Class 12 Biology Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे Question Answer in Hindi

Class 12 Biology Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे Question Answer in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 16: पर्यावरणीय मुद्दे के लिए हिंदी में विस्तृत प्रश्न-उत्तर चर्चा का अन्वेषण करें। अपनी शंकाओं को स्पष्ट करें और अपनी समझ को प्रभावी ढंग से बढ़ाएं।

Class 12 Biology Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे Question Answer in Hindi

अभ्यास (पृष्ठ संख्या 313-314)

प्रश्न 1 घरेलू वाहितमल के विभिन्न घटक क्या हैं? वाहितमल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभावों की चर्चा करें।

उत्तर- घरेलू वाहितमल मुख्य रूप से जैव निम्नीकरणीय कार्बनिक पदार्थ होते हैं जिनका अपघटन आसानी से होता है। इसका परिणाम सुपोषण होता है। घरेलू वाहितमल के विभिन्न घटक निम्नलिखित हैं-

  • निलंबित ठोस- जैसे- बालू, गाद और चिकनी मिट्टी।
  • कोलॉइडी पदार्थ- जैसे- मल पदार्थ, जीवाणु, वस्त्र और कागज के रेशे।
  • विलीन पदार्थ जैसे- पोषक पदार्थ, नाइट्रेट, अमोनिया, फॉस्फेट, सोडियम, कैल्शियम आदि।

वाहितमल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभाव इस प्रकार हैं-

  • अभिवाही जलाशय में जैव पदार्थों के जैव निम्नीकरण से जुड़े सूक्ष्मजीव ऑक्सीजन की काफी मात्रा का उपयोग करते हैं। वाहित मल विसर्जन स्थल पर भी अनुप्रवाह जल में घुली ऑक्सीजन की मात्रा में तेजी से गिरावट आती है और इसके कारण मछलियों तथा जलीय जीवों की मृत्युदर में वृद्धि हो जाती है।
  • जलाशयों में काफी मात्रा में पोषकों की उपस्थिति के कारण प्लवकीय शैवाल की अतिशय वृद्धि होती है, इसे शैवाल प्रस्फुटन कहा जाता है। शैवाल प्रस्फुटन के कारण जल की गुणवत्ता घट जाती है और मछलियाँ मर जाती हैं। कुछ प्रस्फुटनकारी शैवाल मनुष्य और जानवरों के लिए अत्यधिक विषैले होते हैं।
  • वाटर हायसिंथ पादप जो विश्व के सबसे अधिक समस्या उत्पन्न करने वाले जलीय खरपतवार हैं और जिन्हें बंगाल का आतंक भी कहा जाता है, पादप सुपोषी जलाशयों में काफी वृद्धि करते हैं और इसकी पारितंत्रीय गति को असन्तुलित कर देते हैं।
  • हमारे घरों के साथ-साथ अस्पतालों के वाहितमल में बहुत से अवांछित रोगजनक सूक्ष्मजीव हो। सकते हैं और उचित उपचार के बिना इनको जल में विसर्जित करने से गम्भीर रोग, जैसे- पेचिश, टाइफाइड, पीलिया, हैजा आदि हो सकते हैं।

प्रश्न 2 आप अपने घर, विद्यालय या अपने अन्य स्थानों के भ्रमण के दौरान जो अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं, उनकी सूची बनाएँ। क्या आप उन्हें आसानी से कम कर सकते हैं? कौन से ऐसे अपशिष्ट हैं जिनको कम करना कठिन या असम्भव होगा?

उत्तर-

  • घर में उत्पादित अपशिष्ट कागज, पुराने कपड़े, जूते, बैग, टूटे कांच, पॉलिथीन पैकेजिंग सामग्री, प्लास्टिक की बोतलें, डिब्बे और छोड़े गया या खराब भोजन।
  • विद्यालय में मुख्य रूप से पेपर, रिफ़िल, कार्डबोर्ड, थर्मोकॉल, कलम/ पेंसिल, विद्यालय कैंटीन में पेपर या प्लास्टिक प्लेट्स और चश्मा, बोतलें, डिब्बे, आइसक्रीम रैपर, छड़ी आदि।
  • भ्रमण के दौरान मुख्य रूप से खाद्य-सामग्री पैकेट, प्लास्टिक/ पेपर प्लेट, नैपकिन आदि।

हाँ, उपरोक्त सामग्री के विवेकपूर्ण उपयोग से अपशिष्ट को आसानी से कम किया जा सकता है। कागज की बर्बादी उसके दोनों किनारों पर लिखकर और पुनश्चक्रित कागज का उपयोग करके कम किया जा सकता है। प्लास्टिक और कांच के अपशिष्ट को पुनश्चक्रण और पुनरूपयोग के द्वारा भी कम किया जा सकता है। साथ ही, प्लास्टिक बैग के स्थान पर जैवनिम्नीकरणीय जूट बैग का उपयोग घर, स्कूल, या भ्रमण के दौरान उत्पन्न अपशिष्टों को कम किया जा सकता है। नहाने, खाना पकाने और अन्य घरेलू गतिविधियों के दौरान जल का कम उपयोग करके घरेलू वाहितमल को कम किया जा सकता है।

अजैव निम्निकरणीय अपशिष्ट जैसे प्लास्टिक, धातु, टूटे कांच का अपघटन कठिन होता है, क्योंकि सूक्ष्म जीवों में उन्हें विघटित करने की क्षमता नहीं होती है।

प्रश्न 3 वैश्विक उष्णता में वृद्धि के कारणों और प्रभावों की चर्चा करें। वैश्विक उष्णता वृद्धि को नियन्त्रित करने वाले उपाय क्या हैं?

उत्तर- वैश्विक उष्णता में वृद्धि के कारण- ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की। सतह का ताप काफी बढ़ जाता है जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता होती है। गत शताब्दी में पृथ्वी के तापमान में 0.6°C वृद्धि हुई है। इसमें से अधिकतर वृद्धि पिछले तीन दशकों में ही हुई है। एक सुझाव के अनुसार सन् 2100 तक विश्व का तापमान 1.40–5.8°C बढ़ सकता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि तापमान में इस वृद्धि से पर्यावरण में हानिकारक परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप विचित्र जलवायु-परिवर्तन होते हैं। इसके फलस्वरूप ध्रुवीय हिम टोपियों और अन्य जगहों, जैसे हिमालय की हिम चोटियों का पिघलना बढ़ जाता है। कई वर्षों बाद इससे समुद्र तल का स्तर बढ़ेगा जो कई समुद्र तटीय क्षेत्रों को जलमग्न कर देगा।

वैश्विक उष्णता के निम्नांकित प्रभाव हो सकते हैं-

  • अन्न उत्पादन कम होगा।
  • भारत में होने वाली मौसमी वर्षा पूर्ण रूप से बन्द हो सकती है।
  • मरुभूमि का क्षेत्र बढ़ सकता है।
  • एक-तिहाई वैश्विक वन समाप्त हो सकते हैं।
  • भीषण आँधी, चक्रवात तथा बाढ़ की संभावना बढ़ जाएगी।
  • 2050 ई. तक एक मिलियन से अधिक पादपों एवं जन्तुओं की जातियाँ समाप्त हो जाएँगी।

वैश्विक उष्णता को निम्नलिखित उपायों द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है-

  • जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करना।
  • ऊर्जा दक्षता में सुधार करना।
  • वनोन्मूलन को कम करना।
  • मनुष्य की बढ़ती हुई जनसंख्या को कम करना।
  • जानवरों की विलुप्त हो रही प्रजातियों को संरक्षित करना।
  • वनों का विस्तार करना।
  • वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।
प्रश्न 4 कॉलम अ और ब में दिए गए मदों का मिलान करें- कॉलम ‘अ’ कॉलम ‘ब’(क)उत्प्रेरक परिवर्तक 1.कणकीय पदार्थ(ख)स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र (इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर)2.कार्बन मोनो ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड(ग)कर्णमफ (इयर मफ्स)3.उच्च शोर स्तर(घ)लैंडफिल4.ठोस अपशिष्ट

उत्तर-


 कॉलम ‘अ’ कॉलम ‘ब’(क)उत्प्रेरक परिवर्तक 2.कार्बन मोनो ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड(ख)स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र (इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर)1.कणकीय पदार्थ(ग)कर्णमफ (इयर मफ्स)3.उच्च शोर स्तर(घ)लैंडफिल4.ठोस अपशिष्ट

प्रश्न 5 निम्नलिखित पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखें-

  1. सुपोषण (यूट्रोफिकेशन)।
  2. जैव आवर्धन (बायोलॉजिकल मैग्निफिकेशन)।
  3. भौमजल (भूजल) का अवक्षय और इसकी पुनःपूर्ति के तरीके।

उत्तर-

  1. सुपोषण (Eutrophication)- अकार्बनिक फॉस्फेट एवं नाइट्रेट के जलाशयों में एकत्र होने की क्रिया को सुपोषण कहते हैं। सुपोषण झील का प्राकृतिक काल-प्रभावन दर्शाता है, यानि झील अधिक उम्र की हो जाती है। यह इसके जल की जैव समृद्धि के कारण होता है। तरुण झील का जल शीतल और स्वच्छ होता है। समय के साथ-साथ इसमें सरिता के जल के साथ पोषक तत्त्व, जैसे-नाइट्रोजन और फॉस्फोरस आते रहते हैं जिसके कारण जलीय जीवों में वृद्धि होती रहती है। जैसे-जैसे झील की उर्वरता बढ़ती है वैसे-वैसे पादप और प्राणी बढ़ने लगते हैं। जीवों की मृत्यु होने पर कार्बनिक अवशेष झील के तल में बैठने लगते हैं। सैकड़ों वर्षों में इसमें जैसे-जैसे सिल्ट एवं जैव मलबे का ढेर लगता है वैसे-वैसे झील उथली और गर्म होती जाती है। उथली झील में कच्छ (marsh) पादप उग आते हैं और मूल झील बेसिन उनसे भर जाता है। मनुष्य के क्रियाकलापों के कारण सुपोषण की क्रिया में तेजी आती है। इस प्रक्रिया को त्वरित सुपोषण कहते हैं। इस प्रकार झील वास्तव में घुट कर मर जाती है और अन्त में यह भूमि में परिवर्तित हो जाती है।
  2. जैव आवर्धन (Biological Magnification)- इसका तात्पर्य है, क्रमिक पोषण स्तर पर अविषाक्त की सांद्रता में वृद्धि का होना। इसका कारण है कि जीव द्वारा संग्रहित अविषालु पदार्थ उपापचयित या उत्सर्जित नहीं हो सकता और इस प्रकार यह अगले उच्चस्तर पोषण स्तर पर पहुँच जाता है। यह पक्षियों में कैल्शियम उपापचय को नुकसान पहुँचाती है, जिसके कारण अंड-कवच पतला हो जाता है और यह समय से पहले फट जाता है जो अंततः पक्षि-समष्टि में कमी का कारण बनती है।
  3. भौमजल का अवक्षय और इसकी पुनः पूर्ति के तरीके (Ground-water Depletion and Ways for its Replenishment)- भूमिगत जल पीने के लिए अधिक शुद्ध एवं सुरक्षित है। औद्योगिक शहरों में भूमिगत जल प्रदूषित होता जा रहा है। अपशिष्ट तथा औद्योगिक अपशिष्ट बहाव जमीन पर बहता रहता है जोकि भूमिगत जल प्रदूषण के साधारण स्रोत हैं। उर्वरक तथा पीड़कनाशी, जिनका उपयोग खेतों में किया जाता है, भी प्रदूषक का कार्य करते हैं। ये वर्षा-जल के साथ निकट के जलाशयों में एवं अन्तत: भौमजल में मिल जाते हैं। अस्वीकृत कूड़े के ढेर, सेप्टिक टंकी एवं सीवेज गड्ढे से सीवेज के रिसने के कारण भी भूमिगत जल प्रदूषित होता है। वाहितमल जले एवं औद्योगिक अपशिष्टों को जलाशयों में छोड़ने से पहले उपचारित करना चाहिए जिससे भूमिगत जल प्रदूषित होने से बच सकता है।

प्रश्न 6 एंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र क्यों बनते हैं? पराबैंगनी विकिरण के बढ़ने से हमारे ऊपर किस प्रकार प्रभाव पड़ेंगे?

उत्तर- एंटार्कटिका में काफी बड़े क्षेत्र में ओजोन छिद्र बनते हैं। वायुमंडल में क्लोरीन की बढ़ती सांद्रता के कारण यह बनता है। शीतलन के लिए क्लोरोफ्लुरोकार्बन के अधिक उपयोग से क्लोरीन मुक्त होता है। जब यह समतापमंडल में मोचित होता है, तब ये पदार्थ ध्रुव की ओर प्रवाहित होते हैं तथा उच्च अक्षांश पर हिम बादलों के रूप में संग्रहित होने लगते हैं। इन क्लोरीन परमाणु ओजोन का अपघटन होता है जिसके परिणामस्वरूप ओजोन परत और अधिक पतला होता जाता है| आम तौर पर, ओजोन परत हानिकारक यूवी विकिरणों को अवशोषित करके एक सुरक्षात्मक भूमिका निभाता है, लेकिन इसकी मोटाई में कमी होने के कारण यूवी किरण पृथ्वी की सतह तक पहुँच जाता है।

पराबैंगनी विकिरण का हमारे ऊपर प्रभाव-

  • त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण।
  • विविध प्रकार के त्वचा कैंसर होने का खतरा।
  • हिम अंधता या मोतियाबिंद।
  • कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली।

प्रश्न 7 वनों के संरक्षण और सुरक्षा में महिलाओं और समुदायों की भूमिका की चर्चा करें।

उत्तर- भारत में वन संरक्षण का एक लम्बा इतिहास है। जोधपुर (राजस्थान) के राजा ने 1731 ई. में अपने महल के निर्माण के लिए वृक्षों को काटने का आदेश दिया था। जिस वन क्षेत्र के वृक्षों को काटना था उसके आस-पास कुछ बिश्नोई परिवार रहते थे। इस परिवार की अमृता नामक महिला ने राजा के आदेश का विरोध किया एवं वृक्ष से चिपककर खड़ी हो गई। उसका कहना था कि वृक्ष हमारी जान है। उसके बिना हमारा जिंदा रहना असम्भव है। इसे काटने के लिए पहले आपको हमें काटना होगा। राजा के लोगों ने पेड़ के साथ-साथ महिला एवं उसके बाद उसकी तीन बेटियों तथा बिश्नोई परिवार के सैकड़ों लोगों को वृक्ष के साथ कटवा दिया। भारत सरकार ने इस साहसी महिला, जिसने पर्यावरण की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी, के सम्मान में अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार देना हाल में शुरू किया है। चिपको आन्दोलन के प्रवर्तक डॉ. सुन्दरलाल बहुगुणा के नाम से ही वन-संरक्षण की संवेदना होने लगती है। 1974 ई. में हिमालय के गढ़वाल में जब ठेकेदारों द्वारा वृक्षों को काटने की प्रक्रिया आरम्भ हुई तो इससे बचाने के लिए स्थानीय महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया। वे वृक्षों से चिपकी रहीं एवं वृक्षों को काटे जाने से रोकने में सफल रहीं। इसी प्रयास ने आन्दोलन का रूप ले लिया एवं ‘चिपको आन्दोलन’ के रूप में विश्वविख्यात हुआ।

प्रश्न 8 पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने के लिए एक व्यक्ति के रूप में आप क्या उपाय करेंगे?

उत्तर- पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं-

वायु प्रदूषण रोकने के उपाय-

  • अधिक पेड़ लगाना।
  • स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सीएनजी और जैव-ईंधन का उपयोग।
  • जीवाश्म ईंधन के प्रयोग में कमी।
  • मोटर वाहनों में उत्प्रेरक परिवर्तक का उपयोग।

जल प्रदूषण रोकने के उपाय-

  • पानी का अनुकूलित उपयोग करना।
  • बागवानी और अन्य घरेलू कार्यों में रसोई अपशिष्ट जल का उपयोग करना।

ध्वनि प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय-

  • दिवाली पर पटाखे जलाने से बचें।
  • लाउडस्पीकर के लिए ध्वनि-स्तर में कमी।

ठोस अपशिष्ट के संग्रहण को कम करने के उपाय-

  • अपशिष्ट का पृथक्करण।
  • प्लास्टिक और कागज का पुनाश्चक्रण तथा पुनरुपयोग।
  • जैवनिम्निकरणीय रसोई अपशिष्ट से खाद बनाना।
  • प्लास्टिक के उपयोग को कम करना।

प्रश्न 9 निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें-

  1. रेडियो सक्रिय अपशिष्ट।
  2. पुराने बेकार जहाज और ई-अपशिष्ट।
  3. नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट।

उत्तर- 

  1. रेडियो सक्रिय अपशिष्ट (Radioactive Wastes)- न्यूक्लियर रिएक्टर से निकलने वाला विकिरण जीवों के लिए बेहद नुकसानदेह होता है क्योंकि इसके कारण अति उच्च दर से विकिरण उत्परिवर्तन होते हैं। न्यूक्लियर अपशिष्ट विकिरण की ज्यादा मात्रा घातक यानि जानलेवा होती है लेकिन कम मात्रा कई विकार उत्पन्न करती है। इसका सबसे अधिक बार-बार होने वाला विकार कैंसर है। इसलिए न्यूक्लियर अपशिष्ट अत्यन्त प्रभावकारी प्रदूषक है। रेडियो सक्रिय अपशिष्ट का भण्डारण कवचित पात्रों में चट्टानों के नीचे लगभग 500 मीटर की गहराई में पृथ्वी में गाड़कर करना चाहिए। नाभिकीय संयन्त्रों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों जिनमें विकिरण कम हो उसे सीवरेज में छोड़ा जा सकता है। अधिक विकिरण वाले अपशिष्टों का विशेष उपचार, संचय एवं निपटारा किया जाता है।
  2. पुराने बेकार जहाज और ई-अपशिष्ट- पुराने बेकार जहाज वे जहाज हैं, जो अब उपयोग में नहीं हैं। ऐसे जहाजों को भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में रद्दी धातु के लिए तोड़ दिया जाता है। ये जहाज विभिन्न प्रकार के विषाक्त पदार्थों का स्रोत है जैसे अभ्रक, सीसा, पारा आदि। इसलिए, वे ठोस अपशिष्टों में योगदान करते हैं जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होते हैं। ई-अपशिष्ट या इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्टों में आमतौर पर कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामान शामिल होते हैं। इस प्रकार के अपशिष्ट धातु जैसे तांबा, लोहा, सिलिकॉन, सोना आदि प्रचुर मात्रा में होते हैं। ये धातु अत्यधिक विषैले होते हैं और इसके कारण गंभीर स्वास्थ्य संबंधी खतरे उत्पन्न होते हैं। विकासशील देशों के लोग इन धातुओं के पुनश्चक्रण प्रक्रिया में शामिल होते हैं और इन अपशिष्टों में मौजूद विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आते हैं।
  3. नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट- इसके अन्तर्गत घरों, कार्यालयों, भण्डारों, विद्यालयों आदि में रद्दी में फेंकी गई चीजें आती हैं जो नगरपालिका द्वारा इकट्ठी की जाती हैं और उनका निपटारा किया जाता है। इसमें आमतौर पर कागज, खाद्य अपशिष्ट, कॉच, धातु, रबर, चमड़ा, वस्त्र आदि होते हैं। इनको जलाने से अपशिष्ट के आयतन में कमी आती है। खुले में इसे फेंकने से यह चूहों और मक्खियों के लिए प्रजनन स्थल का कार्य करता है। इसका निपटारा सैनिटरी लैंडफिल्स के माध्यम से भी किया जाता है। इन लैंडफिल्स से रसायनों के रिसाव का खतरा है जिससे कि भौम जल संसाधन प्रदूषित हो जाते हैं। खासकर महानगरों में कचरा इतना अधिक होने लगता है कि ये स्थल भी भर जाते हैं। इन सब का मात्र एक हल है कि पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति हम सभी को अधिक संवेदनशील होना चाहिए।

प्रश्न 10 दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए क्या प्रयास किए गए? क्या दिल्ली में वायु की गुणवत्ता में सुधार हुआ?

उत्तर- दिल्ली का स्थान विश्व के 41 सर्वाधिक प्रदूषित नगरों में चौथा है। जीवाश्म ईंधन के दहन के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण में वृद्धि हुई है। दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं-

संपीडित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) का प्रयोग- भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार, दिल्ली में प्रदूषण-स्तर को कम करने के लिए वर्ष 2002 के अंत में सभी बसों सीएनजी संचालित वाहनों में परिवर्तित कर दिया गया। सीएनजी एक स्वच्छ ईंधन है जो बहुत ही कम मात्रा में जलने से बच जाता है।

  • पुराने वाहनों को हटाना।
  • सीसा रहित पेट्रोल और डीजल का प्रयोग।
  • उत्प्रेरक परिवर्तकों का उपयोग।
  • वाहनों के लिए कठोर प्रदूषण-स्तर लागू करना।
  • यूरो मानक के अनुसार डीजल और पेट्रोल में गंधक को नियंत्रित करना।

सीएनजी संचालित वाहनों के प्रयोग से दिल्ली के वायु प्रदूषण में सुधार हुआ है, जिससे CO2 तथा SO2 के स्तर में काफी गिरावट आई है। हालांकि, निलंबित कण पदार्थ (एसपीएम) और श्वसन निलंबित कण पदार्थ (आरएसपीएम) की समस्या अभी भी विद्यमान है।

प्रश्न 11 निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें-

  1. ग्रीनहाउस गैस।
  2. उत्प्रेरक परिवर्तक (कैटालिटिक कनवर्टर)।
  3. पराबैंगनी-बी (अल्ट्रावायलेट बी)।

उत्तर- 

  1. ग्रीनहाउस गैसें (Green House Gases)- कार्बन-डाई-ऑक्साइड, मीथेन, जलवाष्प, नाइट्रसऑक्साइड तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन को ग्रीनहाउस गैस कहा जाता है। ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की सतह का ताप काफी बढ़ जाता है जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता होती है। इन गैसों के कारण ही ग्रीनहाउस प्रभाव पड़ते हैं। ग्रीनहाउस प्रभाव प्राकृतिक रूप से होने वाली परिघटना है जिसके कारण पृथ्वी की सतह और वायुमण्डल गर्म हो जाता है। पृथ्वी का तापमान सीमा से अधिक बढ़ने पर ध्रुवीय हिमटोप के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ने तथा बाढ़ आने की  सम्भावना बढ़ जाती है। आने वाली शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 0.6°C तक बढ़ जाएगा। औद्योगिक विकास, जनसंख्या वृद्धि एवं वृक्षों की निरन्तर हो रही कमी से वायुमण्डल में CO2 की मात्रा 0.03% से बढ़कर 0.04% हो गई है। अगर यही क्रम जारी रहा तो बहुत सारे द्वीप एवं समुद्री तटों पर बसे शहर समुद्र में समा जाएँगे।
  2. उत्प्रेरक परिवर्तक (कैटालिटिक कनवर्टर)- उत्प्रेरक परिवर्तक स्वचलित वाहनों में लगे होते हैं जो विषैले गैसों के उत्सर्जन को कम करते हैं। इसमें कीमती धातु, प्लैटिनम-पैलेडियम और रोडियम लगे होते हैं जो उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। जैसे ही निर्वात उत्प्रेरक परिवर्तक से होकर गुजरता है अद्ग्ध हाइड्रोकार्बनडाईऑक्साइड और जल में बदल जाता है और कार्बन मोनोऑक्साइड तथा नाइट्रिक ऑक्साइड क्रमशः कार्बन डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित हो जाता है। उत्प्रेरक परिवर्तक युक्त मोटर वाहनों में सीसा रहित पेट्रोल का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि सीसा युक्त पेट्रोल उत्प्रेरक को अक्रिय करता है।

पराबैंगनी-बी (अल्ट्रावायलेट बी)- यह DNA को क्षतिग्रस्त करता और उत्परिवर्तन को बढ़ाता है। इससे कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और विविध प्रकार के त्वचा कैंसर उत्पन्न होते हैं। हमारे आँख का स्वच्छमंडल (कॉर्निया) UV- बी विकिरण का अवशोषण करता है। इसकी उच्च मात्रा के कारण कॉर्निया का शोथ हो जाता है, जिसे हिम अंधता, मोतियाबिन्द आदि कहा जाता है। इस प्रकार पराबैंगनी किरणें सजीवों के लिए बेहद हानिकारक हैं।

Class 12 Biology All Chapter Notes and Que & Ans