Class 12 Biology Chapter 15 जीव विविधतता एवं संरक्षण Question Answer in Hindi

Class 12 Biology Chapter 15 जीव विविधतता एवं संरक्षण Question Answer in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 15: जैव विविधता और संरक्षण के लिए हिंदी में विस्तृत प्रश्न-उत्तर चर्चा का अन्वेषण करें। अपनी शंकाओं को स्पष्ट करें और अपनी समझ को प्रभावी ढंग से बढ़ाएं।

Class 12 Biology Chapter 15 जीव विविधतता एवं संरक्षण Question Answer in Hindi

अभ्यास (पृष्ठ संख्या 295)

प्रश्न 1 जैव विविधता के तीन आवश्यक घटकों (कंपोनेंट) के नाम लिखिए?

उत्तर- जैवविविधता, जैवीय संगठन के सभी स्तरों में उपस्थित कुल विविधता को दर्शाती है।

जैवविविधता के तीन आवश्यक घटक निम्नलिखित है-

  1. आनुवांशिक विविधता।
  2. जातीय विविधता।
  3. पारितंत्र विविधता।

प्रश्न 2 पारिस्थितिकीविद् किस प्रकार विश्व की कुल जातियों का आंकलन करते हैं?

उत्तर- पृथ्वी पर जातीय विविधता समान रूप से वितरित नहीं है, बल्कि एक रोचक प्रतिरूप दर्शाती है। पारिस्थितिकीविद् विश्व की कुल जातियों का आकलन अक्षांशों पर तापमान के आधार पर करते हैं। जैव विविधता साधारणतया, उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र में सबसे अधिक तथा ध्रुवों की तरफ घटती जाती है। उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र में जातीय समृद्धि के महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं- उष्ण कटिबन्ध क्षेत्रों (Tropical regions) में जैव जातियों को विकास के लिए अधिक समय मिला तथा इस क्षेत्र को अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त हुई जिससे उत्पादकता अधिक होती है। जातीय समृद्धि किसी प्रदेश के क्षेत्र पर आधारित होती है। पारिस्थितिकीविद् प्रजाति की उष्ण एवं शीतोष्ण प्रदेशों (Temperate regions) में मिलने की प्रवृत्ति, अधिकता आदि की अन्य प्राणियों एवं पौधों से तुलना कर उसके अनुपात की गणना और आकलन करते हैं।

प्रश्न 3 उष्ण कटिबन्ध क्षेत्रों में सबसे अधिक स्तर की जाति-समृद्धि क्यों मिलती है? इसकी तीन परिकल्पनाएँ दीजिए।

उत्तर- उष्ण कटिबंध क्षेत्रों में सबसे अधिक स्तर की जाति-समृद्धि की तीन परिकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. उष्णकटिबंधीय क्षेत्र समशीतोष्ण क्षेत्रों की तुलना में अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त करते हैं, जिससे उच्च उत्पादकता और उच्च प्रजाति की विविधता होती है।
  2. उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कम मौसमीय परिवर्तन होते हैं और अधिक या कम स्थिर वातावरण होते हैं। यह निकेत विशिष्टीकरण को प्रोत्साहित करता है और इस प्रकार, अधिक जाति समृद्धि को बढ़ावा देता है।
  3. शीतोष्ण क्षेत्रों में हिमनदन होता रहा है, जबकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्र लाखों वर्षों से अपेक्षाकृत अबाधित रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र की जाति विविधता में वृद्धि हुई।

प्रश्न 4 जातीय-क्षेत्र सम्बन्ध में समाश्रयण (रिग्रेशन) की ढलान का क्या महत्त्व है?

उत्तर- जातीय-क्षेत्र सम्बन्ध (Species-area relationship)- जर्मनी के महान् प्रकृतिविद् व भूगोलशास्त्री एलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट (Alexander Von Humboldt) ने दक्षिणी अमेरिका के जंगलों में गहन खोज के बाद जाति समृद्धि तथा क्षेत्र के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया। उनके अनुसार कुछ सीमा तक किसी क्षेत्र की जातीय समृद्धि अन्वेषण क्षेत्र की सीमा बढ़ाने के साथ बढ़ती है। जाति समृद्धि और वर्गकों की व्यापक किस्मों के क्षेत्र के बीच सम्बन्ध आयताकार अतिपरवलय (rectangular hyperbola) होता है। यह लघुगणक पैमाने पर एक सीधी रेखा दर्शाता है। इस सम्बन्ध को निम्नांकित समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है-

log S = log C + Z log A

जहाँ; S = जाति समृद्धि, A = क्षेत्र, Z = रेखीय ढाल (समाश्रयण गुणांक रिग्रेशन कोएफिशिएंट)

C = Y = अन्त:खण्ड (इंटरसेप्ट)

पारिस्थितिकी वैज्ञानिकों के अनुसार z का मान 0.1 से 0.2 परास में होता है। यह वर्गिकी समूह अथवा क्षेत्र पर निर्भर नहीं करता है। आश्चर्यजनक रूप से समाश्रयण रेखा (regression line) की ढलान एक जैसी होती है। यदि हम किसी बड़े समूह के जातीय क्षेत्र सम्बन्ध जैसे- सम्पूर्ण महाद्वीप का विश्लेषण करते हैं, तब ज्ञात होता है कि समाश्रयण रेखा की ढलान तीव्र रूप से तिरछी खड़ी होती। है। Z के माने की परास (range) 0.6 से 1.2 होती है।

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प्रश्न 5 किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण क्या हैं?

उत्तर- जैव विविधता की क्षति के कारण- जातीय विलोपन की बढ़ती हुई दर जिसका विश्व सामना कर रहा है वह मुख्यरूप से मानव क्रियाकलापों के कारण है। इसके चार मुख्य कारण हैं-

  1. आवासीय क्षति तथा विखंडन- यह जंतु व पौधे के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण है। उष्ण कटिबंधीय वर्षा-वनों से होने वाली आवासीय क्षति का सबसे अच्छा उदाहरण है। एक समय वर्षा वन पृथ्वी के 14 प्रतिशत क्षेत्र में फैले थे। लेकिन अब 6 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में नहीं हैं। ये इतनी तेजी से नष्ट हो रहे हैं कि जब तक आप इस अध्याय को पढेंगे हजारों हेक्टेयर वर्षा वन समाप्त हो चुके होंगे। विशाल अमेजन वर्षा-वन, (जिसे विशाल होने के कारण ‘पृथ्वी का फेफड़ा’ कहा जाता है)। उसमें संभवतः करोडों जातियाँ (स्पीशीज) निवास करती हैं। इस वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चारागाहों के लिए काटकर साफ कर दिया गया है। संपूर्ण आवासीय क्षति के अलावा प्रदूषण के कारण भी आवास में खंडन (फ्रैग्मेंटेशन) हुआ है, जिससे बहुत सी जातियों के जीवन को खतरा उत्पन हुआ है। जब मानव क्रियाकलापों द्वारा बड़े आवासों को छोटे-छोटे खडों में विभक्त कर दिया जाता है तब जिन स्तनधारियों और पक्षियों को अधिक आवास चाहिए तथा प्रवासी (माइग्रेटरी) स्वभाव वाले कुछ प्राणी बुरी तरह प्रभावित होते हैं जिससे समष्टि (पॉपुलेशन) में कमी होती है।
  2. अतिदोहन- मानव हमेशा भोजन तथा आवास के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है, लेकिन जब ‘आवश्यकता’ ‘लालच’ में बदल जाती है। तब इस प्राकृतिक संपदा का अधिक दोहन (ओवर एक्सप्लाइटेशन) शुरू हो जाता है। मानव द्वारा अति दोहन से पिछले 500 वर्षों में बहुत सी जातियाँ (स्टीलर समुद्री गाय, पैसेंजर कबूतर) विलुप्त हुई हैं। आज बहुत सारी समुद्री मछलियों आदि की जनसंख्या शिकार के कारण कम होती जा रही हैं जिसके कारण व्यावसायिक महत्त्व की जातियाँ खतरे में हैं।
  3. विदेशी जातियों का आक्रमण- जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जानबूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानिक जातियों में कमी या उनकी विलप्ति का कारण बन जाती हैं। जैसे जब नील नदी की मछली (नाइल पर्च) को पूर्वी अफ्रीका की विक्टोरिया झील में डाला गया तब झील में रहने वाली पारिस्थितिक रूप से बेजोड़ सिचलिड मछलियों की 200 से अधिक जातियाँ विलुप्त हो गईं। आप गाजर घास (पार्थनियम), लेंटाना, और हायसिंथ (आइकार्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियों से पर्यावरण को होने वाली क्षति और हमारी देशज जातियों के लिए पैदा हुए खतरे से अच्छी तरह से परिचित हैं। मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश कलैरियस गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया, लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश जातियों) के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।
  4. सहविलुप्तता- जब एक जाति विलुप्त होती है तब उस पर आधारित दुसरी जंतु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती हैं। जब एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है तब उसके विशिष्ट परजीवियों का भी वही भविष्य होता है। दूसरा उदाहरण विकसित (कोइवाल्वड) परागणकारी (पॉलिनेटर) सहोपकारिता (म्यूचुआलिज़्म) का है जहाँ एक (पादप) के विलोपन से दूसरे (कीट) का विलोपन भी निश्चित रूप से होता है।

प्रश्न 6 पारितन्त्र के कार्यों के लिए जैवविविधता कैसे उपयोगी है?

उत्तर-  कम जातीय विविधता वाले पारिस्थितिकी तंत्र की अपेक्षा उच्च जातीय विविधता वाला पारिस्थितिकी तंत्र अधिक स्थिर होता है। इसके अतिरिक्त, उच्च जैव विविधता पारिस्थितिक तंत्र को उत्पादकता में और अधिक स्थिरता लाता है और विदेशी जातियों के आक्रमण और बाढ़ जैसी बाधाओं के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनाता है। यदि एक पारिस्थितिकी तंत्र जैव विविधता में समृद्ध है, तो पारिस्थितिक संतुलन प्रभावित नहीं होगा। जैसा कि हम सभी जानते हैं, खाद्य श्रृंखलाओं के माध्यम से विभिन्न पोषण स्तर जुड़े हुए हैं। यदि किसी भी जीव या किसी भी एक पौष्टिक स्तर के सभी जीवों को मार दिया जाता है, तो यह पूरे खाद्य श्रृंखला को बाधित करेगा।

उदाहरण के लिए, एक खाद्य श्रृंखला में यदि सभी पौधे मर जाते हैं, तो आहार की कमी के कारण सभी हिरण मर जाएंगे। यदि सभी हिरण मर जाते हैं, तो जल्द ही बाघ भी मर जाएंगे। इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यदि एक पारिस्थितिकी तंत्र जतियों में समृद्ध है, तो प्रत्येक खाद्य स्तर पर अन्य आहार विकल्प होंगे, जो किसी भी जीव को उनके खाद्य संसाधन की कमी के कारण मरने नहीं देंगे। इसलिए, जैव विविधता एक पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 7 पवित्र उपवन क्या हैं? उनकी संरक्षण में क्या भूमिका है?

उत्तर- अलौकिक ग्रूव्स या पवित्र उपवन पूजा स्थलों के चारों ओर पाये जाने वाले वनखण्ड हैं। ये जातीय समुदायों/ राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किये जाते हैं। पवित्र उपवनों से विभिन्न प्रकार के वन्य जन्तुओं और वनस्पतियों को संरक्षण प्राप्त होता है क्योंकि इनके आस-पास हानिकारक मानव गतिविधियाँ बहुत कम होती हैं। इस प्रकार ये वन्य जीव संरक्षण में धनात्मक योगदान प्रदान करते हैं।

प्रश्न 8 पारितन्त्र सेवा के अन्तर्गत बाढ़ व भू-अपरदन (सॉयल इरोजन) नियन्त्रण आते हैं। यह किस प्रकार पारितन्त्र के जीवीय घटकों (बायोटिक कम्पोनेंट) द्वारा पूर्ण होते हैं?

उत्तर- एक पारिस्थितिकी तंत्र के जैविक घटक में पौधों और पशुओं जैसे जीवों को शामिल किया जाता है। बाढ़ और भू-अपरदन को नियंत्रित करने में पौधे बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पौधों की जड़ें मिट्टी के कणों को एक साथ जकड़ कर रखती हैं, जो तेज हवा या पानी के कारण होने वाले मिट्टी के ऊपरी परत के क्षरण को रोकती है। जड़ें भी मिट्टी को छिद्रयुक्त बना देती हैं, जिससे भूजल अवशोषित होता है और यह बाढ़ को रोकता है। इसलिए, पौधे मिट्टी का क्षरण और प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ और सूखे को रोकने में सक्षम हैं। वे मिट्टी और जैव विविधता की उर्वरता भी बढ़ाते हैं।

प्रश्न 9 पादपों की जाति विविधता (22 प्रतिशत), जन्तुओं (72 प्रतिशत) की अपेक्षा बहुत कम है। क्या कारण है कि जन्तुओं में अधिक विविधता मिलती है?

उत्तर- प्राणियों में अनुकूलन की क्षमता पौधों की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। प्राणियों में प्रचलन का गुण पाया जाता है, इसके फलस्वरूप विपरीत परिस्थितियाँ होने पर ये स्थान परिवर्तन करके स्वयं को बचाए रखते हैं। इसके विपरीत पौधे स्थिर होते हैं, उन्हें विपरीत स्थितियों का अधिक सामना करना ही पड़ता है। प्राणियों में तन्त्रिका तन्त्र तथा अन्त: स्रावी तन्त्र पाया जाता है। इसके फलस्वरूप प्राणी वातावरण से संवेदनाओं को ग्रहण करके उसके प्रति अनुक्रिया करते हैं। प्राणी तन्त्रिका तन्त्र एवं अन्त:स्रावी तन्त्र के फलस्वरूप स्वयं को वातावरण के प्रति अनुकूलित कर लेते हैं। इन कारणों के फलस्वरूप किसी भी पारितन्त्र में प्राणियों में पौधों की तुलना में अधिक जैव विविधता पाई जाती है।

प्रश्न 10 क्या आप ऐसी स्थिति के बारे में सोच सकते हैं, जहाँ पर हम जान-बूझकर किसी जाति को विलुप्त करना चाहते हैं? क्या आप इसे उचित समझते हैं?

उत्तर- हाँ, विभिन्न प्रकार के परजीवी और रोग पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों का हम पृथ्वी से समाप्त करना चाहते हैं। चूंकि ये सूक्ष्म जीव मनुष्यों के लिए हानिकारक हैं, इसलिए वैज्ञानिक उनके विरूद्ध लड़ने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। टीकाकरण के उपयोग के माध्यम से वैज्ञानिकों ने दुनिया से चेचक के विषाणु को खत्म करने में सक्षम हुए हैं। इससे पता चलता है कि मानव जानबूझकर इन जातियों को विलुप्त करना चाहते हैं। कई अन्य उन्मूलन कार्यक्रम जैसे पोलियो और हेपेटाइटिस बी टीकाकरण का उद्देश्य इन रोगों से उत्पन्न सूक्ष्मजीवों को समाप्त करना है।

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