माण करते है।
- शेष 2 केन्द्रक ध्रुवीय केन्द्रक (Polar nucleus) कहलाते है। जो मध्य में ही रहते है।
- ये दोनों ध्रुवीय केन्द्रक संयुक्त होकर द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक (Secondary nucleus) का निर्माण करते है, जिसे संलीन केन्द्रक (Definitive nucleus) भी कहते है।
भूर्णकोष (Embryo sac)
यह पादप का मादा युग्मकोदभिद (female gametophyte)है। जिस प्रकार परागकण नर युग्म्कोद्भिद होता है। सभी पादपों एक बीजांड में केवल भूर्णकोष होता है। एक भूर्णकोष में 8 केन्द्रक व 7 कोशिकाएँ होती है।
भूर्णकोष में निम्न कोशिकाएँ होती हैं-
- अंड कोशिका (egg cell)
- सहाय कोशिका (synergids call)
- प्रतिव्यसांत कोशिका (Antipodal cell)
- केन्द्रिक कोशिका (Central cell)
अंड कोशिका (egg cell)
इसकी संख्याँ एक है। अंड कोशिका निषेचन के समय नर युग्मक (Male gamete) के साथ जुडकर द्विगुणित भूर्ण (Embryo) का निर्माण करती है।
सहायक कोशिका (synergids call)
भूर्णकोष में दो सहायक कोशिकाएँ (synergids call) होती है जो बीजांडकाय से पोषक पदार्थ का अवशोषण करती तथा परागनलिका को बीजाण्ड की ओर आकर्षित करने वाले रसायनों का स्त्राव करती है।
सहायक कोशिकाएँ (synergids call) तथा अंड कोशिका (egg cell) मिलकर अंड उपकरण बनाते है।
प्रतिव्यसांत कोशिका (Antipodal cell)
भूर्णकोष निभाग (Chalaza) की ओर की तीन कोशिकाएँ प्रतिव्यासंत कोशिकाएँ (Antipodal) होती है। निषेचन के बाद ये नष्ट हो जाती है।
केन्द्रिक कोशिका (Central cell)
भूर्णकोष के मध्य में दो ध्रुवीय केन्द्रक होते है। जो एक नर युग्मक से निषेचित होकर त्रिगुणित भूर्णपोष (Endosperm) का निर्माण करते है।
परागण एवं इसके प्रकार
परागण (pollination)
पादपों में युग्मक स्थानान्तरण (gamete transfer) यह प्रक्रिया परागण द्वारा होती है।
परागकोष के स्फूटन के पश्चात परागणकणों का स्त्रीकेसर के वतिकाग्र तक जाना परागण कहलाता है।
परागकण के स्रोत के आधार पर (depending on the source of pollen) परागण निम्न प्रकार का होता है।
- स्वपरागण (Self Pollenation)
- परपरागण (Xenogamy)
स्वपरागण (Self Pollenation)
इस प्रकार के परागण में परागकण उसी पादप के पुष्प पर पहुँचते है।
यह दो प्रकार का होता हैं-
स्वयुग्मन (Autogamy)
जब पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वतिकाग्र तक पहुचते है तो यह स्वयुग्मन कहलाता है।
सजात पुष्पी परागण (Geitonogamy)
जब पुष्प के परागकण उसी पादप के अन्य पुष्प के वतिकाग्र तक जाते है तो उसे सजात पुष्पी परागण कहते है।
स्वयुग्मन तथा सजात पुष्पी परागण को सम्मिलित रूप से स्वपरागण (Self Pollenation) कहते है।
स्वपरागण निम्न परिस्थितियों में होता है –
पादप उभयलिंगी (Hermaphrodite) होता है, तो उनमे स्वपरागण (Autogamy) होता है।
पादप के पुष्प में समकाल परिपक्वता (Homogam,y) पाई जानी चाहिए। यानि पुकेंसर व स्त्रीकेंसर एक साथ परिपक्व होना चाहिए।
कुछ पुष्प कभी अनावृत नहीं होते अथार्त कभी खिलते नहीं एसे पुष्पों को अनुन्मीय पुष्प (cleistogamus) कहते है। अनुन्मीय पुष्पों में स्वपरागण होता है। जैसे – वायोला (सामान्य पनसी ), ओक्जेलिस तथा कोमोलीना (कनकौआ)
स्वपरागण के लाभ ( Advantages of Self Pollenation)
- यह सरल होता है।
- परागकण व्यर्थ नहीं होते अतः इनकी कम संख्या में आवश्यकता होती है।
- पादपों में शुद्ध वंशक्रम बना रहता है हानिकारक जीन जाति में नहीं आते।
- पुष्प को मकरन्द स्रावित करने की आवश्यकता नही होती।
स्वपरागण से हानियाँ ( Disadvantages of Self Pollenation)
- बीजों में संकर ओज के गुण कम होते है।
- पादप विकास की सम्भावनाएँ कम होती है।
- पादपों में उत्पादकता कम होती है।
परपरागण (Cross pollonation)
जब परागकण परागकोष से दुसरे पादप के पुष्प के वतिकाग्र (stigma) पर पहुचते है, तो उसे परपरागण कहते है। इसे xenogamy भी कहते है।
परपरागण के लिए निम्न परिस्थितियां होती हैं-
- पुष्प एकलिंगी (Unisexual) होता है।
- जबपुष्प में विषमकाल परिपक्वता (Dichogamy) पाई जाती हो।
- पुष्प में स्वबध्यता (Self-sterility) पाई जाती है अर्थात उसी पुष्प के परागकण वतिकाग्र पर अंकुरित नहीं हो सकते।
- स्त्रीकेसर पुकेसर की अपेक्षा अधिक लम्बी होती है। जिसे विषमवर्तिकात्व (Heterostyly) कहते है।
- पुष्प उन्मिलय (chasmagamous flower) होते है।
परपरागण से लाभ (Advantages of Cross Pollenation)
- बीज बड़े आकार के तथा भारी होते है।
- पादपों में संकर ओज के गुण अधिक होते है।
- पादपों विभिन्नताएँ आती है।
परपरागण से हानियाँ ( Disadvantages of Cross Pollenation)
- अधिक मात्रा में परागकणों की आवश्यकता होती है।
- परागकणों के नष्ट होने की सम्भावना अधिक होती है।
- पादपों में शुद्ध वंशक्रम नहीं रहता।
- हानिकारक जीन का समावेश होता है।
परपरागण के प्रकार (Types of Cross pollonation)
परपरागण माध्यम के आधार पर निम्न प्रकार का होता है –
- जल परागण (hydrophily)
- वायु परागण (anemophily)
- कीट परागण (entomophily) – कीट के माध्यम से परागण
- जन्तु परागण (zoophily) – जन्तुओं के द्वारा परागण
- पक्षी परागण (ornithophily) – पक्षी के द्वारा परागण
- चमगादड़ परागण(chiropteriphily) – चमगादड़ के द्वारा परागण
- स्लग व घेंघा परागण (malacophily) – घेंघा के द्वारा परागण
पराग स्त्रीकेसर संकर्षण
परागकण की पहचान (Identification of pollen)
जब परागकण परागण के द्वारा वतिकाग्र पर पहुँच जाते है। तो परागकण व वतिकाग्र के रासायनिक घटकों के मध्य परस्पर क्रिया द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है, कि वतिकाग्र पर पहुँचने वाला परागकण ठीक उसी जाती का है। क्योंकि परागण के द्वारा गलत प्रकार के परागकण (दूसरी पादप जाति का) भी उसी वतिकाग्र पर आ जाते है।
स्त्रीकेसर में परागकण की पहचान करने की क्षमता होती है। की पराग गलत है, या सही प्रकार का है।
यदि पराग सही प्रकार का होता है तो परागकण में अंकुरण होने लगता है।
यदि परागकण गलत प्रकार का होता है, तो स्त्रीकेसर द्वारा पराग की अस्वीकृति किया जाता है जिससे परागकण में अंकुरण नहीं हो पाता।
परागकण की पहचान करने के पश्चात परागनलिका (Pollen Tube) का निर्माण होता है।
परागनलिका (Pollen Tube) रसायनानुवर्न के द्वारा बीजांड की ओर जाती है।
परागकण का अंकुरण (Germination of Pollen grain)
परागकण की जनन कोशिका में समसूत्री विभाजन के द्वारा दो नर युग्मकों का निर्माण होता है तथा जनन छिद (germ pores) में से होते हुई एक परागनलिका (Pollen Tube) का निर्माण होता है।
परागनलिका का बीजांड में प्रवेश (Entry of pollen tube in ovule)
एक परागनलिका (Pollen Tube) में दो नर युग्मक होते है। जिनका निर्माण जनन कोशिका द्वारा होता है।
परागनलिका वर्तिका से होते हुए अंडाशय तक जाती है। तथा अंडाशय में पहुँचने के पश्चात बीजांड में प्रवेश करती है। यह प्रवेश तीन प्रकार से होता हैं–
निभागी प्रवेश (chalaogamy)
परागनलिका (Pollen Tube) बीजांड में निभाग में से होकर प्रवेश करती है।
अंडद्वारी / बीजांडद्वारी प्रवेश (porogamy)
परागनलिका (Pollen Tube) का बीजांड में पवेश बीजांड द्वार में से होता है।
उदाहरण betula, casurina .
अध्यावरणी प्रवेश (mesogamy)
परागनलिका का बीजांड में का प्रवेश अध्यावरण में से होता है।
उदाहरण cucurbita and populus
परागनलिका का भूर्ण कोष में प्रवेश
परागनलिका का प्रवेश बीजांड में प्रवेश कैसा भी हो परन्तु भूर्णकोष में वह बीजांडद्वार से ही प्रवेश करती है।
बीजांडद्वारी सिरे पर उपस्थित तन्तुरुपी समुच्चय (filliform apparatus) पराग नलिका के प्रवेश को दिशा निर्देशित करती है।
तन्तुमय समुच्चय के माध्यम से परागनलिका एक सहाय कोशिका में प्रविष्ट करती है।
परागनलिका जब भूर्णकोष में प्रवेश कर जाती है तो यह भूर्णकोष के मध्य में पहुँच कर नर युग्मकों को मुक्त करती है।
उपरोक्त वर्णत सभी प्रक्रम (पराग की पहचान, अंकुरण, परागनलिका का बीजांड व भूर्णकोष में प्रवेश) पराग स्त्रीकेसर संकर्षण (Pollen Pistil Interaction) कहलाता है।
दोहरा निषेचन, भूर्णपोष, भूर्ण और बीज
दोहरा निषेचन (Double Fertilization)
परागनलिका से नरयुग्मक मुक्त होने के पश्चात एक नर युग्मक अंड कोशिका से संलयित होता है। इसे सत्यनिषेचन (True Fertilization) कहते है। सत्यनिषेचन (True Fertilization) से द्विगुणित युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है।
सत्य निषेचन [ नर युग्मक + अंड कोशिका = युग्मनज]
परागनलिका में उपस्थित दूसरा नरयुग्मक दोनों धुर्वीय केन्द्रकों से संलयित होकर त्रिगुणित प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका (Primary Endosperm Cell) का निर्माण करता है। इसे त्रिक संलयन (Triple Fusion) कहते है।
त्रिकसंलयन [नर युग्मक +ध्रुवीय केन्द्रक = प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका] .
इस प्रकार भूर्णकोष में दो बार निषेचन होता है। इसलिए इसे दोहरा निषेचन (Double Fertilization) कहते है।
भूर्णपोष का विकास (Development of Endosperm)
त्रिकसंलयन से बनी प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका (Primary Endosperm Cell) में बार-बार विभाजन होने से भूर्णपोष का निर्माण होता है। इसकी कोशिकाएँ पोषक पदार्थ युक्त होता है। जो विकासशील भूर्ण को पोषण प्रदान करती है।
पादपो में तीन प्रकार के भूर्णपोष पाये जाते हैं-
मुक्त केन्द्रकी भूर्णपोष /केन्द्रिकीय भूर्ण पोष (Free Nuclear Endosperm)
इस प्रकार के भूर्णपोष में प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका (Primary Endosperm Cell) के केन्द्रक में विभाजन होता है। लेकिन कोशिका भित्ति का निर्माण नहीं होता। जिससे बहुकेन्द्रिकी संरचना बन जाती है। ऐसा पॉलीप्टेलस द्विबिजपत्री पादपों में पाया जाता है।
उदाहरण – नारियल (Cocos nucifera) का तरल द्रव।
कोशिकीय भूर्णपोष (Cellular Endosperm)
इस प्रकार के भूर्णपोष का निर्माण प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका (Primary Endosperm Cell) में केन्द्रक विभाजन के साथ–साथ कोशिका भित्ति का भी निर्माण होता है। ऐसा सामान्यत : गेमोपिटेलस द्विबीजपत्रि पादपो में होता है।
उदाहरण – धतुरा, पिटुनिया आदि।
हैलोबियल भूर्णपोष (Helobial Endosperm)
इस प्रकार के भूर्णपोष में कोशिकीय व केन्द्रिकीय दोनों प्रकार की व्यवस्था पायी जाती है। प्राथमिक भूर्णपोष कोशिका (Primary Endosperm Cell) में शुरुआती विभाजन होते है। तो इसमें कोशिका भित्ति बनती है, परन्तु बाद में केवल केन्द्रक विभाजन होता है।
भूर्ण का विकास (Development of Embryo)
द्विगुणित युग्मनज से भूर्ण का निर्माण होने की प्रक्रिया भूर्णोदभव (embryogenesis) कहलाती है। जब भूर्णपोष का निर्माण हो जाता है। तो युग्मनज में विभाजन प्रारम्भ होता है। जिससे विकासशील भूर्ण को पोषण प्राप्त होता रहता है।
प्रारम्भ में द्विबीजपत्री तथा एकबीजपत्री भूर्ण का विकास एक समान होता है। लेकिन बाद में इसके विकास की प्रकिया अलग-अलग होती है।
द्विबीजपत्री भूर्ण का विकास
इस प्रकार के भूर्ण विकास का अध्ययन Capsella Bursa-pastoris नामक क्रुसीफेरी पादप में किया गया।
इनमें युग्मनज दो असमान कोशिकाओं में विभक्त हो जाता है। जिन्हें आधारी कोशिका (Basal cell –बीजांडद्वार की और supensor cell) तथा अग्रस्थ कोशिका (Apical cell) कहते है।
आधारी कोशिका में अनुप्रस्थ विभाजन से 6 -10 कोशिकाओ से बनी संरचना बनती है। जो निलम्बक (surpenser) कहलाता है। निलम्बक की प्रथम कोशिका आकर में बड़ी होती है जिसे चुषकांग (sucker) कहते है।अंतिम कोशिका जो अग्रस्थ कोशिका के पास होती है वह स्फीतिका (hypophysis) का निर्माण करती है। जो विकसित होकर मुलगोप (radicle tip) बनती है ।
अगस्थ कोशिका में दो अनुदैर्ध्य तथा एक अनुप्रस्थ विभाजन होता है जिससे 8 कोशिकाओ के दो चक्र प्राप्त होते है। ऊपरी चक्र (epibasal) की चार कोशिकाएँ बीजपत्रों व प्रांकुर का निर्माण करती है तथा निचले चक्र (hypobasal) की चार कोशिकाएँ बीजपत्रोंपरिक व मूलांकुर का निर्माण करती है।
एपीबेसल तथा हाइपोबेसल (ऊपरी व निचला चक्र) की चार-चार कोशिकाएँ अष्टक बनाती है। अष्टक की कोशिकाओं में परिनत विभाजन (periclinal) होते है जिससे बाह्यत्वचाजन (protoderm) प्रोकेंबियम (प्राकेम्बियम) तथा भरत उतक (विभज्योतक) का निर्माण होता है।
प्रारम्भ में भूर्ण गोलाकार होता है। लेकिन बाद में यह बीजपत्रों के विकास के कारण हृदयाकार (heart shaped) हो जाता है। परिपक्व भूर्ण में दो बीजपत्र एंव एक भूर्णीय अक्ष होता है। भूर्णीय अक्ष का बीजपत्रों के स्तर से ऊपर का भाग बीजपत्रोपरिक (epicotyl) होता है। जिसका अंतिम सिरा (terminal end) प्रांकुर (plumcle) होता है।
भूर्णीय अक्ष का बीजपत्रों के स्तर का निचला भाग बीजपत्राधार (hypocoty) होता है। जिसका अन्तिम सिरा मुलंकार (radicle) होता है। जो मुलगोप से ढका रहता है।
एकबीजपत्री भूर्ण का विकास (Development of Monocot Embryo)
इस प्रकार के भूर्ण के विकास का अध्ययन Luzula forsteri में किया जाता है
इसमें भूर्ण का विकास सेजिटेरिया (sagittaria) प्रकार का कहलाता है ।
एकबीजपत्री भूर्ण में अष्टक स्तर तक का विकास द्विबीजपत्री के समान ही होता है ।
युग्मनज से विभाजन से दो कोशिकाएँ (अग्रस्थ तथा आधारी ) बनती है ।
अग्रस्थ कोशिका में अनुदैर्ध्य विभाजन से आठ कोशिकाएँ बनती है।
ऊपर के स्तर की कोशिकाएँ बीजपत्रोंपरिक व प्रांकुर बनती है।
एकबीजपत्री में एक ही बीजपत्र बनता है। जिसे प्रशल्क (scutellum) स्कुटेल्म कहते है।
नीचे का स्तर मूलांकुर तथा बीजपत्राधार बनाता है। मुलाकुर तथा प्रांकुर पर आच्छादी आवरण (covering sheaths) बनता है जिन्हें
क्रमशः मूलांकुर चोल (coleorrhiza) तथा प्रांकुर चोल (coleoptile) कहते है।
बीज और इसका विकास
एंजियोस्पर्म में लैंगिक जनन का अंतिम परिणाम बीज होता है।
एक बीज में बीजावरण, बीजपत्र तथा एक भूर्णीय अक्ष होता है।
बीज का निर्माण बीजांड से होता है। बीजांड का अध्यावर्ण बीजावरण बनाता है।
बाह्य अध्यावरण के द्वारा टेस्टा तथा आंतरिक अध्यावरण के द्वारा टेगमेन का निर्माण होता है।
बीजांडकाय प्राय: नष्ट हो जाता है। परन्तु कुछ पादपों में यह परिभूर्णपोष का निर्माण करता है।
जैसे – काली मिर्च तथा चकुंदर आदि।
बीजांडवृन्त बीजवृन्त में परिवर्तित हो जाता है।
हाइलम बीज के ऊपर एक धब्बे के रूप में रह जाता है।
बीजांडद्वार बीज में एक छिद्र के रूप में रहता है। जिसके द्वारा अंकुरण के समय जल का अवशोषण होता है ।
परिपक्व बीज में जल की मात्रा बहुत कम होता है तथा उपापचयी क्रियाएँ बहुत धीमी गति से होता है एंव भूर्ण निष्क्रय अवस्था में होता है, इसे प्रसुप्ति (dorminancy) कहते है।
एकबीजपत्री बीज की संरचना (Structure of Monocot Seed)
इसमें एकबीजपत्र होता है। ये भूर्णपोषी होता है।
भूर्णपोष के भीतरी स्तर को एपिथिलिय्म स्तर कहते है। बाहरी स्तर को एल्युरान स्तर कहते है ।
उदाहरण – गेंहू, बाजरा, मक्का, घास आदि
द्विबीजपत्री के बीज की सरचना (Structure of Dicot Seed)
इसमें दो बीजपत्र होते है। तथा इनमें भूर्णपोष नहीं होता। ये अभूर्णपोषी होते है।
इसका अपवाद अरण्डी है, जो द्विबीजपत्री होते हुए भी भूर्णपोषी होते है।
उदाहरण – चना, मटर, मूंगफली, ग्वार आदि |
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