Class 12 Biology Chapter 14 पारितंत्र Question Answer in Hindi

Class 12 Biology Chapter 14 पारितंत्र Question Answer in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 14: पारिस्थितिकी तंत्र के लिए हिंदी में विस्तृत प्रश्न-उत्तर चर्चा का अन्वेषण करें। अपनी शंकाओं को स्पष्ट करें और अपनी समझ को प्रभावी ढंग से बढ़ाएं।

Class 12 Biology Chapter 14 पारितंत्र Question Answer in Hindi

अभ्यास (पृष्ठ संख्या 281-283)

प्रश्न 1 रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये-

  1. पादपों को …………… कहते हैं, क्योंकि ये कार्बन डाइऑक्साइड का स्थिरीकरण करते हैं।
  2. पादप द्वारा प्रमुख पारितंत्र का पिरामिड (संख्या का)…………… प्रकार का होता है।
  3. एक जलीय पारितंत्र में, उत्पादकता का सीमाकारक …………… है।
  4. हमारे पारितंत्र में सामान्य अपरदन …………… है।
  5. पृथ्वी पर कार्बन का प्रमुख भण्डार …………… हैं।

उत्तर- 

  1. उत्पादक
  2. उल्टा
  3. प्रकाश
  4. केंचुआ
  5. समुद्र एवं वायुमण्डल।

प्रश्न 2 एक खाद्य श्रृंखला में निम्नलिखित में सर्वाधिक संख्या किसकी होती है

  1. उत्पादक
  2. प्राथमिक उपभोक्ता
  3. द्वितीयक उपभोक्ता
  4. अपघटक।

उत्तर- (d). अपघटक।

प्रश्न 3 एक झील में द्वितीयक (दूसरी) पोषण स्तर होता है

  1. पादप प्लवक
  2. प्राणी प्लवक
  3. नितलक (बेन्थॉस)
  4. मछलियाँ।

उत्तर- (b). प्राणी प्लवक

प्रश्न 4 द्वितीयक उत्पादक है

  1. शाकाहारी (शाकभक्षी)
  2. उत्पादक
  3. मांसाहारी (मांसभक्षी)
  4. उपरोक्त में से कोई नहीं।

उत्तर- (a) शाकाहारी (शाकभक्षी)

प्रश्न 5 प्रासंगिक सौर विकिरण में प्रकाश-संश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण का क्या प्रतिशत होता है

  1. 100%
  2. 50%
  3. 1-5%
  4. 2-10%

उत्तर- (b). 50%

प्रश्न 6 निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए

  1. चारण खाद्य श्रृंखला एवं अपरदन खाद्य श्रृंखला,
  2. उत्पादन एवं अपघटन
  3. ऊर्ध्ववर्ती (शिखरांश) व अधोवर्ती पिरामिड।

उत्तर-

  1. चारण खाद्य श्रृंखला एवं अपरदन खाद्य श्रृंखला-
 चारण खाद्य श्रृंखलाअपरद खाद्य श्रृंखला
1.इस खाद्य श्रृंखला में, ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती है।इस खाद्य श्रृंखला में, ऊर्जा कार्बनिक पदार्थ (या अपरद) से प्राप्त होता है, जो चारण खाद्य श्रृंखला के पोषण स्तरों में उत्पन्न होती है।
2.यह उत्पादकों से प्रारंभ होती है, जो प्रथम पोषण स्तर में उपस्थित होता है।यह पादपों तथा प्राणियों (पशुओं) के मृत अवशेष जैसे अपरद से प्रारंभ होती है, जो अपघटक या अपरदहारी द्वारा खाया जाता है।
3.यह खाद्य श्रृंखला प्रायः पर बड़ी होती है।यह प्रायः चारण खाद्य श्रृंखला की अपेक्षा छोटा होता है।
  1. उत्पादन एवं अपघटन-
 उत्पादनअपघटन
1.यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे प्रकाश-संश्लेषण के योगिक द्वारा कार्बनिक भोज्य पदार्थ का निर्माण होता है।यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे जटिल कार्बनिक तत्व सरल अकार्बनिक तत्वों में तोड़े जाते है।
2.ये हरे पौधे द्वारा संपन्न किए जाते है।ये जीवाणुओं तथा कवकों द्वारा संपन्न किए जाते है।
  1. ऊर्ध्ववर्ती (शिखरांश) व अधोवर्ती पिरामिड-
 उर्ध्ववर्ती (शिखरांश) पिरैमिडअधोवर्ती पिरैमिड
1.ऊर्जा का पिरैमिड हमेशा उर्ध्ववर्ती होता है।जैव मात्रा का पिरामिड और संख्याओं का पिरामिड उल्टा हो सकता है।
2.पारिस्थितिकी तंत्र के उत्पादक स्तर में जीवों तथा जैवमात्रा की संख्या उच्चतम होती है, जो खाद्य श्रृंखला में प्रत्येक पोषण स्तर पर कम होता जाता है।पारिस्थितिकी तंत्र के उत्पादक स्तर में जीवों और जैव मात्रा की संख्या सबसे कम होती है, जो प्रत्येक पोषण स्तर पर बढ़ती जाती है।

प्रश्न 7 निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए

  1. खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल (वेष)
  2. लिटर (कर्टक) एवं अपरद
  3. प्राथमिक एवं द्वितीयक उत्पादकता।

उत्तर-

  1. खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल (वेष)-
 खाद्य श्रृंखलाखाद्य जाल
1. एक पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का एकदिशीय प्रवाह उसमें स्थित श्रृंखलाबद्ध तरीके से जुड़े जीवों के द्वारा होता है। जीवों की इस श्रृंखला को खाद्य श्रृंखला कहते हैं।पारिस्थितिक तन्त्र में सामान्यतः एक साथ कई आहार श्रृंखलाएँ पाई जाती हैं। ये आहार श्रृंखलाएँ हमेशा सीधी न होकर एक-दूसरे से को आड़े-तिरछे जुड़कर एक जाल बनाती हैं। आहार-श्रृंखलाओं के इस जाल को खाद्य जाल कहते हैं।
2.सभी खाद्य श्रृंखलाएँ पौधे से प्रारम्भ होती हैं तथा इसमें उपभोक्ता एक से अधिक भोजन स्रोत का उपयोग नहीं करता है।इसमें एक उपभोक्ता एक से अधिक भोजन स्रोत का उपयोग करता है।
  1. लिटर (कर्टक) एवं अपरद-
 लिटर (कर्कट)अपरद
1. पृथ्वी की सतह पर सभी प्रकार के अपशिष्ट पदार्थ लिटर (कर्कट) होते हैं।पृथ्वी के सतह के ऊपर और नीचे मृत जीवों और पौधों के अवशेष अपरद बनाते हैं।
2.इसमें जैव-निम्नीकरणीय और अजैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट दोनों शामिल किया जाता है।इसमें केवल जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट होते हैं।
  1. प्राथमिक एवं द्वितीयक उत्पादकता-
 प्राथमिक उत्पादकताद्वितीयक उत्पादकता
1.उत्पादकों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण एवं रसायन संश्लेषण से सौर ऊर्जा को कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित करने की दर को प्राथमिक उत्पादकता कहते हैं। इसे प्रति इकाई समय एवं क्षेत्रफल में मापा जाता है।जब ऊर्जा के संचयन की दर को उपभोक्ता के स्तर पर मापा जाता है तो इसे द्वितीयक उत्पादकता कहते हैं।
2.इसे सकल एवं शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता में विभाजित किया जा सकता है।यह उत्पादकता सकल एवं शुद्ध उत्पादकताओं में विभाजित नहीं होती है।

प्रश्न 8 पारिस्थितिक तन्त्र के घटकों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर- परिस्थितिक तन्त्र की परिभाषा- स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल का वह क्षेत्र जिसमें जीवधारी रहते हैं, जैवमण्डल (biosphere) कहलाता है। जैवमण्डल में पाए जाने वाले जैवीय (biotic) तथा अजैवीय (abiotic) घटकों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन पारितन्त्र (ecosystem) कहलाता है। पारितन्त्र या पारिस्थितिक तन्त्र (ecosystem) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टैन्सले (Tansley, 1935) ने किया था। यदि जीवमण्डल में जैविक, अजैविक अंश तथा भूगर्भीय, रासायनिक व भौतिक लक्षणों को शामिल करें तो यह पारिस्थितिक तन्त्र बनता है। पारिस्थितिक तन्त्र सीमित व निश्चित भौतिक वातावरण का प्राकृतिक तन्त्र है जिसमें जीवीय (biotic) तथा अजीवीय (abiotic) अंशों की संरचना और कार्यों का पारस्परिक आर्थिक सम्बन्ध सन्तुलन में रहता है। इसमें पदार्थ तथा ऊर्जा का प्रवाह सुनियोजित मार्गों से होता है।

पारिस्थितिक तन्त्र के घटक-

पारिस्थितिक तन्त्र के मुख्यतया दो घटक होते हैं-

  1. जैविक घटक (Biotic components)- पारिस्थितिक तन्त्र में तीन प्रकार के जैविक घटक होते हैं- स्वपोषी (autotrophic),परपोषी (heterotrophic) तथा अपघटक (decomposers)।
  1. स्वपोषी घटक (Autotrophic component)- हरे पादप पारितन्त्र के स्वपोषी घटक होते हैं। ये सौर ऊर्जा तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में CO2 तथा जल से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। हरे पादप उत्पादक (producer) भी कहलाते हैं। हरे पौधों में संचित खाद्य पदार्थ दूसरे जीवों का भोजन है।
  2. परपोषी घटक (Heterotrophic components)- ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते, ये भोजन के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं। इन्हें उपभोक्ता (consumer) कहते हैं। उपभोक्ता तीन प्रकार के होते हैं-
  • प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता अथवा शाकाहारी (Herbivores)- ये उपभोक्ता अपना भोजन सीधे उत्पादकों (हरे पौधों) से प्राप्त करते हैं। इन्हें शाकाहारी कहते हैं। जैसे- गाय, बकरी, भैंस, चूहा, हिरन, खरगोश आदि।
  • द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता अथवा मांसाहारी (Carnivores)- द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता भोजन के लिए शाकाहारी जन्तुओं का भक्षण करते हैं, इन्हें मांसाहारी कहते हैं जैसे- मेढक, साँप आदि।
  • तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता- तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता से भोजन प्राप्त करते हैं जैसे- शेर, चीता, बाज आदि। कुछ जन्तु सर्वाहारी (omnivores) होते हैं, ये पौधों अथवा जन्तुओं से भोजन प्राप्त कर सकते हैं जैसे- कुत्ता, बिल्ली, मनुष्य आदि।
  1. अपघटक (Decomposers)- ये जीव कार्बनिक पदार्थों को उनके अवयवों में तोड़ देते हैं। ये मुख्यत: उत्पादक व उपभोक्ता के मृत शरीर का अपघटन करते हैं। इन्हें मृतजीवी भी कहते हैं। सामान्यतः ये जीवाणु व कवक होते हैं। इसके फलस्वरूप प्रकृति में खनिज पदार्थों का चक्रण होता रहता है। उत्पादक, उपभोक्ता व अपघटक सभी मिलकर बायोमास (biomass) बनाते हैं।
  2. अजैविक घटक (Abiotic components)- किसी भी पारितन्त्र के अजैविक घटक तीन भागों में विभाजित किए जा सकते हैं-
  1. जलवायवीय घटक (Climatic components)- जल, ताप, प्रकाश आदि।
  2. अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic substances)- C, O, N, CO2 आदि। ये विभिन्न चक्रों के माध्यम से जैव-जगत् में प्रवेश करते हैं।
  3. कार्बनिक पदार्थ (Organic substances)- प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा आदि। ये अपघटित होकर पुनः सरल अवयवों में बदल जाते हैं।

कार्यात्मक दृष्टि से अजैविक घटक दो भागों में विभाजित किए जाते हैं –

  • पदार्थ (Materials)- मृदा, वायुमण्डल के पदार्थ जैसे- वायु, गैस, जल, CO2, O2, N2, लवण जैसे- Ca, S, P कार्बनिक अम्ल आदि।
  • ऊर्जा (Energy)- विभिन्न प्रकार की ऊर्जा जैसे- सौर ऊर्जा, तापीय ऊर्जा, गतिज ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा आदि।

प्रश्न 9 पारिस्थितिकी पिरैमिड को परिभाषित कीजिए तथा जैवमात्रा या जैवभार तथा संख्या के पिरैमिडों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।

उत्तर- एक पारिस्थितिकी पिरैमिड विभिन्न पारिस्थितिकी मानकों का आरेखीय निरूपण होता है, जैसे- प्रत्येक पोषण स्तर में स्थित जीवों की संख्या, ऊर्जा की मात्रा या प्रत्येक पोषण स्तर में स्थित जैवमात्रा। पारिस्थितिकी पिरैमिड का आधार उत्पादकों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि शिखाग्र पारितंत्र में उपस्थित उच्च स्तर के उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करता है।

पिरैमिड तीन प्रकार के होते हैं-

  1. संख्या का पिरैमिड- यह एक पारिस्थितिकी तंत्र के खाद्य श्रृंखला में प्रत्येक पोषण स्तर पर उपस्थित जीवों की संख्या का एक आरेखीय निरूपण होता है। संख्या के पिरामिड उत्पादकों की संख्या के आधार पर ऊपर की ओर या उल्टे हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक घास के मैदान की पारिस्थितिक तंत्र में संख्या का पिरैमिड ऊपर की ओर होता है। इस प्रकार की खाद्य श्रृंखला में, उत्पादक (पौधों) की संख्या में उसके बाद शाकाहारियों (चूहों) की संख्या होती है, जो बदले में द्वितीयक उपभोक्ताओं (साँप) और तृतीयक मांसाहारी (गरूड़) की संख्या होती है। इसलिए, उत्पादक स्तर पर जीवों की संख्या अधिकतम होगी, जबकि शीर्ष मांसाहारी पर स्थित जीवों की संख्या दूसरी तरफ होगी| परजीवी खाद्य श्रृंखला में, संख्या का पिरामिड उल्टा होता है। इस प्रकार की खाद्य श्रृंखला में, एक पेड़ (उत्पादक) फलों के खाने वाले कई पक्षियों को आहार प्रदान करता है, जो बदले में कई कीट प्रजातियों का समर्थन करता है।
  2. जैवमात्रा का पिरैमिड- जैवमात्रा का पिरैमिड एक पारिस्थितिकी तंत्र के प्रत्येक पोषण स्तर पर उपस्थित जीवित पदार्थ की कुल संख्या का एक आरेखीय निरूपण होता है। यह ऊपर की ओर या उल्टा हो सकता है। यह घास के मैदानों और वन पारिस्थितिक तंत्र में ऊपर की ओर होता है क्योंकि उत्पादक स्तर पर उपस्थित जैवमात्रा की मात्रा शीर्ष मांसाहारी स्तर से अधिक होता है। जैवमात्रा का पिरैमिड एक झील के पारिस्थितिक तंत्र में उलटा होता है क्योंकि मछलियों की जैवमात्रा प्राणिप्ल्वक की जैवमात्रा से अधिक होती है (जिसका वे आहार बनाते हैं)।
  3. ऊर्जा का पिरैमिड- ऊर्जा पिरैमिड किसी समुदाय में हो रहे ऊर्जा प्रवाह का एक आरेखीय निरूपण होता है। विभिन्न स्तरों में जीवों के विभिन्न समूहों का प्रतिनिधित्व होता है, जो एक खाद्य श्रृंखला की रचना कर सकते हैं। नीचे से ऊपर की ओर, वे इस प्रकार हैं- उत्पादक समुदाय में अजैविक स्रोतों से ऊर्जा लाते हैं।

प्रश्न 10 प्राथमिक उत्पादकता क्या है? उन कारकों की संक्षेप में चर्चा कीजिए जो प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करते हैं।

उत्तर- प्राथमिक उत्पादकता (Primary Productivity)- हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित करके कार्बनिक पदार्थों में संचित कर देते हैं। यह क्रिया पर्णहरित तथा सौर प्रकाश की उपस्थिति में CO2 तथा जल के उपयोग द्वारा होती है। इस क्रिया के फलस्वरूप जैव जगत में सौर ऊर्जा का निरन्तर निवेश होता रहता है। प्रकाश संश्लेषण द्वारा संचित ऊर्जा को प्राथमिक उत्पादन (primary production) कहते हैं। एक निश्चित अवधि में प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादित जीवभार (biomass) या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को भार (g/m2) या ऊर्जा (kcal/m2) के रूप में अभिव्यक्त करते हैं। ऊर्जा की संचय दर को प्राथमिक उत्पादकता (primary productivity) कहते हैं। इसे kcal/m2/yr या g/m2/r में अभिव्यक्त करते हैं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में हरे पौधों द्वारा कार्बनिक पदार्थों में स्थिर (fixed) सौर ऊर्जा की कुल मात्रा को सकल प्राथमिक उत्पादन (Gross Primary Production: G.PP) कहते हैं।

प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Primary Production)- प्राथमिक उत्पादकता एक सुनिश्चित क्षेत्र में पादप प्रजातियों की प्रकृति पर निर्भर करती है। यह विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय कारकों (प्रकाश, ताप, वर्षा, आर्द्रता, वायु, वायुगति, मृदा का संघटन, स्थलाकृतिक कारक तथा सूक्ष्मजैवीय कारक आदि), पोषकों की उपलब्धता (मृदा कारक) तथा पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्षमता पर निर्भर करती है। इस कारण विभिन्न पारितन्त्रों की प्राथमिक उत्पादकता भिन्न-भिन्न होती है। मरुस्थल में प्रकाश तीव्र होता है, ताप की अधिकता और जल की कमी होती है। अत: इन क्षेत्रों में जल की कमी के कारण पोषकों की उपलब्धता कम रहती है। इस प्रकार प्राथमिक उत्पादकता प्रभावित होती है। इसके विपरीत उपयुक्त प्रकाश एवं ताप की उपलब्धता के कारण शीतोष्ण प्रदेशों में उत्पादन अधिक होता है।

प्रश्न 11 अपघटन की परिभाषा दे, तथा अपघटन की प्रक्रिया एवं उसके उत्पादों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर- अपघटन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कार्बनिक डाइऑक्साइड, जल एवं अन्य पोषक तत्वों जैसे- अकार्बनिक कच्चे माल में अपघटक की सहायता से मृत पौधों और जीवों के अवशेष से जटिल कार्बनिक पदार्थ या जैवमात्रा का खंडन शामिल है।

अपघटन में विभिन्न प्रक्रिया निम्नलिखित हैं-

  • खंडन- यह अपघटन की प्रक्रिया का पहला चरण है। अपरदहारी (जैसे कि केंचुए) अपरद को छोटे-छोटे कणों में खंडित कर देते हैं।
  • निक्षालन- इस प्रक्रिया के अंतर्गत जल-विलेय अकार्बनिक पोषक भूमि मृदासंस्तर में प्रविष्ट कर जाते हैं और अनुपलब्ध लवण के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं।
  • अपचय- बैक्टीरियल एवं कवकीय एंजाइंस अपरदों को सरल अकार्बनिक तत्त्वों में तोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया को अपचय कहते हैं।
  • ह्युमीफिकेशन- ह्युमीफिकेशन के द्वारा एक गहरे रंग के क्रिसटल रहित तत्त्व का निर्माण होता है, जिसे ह्यूमस कहते हैं जोकि सूक्ष्मजैविक क्रिया के लिए उच्च प्रतिरोधी होता है।
  • खनिजीकरण- ह्यूमस सूक्ष्म जीवों द्वारा खंडित होता है। स्वभाव में कोलाइडल होने के कारण ह्यूमस पोषक के भंडार का काम करता है। ह्यूमस से अकार्बनिक पोषक तत्वों को मुक्त करने की प्रक्रिया को खनिजीकरण कहा जाता है अपघटन की प्रक्रिया में गहरे रंग का के क्रिसटल रहित तत्त्व का निर्माण होता है जिसे ह्यूमस कहते हैं। यह पोषक का भंडार होता है। ह्यूमस अंततः मिट्टी में CO2, जल और अन्य पोषक तत्वों जैसे अकार्बनिक कच्चे पदार्थों का अपघटन और मुक्त करता है।

प्रश्न 12 एक पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा प्रवाह का वर्णन कीजिए।

उत्तर- पारितन्त्र में ऊर्जा प्रवाह पारितन्त्र को ऊर्जा मुख्य रूप से सौर ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है। सौर ऊर्जा का उपयोग हरे पादप (उत्पादक) ही कर सकते हैं। उत्पादक (हरे पौधे) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलकर कार्बनिक पदार्थों के रूप में संचित करते हैं। खाद्य पदार्थ के रूप में ऊर्जा उत्पादक (producers) से विभिन्न स्तर के उपभोक्ताओं (consumers) को प्राप्त होती है। ऊर्जा को प्रवाह एकदिशीय (unidirectional) होता है।

Class 12 Biology Chapter 14 पारितंत्र Question Answer in Hindi

प्रत्येक खाद्य स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा का 90% जीवधारी की जैविक क्रियाओं में खर्च हो जाता है, केवल 10% संचित ऊर्जा ही अगले खाद्य स्तर को हस्तान्तरित होती है। हस्तान्तरण के समय भी कुछ ऊर्जा का ह्रास होता है। इस प्रकार एक खाद्य स्तर से दूसरे खाद्य स्तर में केवल 10% ऊर्जा हस्तान्तरित होती है। उदाहरणार्थ- एक खाद्य श्रृंखला में यदि उत्पादक के पास 100% ऊर्जा है तो प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता (शाकाहारी) को केवल 10% ऊर्जा मिलेगी। उससे दूसरी श्रेणी के उपभोक्ता (मांसाहारी) को केवल 1% ऊर्जा मिलेगी। इसी प्रकार अगली श्रेणी के उपभोक्ता को 0.1% ऊर्जा मिलती है। इस प्रकार एक से दूसरी श्रेणी के जीव को केवल 10% ऊर्जा पिछली श्रेणी से प्राप्त हो सकती है। उपभोक्ता में सर्वाधिक ऊर्जा केवल शाकाहारियों को प्राप्य है।

Class 12 Biology Chapter 14 पारितंत्र Question Answer in Hindi

पारितन्त्र में ऊर्जा को एकपक्षीय प्रवाह तथा अकार्बनिक पदार्थों के परिसंचरण का पारिस्थितिकी सिद्धान्त सभी जीवों एवं पर्यावरण पर लागू होता है।

प्रश्न 13 एक पारिस्थितिक तन्त्र में एक अवसादीय चक्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताओं का वर्णन करें।

उत्तर- अवसादीय चक्र के भंडार धरती के पटल (पपड़ी) में स्थित होते हैं। पोषक तत्व पृथ्वी के अवसाद में पाए जाते हैं। सल्फर, फास्फोरस, पोटेशियम और कैल्शियम जैसे तत्वों में अवसादीय चक्र होते हैं। अवसादीय चक्र बहुत धीमी गति से होते हैं। वे अपने संचरण को पूरा करने में लंबा समय लेते हैं और उन्हें कम परिपूर्ण चक्र माना जाता है। इसका काsरण यह है कि पुनः चक्रण के दौरान, पोषक तत्व जमे भंडार में बंद हो सकता है, जिसे बाहर आने में बहुत समय लगता है और संचरण जारी रहता है। इस प्रकार, यह प्रायः एक लंबे समय में संचरण से बाहर चला जाता है।

प्रश्न 14 एक पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन चक्रण की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताओं की रूपरेखा प्रस्तुत करें।

उत्तर- एक पारितन्त्र में कार्बन चक्रण की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ इस प्रकार हैं-

  • जीवों के शुष्क भार का 49% भाग कार्बन से बना होता है।
  • समुद्र में 71% कार्बन विलेय के रूप में विद्यमान है। यह सागरीय कार्बन भण्डार वायुमण्डल में CO2 की मात्रा को नियमित करता है।
  • जीवाश्मी ईंधन भी कार्बन के एक भण्डार का प्रतिनिधित्व करता है।
  • कार्बन चक्र वायुमण्डल, सागर तथा जीवित एवं मृतजीवों द्वारा संपन्न होता है।
  • अनुमानतः जैव मण्डल में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष 4 × 1013 किग्रा कार्बन का स्थिरीकरण होता है।
  • एक महत्त्वपूर्ण कार्बन की मात्रा CO2 के रूप में उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं की श्वसन क्रिया के माध्यम से वायुमण्डल में वापस आती है। भूमि एवं सागरों में कचरा सामग्री एवं मृत कार्बनिक सामग्री के अपघटन की प्रक्रियाओं द्वारा भी CO2 की काफी मात्रा अपघटकों द्वारा छोड़ी जाती है।
  • यौगिकीकृत कार्बन की कुछ मात्रा अवसादों में नष्ट होती है और संचरण द्वारा निकाली जाती है।

लकड़ी के जलाने, जंगली आग एवं जीवाश्मी ईंधन के जलने के कारण, कार्बनिक सामग्री, ज्वालामुखीय क्रियाओं आदि अतिरिक्त स्रोतों द्वारा वायुमण्डल में CO2 को मुक्त किया जाता है।

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