Class 12 Biology Chapter 13 जीव और समष्टियाँ Question Answer in Hindi

Class 12 Biology Chapter 13 जीव और समष्टियाँ Question Answer in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 13: जीव और जनसंख्या के लिए हिंदी में विस्तृत प्रश्न-उत्तर चर्चा का अन्वेषण करें। अपनी शंकाओं को स्पष्ट करें और अपनी समझ को प्रभावी ढंग से बढ़ाएं।

Class 12 Biology Chapter 13 जीव और समष्टियाँ Question Answer in Hindi

अभ्यास (पृष्ठ संख्या 262-263)

प्रश्न 1 शीत निष्क्रियता (हाइबर्नेशन) से उपरति (डायपाज) किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर- शीत निष्क्रियता (Hibernation)– यह इक्टोथर्मल या शीत निष्क्रिय जन्तुओं (cold-blooded animals), जैसे-एम्फिबियन्स तथा रेप्टाइल्स की शरद नींद (winter sleep) है। जिससे वे अपने आपको ठंड से बचाते हैं। इसके लिए वे निवास स्थान, जैसे-खोह, बिल, गहरी मिट्टी आदि में रहने के लिए चले जाते हैं। यहाँ शारीरिक क्रियाएँ अत्यधिक मन्द हो जाती हैं। कुछ चिड़ियाँ एवं भालू के द्वारा भी शीत निष्क्रियता सम्पन्न की जाती है।

उपरति (Diapause)– यह निलंबित वृद्धि या विकास का समय है। प्रतिकूल परिस्थितियों में झीलों और तालाबों में प्राणिप्लवक की अनेक जातियाँ उपरति में आ जाती हैं जो निलंबित परिवर्धन की एक अवस्था है।

प्रश्न 2 अगर समुद्री मछली को अलवणजल (फ्रेशवाटर) की जलजीवशाला (एक्वेरियम) में रखा जाता है तो क्या वह मछली जीवित रह पाएगी? क्यों और क्यों नहीं?

उत्तर- अगर समुद्री मछली को अलवणजल (फ्रेशवाटर) की जलजीवशाला (एक्वेरियम) में रखा जाता है तो इसके जीवित रहने की संभावना कम हो जाएगी। इसका कारण यह है कि उनके शरीर समुद्री वातावरण के उच्च नमक सांद्रता का आदी है। ताजे पानी की स्थिति में, वे अपने शरीर में प्रवेश करते जल को विनियमित करने में असमर्थ होते हैं (परासरण के द्वारा)। बाहर के अल्पपरासारी पर्यावरण के कारण जल उनके शरीर में प्रवेश करता है परिणामस्वरूप, शरीर की सूजन बढ़ जाती है, जिसके कारण समुद्री मछली मर जाती है।

प्रश्न 3 लक्षण प्ररूपी (फीनोटाइपिक) अनुकूलन की परिभाषा दीजिए। एक उदाहरण भी दीजिए।

उत्तर- लक्षण प्ररूपी अनुकूलन जीवों का ऐसा विशेष गुण है जो संरचना और कार्यिकी की विशेषताओं के द्वारा उन्हें वातावरण विशेष में रहने की क्षमता प्रदान करता है। मरुस्थल के छोटे जीव, जैसे-चूहा, सॉप, केकड़ा दिन के समय बालू में बनाई गई सुरंग में रहते हैं तथा रात को जब तापक्रम कम हो जाता है तब ये भोजन की खोज में बिल से बाहर निकलते हैं। मरुस्थलीय अनुकूलन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण ऊँट है। इसके खुर की निचली सतह, चौड़ी और गद्देदार होती है। इसके पीठ पर संचित भोजन के रूप में वसा एकत्रित रहती है जिसे हंप कहते हैं। भोजन नहीं मिलने पर इस वसा का उपयोग ऊँट ऊर्जा के लिए करता है। जल उपलब्ध होने पर यह एक बार में लगभग 50 लीटर जल पी लेता है जो शरीर के विभिन्न भागों में शीघ्र वितरित हो जाता है। उत्सर्जन द्वारा इसके शरीर से बहुत कम मात्रा में जल बाहर निकलता है। यह प्रायः सूखे मल का त्याग करता है।

प्रश्न 4 अधिकतर जीवधारी 45° सेंटीग्रेड से अधिक तापमान पर जीवित नहीं रह सकते। कुछ सूक्ष्मजीव (माइक्रोब) ऐसे आवास में जहाँ तापमान 100° सेंटीग्रेड से भी अधिक है, कैसे जीवित रहते हैं?

उत्तर- आर्किबैक्टीरिया (थर्मोफिलस) बैक्टीरिया के प्राचीन रूप हैं, जो तप्त झरनों और गहरे समुद्र के उष्णजलीय निकासों में पाए जाते हैं। वे उच्च तापमान में जीवित रहने में सक्षम हैं क्योंकि उनके शरीर ऐसी पर्यावरणीय परिस्थितियों के लिए अनुकूलित हैं। इन जीवों में विशेष ताप-प्रतिरोधक एंजाइम होते हैं, जो उपापचयी क्रियाओं को पूरा करते हैं जिसके कारण वे उच्च तापमान पर भी नष्ट नहीं होते।

प्रश्न 5 उन गुणों को बताइए जो व्यष्टियों में तो नहीं पर समष्टियों में होते हैं।

उत्तर- समष्टि (population) में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो व्यष्टि (individual) में नहीं पाए जाते। जैसे व्यष्टि जन्म लेता है, इसकी मृत्यु होती है, लेकिन समष्टि की जन्मदर (natality) और मृत्युदर (mortality) होती है। समष्टि में इन दरों को क्रमशः प्रति व्यष्टि जन्मदर और मृत्युदर कहते हैं। जन्म और मृत्युदर को समष्टि के सदस्यों के सम्बन्धों में संख्या में वृद्धि का ह्रास (increase or decrease) के रूप में प्रकट किया जाता है। जैसे- किसी तालाब में गत वर्ष जल लिली के 20 पौधे थे और इस वर्ष जनन द्वारा 8 नए पौधे और बन जाते हैं तो वर्तमान में समष्टि 28 हो जाती है तो हम जनन दर की गणना 820 = 0.4 संतति प्रति जल लिली की दर से करते हैं। अगर प्रयोगशाला समष्टि में 50 फल मक्खियों में से 5 व्यष्टि किसी विशेष अन्तराल (जैसे-एक सप्ताह) में नष्ट हो जाती हैं तो इस अन्तराल में समष्टि में मृत्युदर 550 = 0.1 व्यष्टि प्रति फलमक्खी प्रति सप्ताह कहलाएगी। समष्टि की दूसरी विशेषता लिंग अनुपात अर्थात् नर एवं मादा का अनुपात है। सामान्यतया समष्टि में यह अनुपात 50 : 50 होता है, लेकिन इसमें भिन्नता भी हो सकती है जैसे- समष्टि में 60 प्रतिशत मादा और 40 प्रतिशत नर हैं। निर्धारित समय में समष्टि भिन्न आयु वाले व्यष्टियों से मिलकर बनती है। यदि समष्टि के सदस्यों की आयु वितरण को आलेखित (plotted) किया जाए तो इससे बनने वाली संरचना आयु पिरैमिड (age pyramid) कहलाती है। पिरेमिड का आकार समष्टि की स्थिति को प्रतिबिम्बित करता है-

  • क्या यह बढ़ रहा है।
  • स्थिर है।
  • घट रहा है।
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समष्टि का आकार आवास में उसकी स्थिति को स्पष्ट करता है। यह सजातीय, अन्तर्जातीय प्रतिस्पर्धा, पीड़कनाशी, वातावरणीय कारकों आदि से प्रभावित होता है। इसे तकनीकी भाषा में समष्टि घनत्व से स्पष्ट करते हैं। समष्टि घनत्व का आकलन विभिन्न प्रकार से किया जाता है। किसी जाति के लिए समष्टि घनत्व (आकार) निश्चित नहीं होता। यह समय-समय पर बदलता रहता है। इसका कारण भोजन की मात्रा, परिस्थितियों में अन्तर, परभक्षण आदि होते हैं। समष्टि की वृद्धि चार कारकों पर निर्भर करती है जिनमें जन्मदर (natality) और आप्रवासन (immigration) समष्टि में वृद्धि करते हैं, जबकि मृत्युदर (death rate-mortality) तथा उत्प्रावसन (emigration) इसे घटाते हैं। यदि आरम्भिक समष्टि No है, Nt एक समय अन्तराल है तथा । बाद की समष्टि है तो-

Nt = No + (B + I) – (D + E)

Nt = No + B + 1 – D – E

समीकरण से स्पष्ट है कि यदि जन्म लेने वाले ‘B’ संख्या + अप्रवासी ‘1’ की संख्या (B + I) मरने वालों की संख्या ‘D’ + उत्प्रवासी ‘E’ की संख्या से अधिक है तो समष्टि घनत्व बढ़ जाएगा अन्यथा घट जाएगा।

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प्रश्न 6 अगर चरघातांकी रूप से (एक्स्पोनेन्शियली) बढ़ रही समष्टि 3 वर्ष में दोगुने साइज की हो जाती है तो समष्टि की वृद्धि की इन्ट्रिन्जिक दर (r) क्या है?

उत्तर- एक समष्टि चरघतांकी रूप से (एक्पोनेन्शियली) बढ़ती है, यदि पर्याप्त मात्रा में खाद्य संसाधन व्यक्ति के लिए उपलब्ध हैं। चारघतांकी वृद्धि समीकरण के समाकलित रूप द्वारा चरघतांकी वृद्धि की गणना की जा सकती है:

Nt = Noert

जहाँ,

Nt = समय t में समष्टि घनत्व

No = समय शून्य में समष्टि घनत्व

r = प्राकृतिक वृद्धि की इंट्रीनिजक दर

e = प्राकृतिक लघुगणकों का आधार (2.71828)

दिए गए समीकरण द्वारा समष्टि की वृद्धि की इंट्रीनिजक दर (r) की गणना की जा सकती है।

अब प्रश्न के अनुसार,

उपस्थित समष्टि घनत्व = x

दो वर्ष पश्चात् समष्टि घनत्व = 2x

t = 3 वर्ष

इन मानों को समीकरण में रखने पर,

⇒ 2x = xe3r

⇒ 2 = e3r

दोनों तरफ log रखने पर,

⇒ log 2 = 3r log e

इस प्रकार, उपरोक्त सचित्र समष्टि की वृद्धि की इंट्रीनिजक दर (r) 0.2311 है।

प्रश्न 7 पादपों में शाकाहारिता (हार्बिवोरी) के विरुद्ध रक्षा करने की महत्त्वपूर्ण विधियाँ बताइए।

उत्तर-

  • पत्ती की सतह पर मोटी क्यूटिकल का निर्माण।
  • पत्ती पर काँटों का निर्माण, जैसे- नागफनी।
  • काँटों के रूप में पत्तियों का रूपान्तरण, जैसे-डुरेन्टा।
  • पत्तियों पर कॅटीले किनारों का निर्माण।
  • पत्तियों में तेज सिलिकेटेड किनारों का विकास।

बहुत से पादप ऐसे रसायन उत्पन्न और भण्डारित करते हैं, जो खाए जाने पर शाकाहारियों को बीमार कर देते हैं। उनकी पाचन का संदमन करते हैं। उनके जनन को भंग कर देते हैं। यहाँ तक कि मार देते हैं, जैसे-कैलोट्रोपिस अत्यधिक विषैला पदार्थ ग्लाइकोसाइड उत्पन्न करता है।

प्रश्न 8 ऑर्किड पौधा, आम के पेड़ की शाखा पर उग रहा है। ऑर्किड और आम के पेड़ के बीच पारस्परिक क्रिया का वर्णन आप कैसे करेंगे?

उत्तर- आम की शाखा पर उगने वाला एक ऑर्किड का पौधा अधिपादप होता है। अधिपादप वे पौधे होते हैं, जो किसी अन्य पौधे पर वृद्धि करते हैं लेकिन उनसे पोषण प्राप्त नहीं करते। इसलिए, आम के पेड़ और एक ऑर्किड के पौधे के बीच की पारस्परिक क्रिया सहभोजिता का एक उदाहरण है, जहाँ एक जाति को लाभ होता है, जबकि दूसरा इससे अप्रभावित रहता है। यहां, ऑर्किड के पौधे को लाभ होता है क्योंकि इसे आम के पेड़ का सहारा मिलता है, जबकि आम का पेड़ को कोई लाभ नहीं होता।

प्रश्न 9 कीट पीड़कों (पेस्ट/ इंसेक्ट) के प्रबन्ध के लिए जैव-नियन्त्रण विधि के पीछे क्या पारिस्थितिक सिद्धान्त है?

उत्तर- कृषि पीड़कनाशी के नियन्त्रण में अपनाई गई जैव नियन्त्रण विधियाँ परभक्षी की समष्टि नियमन की योग्यता पर आधारित हैं। परभक्षी, स्पर्धा शिकार जातियों के बीच स्पर्धा की तीव्रता कम करके किसी समुदाय में जातियों की विविधता बनाए रखने में भी सहायता करता है। परभक्षी पीड़कों का शिकार करके उनकी संख्या को उनके वास स्थान में नियन्त्रित रखते हैं। गेम्बूसिया मछली मच्छरों के लार्वा को खाती है और इस प्रकार कीटों की संख्या को नियन्त्रित रखती है।

प्रश्न 10 निम्नलिखित के बीच अन्तर कीजिए-

  1. शीत निष्क्रियता और ग्रीष्म निष्क्रियता (हाइबर्नेशन एवं एस्टीवेशन)।
  2. बाह्योष्मी और आंतरोष्मी (एक्टोथर्मिक एंड एडोथर्मिक)-

उत्तर-

  1. शीत निष्क्रियता और ग्रीष्म निष्क्रियता (हाइबर्नेशन एंड एस्टीवेशन)-
 शीत निष्क्रियताग्रीष्म निष्क्रियता
1.शीत निष्क्रियता, ठंड सर्द परिस्थिति से बचने के लिए कुछ जीवों में कम गतिविधि की एक अवस्था है।ग्रीष्म निष्क्रियता, ग्रीष्म ऋतु से संबंधित ताप तथा जलशुष्कन जैसी समस्याओं से बचने के लिए कुछ जीवों में कम गतिविधि की एक अवस्था है।
2.ठंडे क्षेत्रों में रहने वाले भालू और गिलहरी ऐसे जानवरों के उदाहरण हैं, जो शीतऋतु के दौरान शीत निष्क्रियता में रहते हैं।मछलियाँ और घोंघे ग्रीष्मकाल के दौरान ग्रीष्म निष्क्रिय जीवों के उदाहरण हैं।
बाह्योष्मी और आंतरोष्मी (एक्टोथर्मिक एंड एडोथर्मिक)- बाह्योष्मीआंतरोष्मी1.बाह्योष्मी ठंडे रक्त वाले जानवर होते हैं।आंतरोष्मी गर्म रक्त वाले जानवर होते हैं।2.उनका तापमान उनके परिवेश के साथ बदलता रहता है।वे शरीर का तापमान स्थिर बनाए रखते हैं।3.मछली, उभयचर, और सरीसृप बाह्योष्मी जानवर हैं।पक्षी और स्तनधारी आंतरोष्मी जानवर हैं।

प्रश्न 11  निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए:

  1. मरुस्थलीय पादपों और प्राणियों का अनुकूलन।
  2. जल की कमी के प्रति पादपों का अनुकूलन।
  3. प्राणियों में व्यावहारिक (बिहेवियोरल) अनुकूलन।
  4. पादपों के लिए प्रकाश का महत्त्व।
  5. तापमान और पानी की कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन।

उत्तर-

  1. मरुस्थलीय पादपों के अनुकूलन इस प्रकार हैं-
  • इनकी जड़ें बहुत लम्बी, शाखित, मोटी एवं मिट्टी के नीचे अधिक गहराई तक जाती हैं।
  • इनके तने जल-संचय करने के लिए मांसल और मोटे होते हैं।
  • रन्ध्र स्टोमैटल गुहा में धंसे रहते हैं।
  • पत्तियाँ छोटी, शल्कपत्र या काँटों के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं।
  • तना क्यूटिकिल युक्त तथा घने रोम से भरा होता है।

मरुस्थलीय प्राणियों के अनुकूलन इस प्रकार हैं-

  • मरुस्थल के छोटे जीव, जैसे- चूहा, साँप, केकड़ा दिन के समय बालू में बनाई गई सुरंग में रहते हैं तथा रात को बिल से बाहर निकलते हैं।
  • कुछ मरुस्थलीय जन्तु अपने शरीर के मेटाबोलिज्म से उत्पन्न जल का उपयोग करते हैं। उत्तरी अमेरिका के मरुस्थल में पाया जाने वाला कंगारू चूहा जल की आवश्यकता की पूर्ति अपनी आन्तरिक वसा के ऑक्सीकरण से करता है।
  • जन्तु प्रायः सूखे मल का त्याग करता है।
  • फ्रीनोसोमा तथा मेलोच होरिडस में काँटेदार त्वचा पाई जाती है।
  1. जल की कमी के प्रति पादपों का अनुकूलन: मरुस्थल में पाए जाने वाले पौधे जल की कमी और तेज गर्मी जैसे कठोर मरुस्थलीय परिस्थिति से निपटने के लिए अनुकूलित होते हैं। इन पौधों की पत्तियों की सतह पर मोटी उपत्वचा होती है और उनके रन्ध्र गहरे गर्त में व्यवस्थित होते हैं, ताकि वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की न्यूनतम हानि न हो। उनके प्रकाश संश्लेषी मार्ग भी विशेष प्रकार के होते हैं जिसके कारण वे अपने रन्ध्र दिन के समय बंद रख सकते हैं। कुछ मरुस्थली पादपों जैसे नागफनी, कैक्टस आदि में पत्तियाँ नहीं होती बल्कि वे कांटे में रूपांतरित हो जाती हैं और प्रकाश संश्लेषण का प्रकार्य चपटे तनों द्वारा होता है।
  2. प्राणियों में व्यावहारिक (बिहेवियोरल) अनुकूलन: कुछ जीव तापमान में होने वाले परिवर्तन से प्रभावित होते हैं। इन जीवों में अनुकूलन, जैसे कि शीत निष्क्रियता, ग्रीष्म निष्क्रियता, प्रवासीकरण आदि होते हैं, ताकि वे अपने प्राकृतिक आवास के अनुरूप पर्यावरणीय तनाव से बच सकें। एक जीव के व्यवहार में इस अनुकूलन को व्यावहारिक अनुकूलन कहा जाता है। उदाहरण के लिए बाह्योष्मी और आंतरोष्मी जानवरों में व्यावहारिक अनुकूलन का प्रदर्शन करते हैं। बाह्योष्मी ठंडे रक्त वाले प्राणी होते हैं, जैसे- मछली, उभयचर, सरीसृप आदि। उनका तापमान उनके परिवेश के साथ बदलता रहता है। उदाहरण के लिए, जब मरुस्थलीय छिपकली का तापमान सुविधा स्तर से नीचे चला जाता है तब वे धूप सेंककर ऊष्मा अवशोषित करती हैं। लेकिन परिवेश का तापमान बढ़ने लगता है तब वे छाया में चली जाती हैं। अन्य मरुस्थलीय प्राणियों में भूमि से ऊपर की ऊष्मा से बचने के लिए मिट्टी में बिल खोदने की क्षमता होती है। कुछ आंतरोष्मी (गर्म रक्त वाले प्राणी) जैसे कि पक्षी और स्तनपायी ठंड में शीत निष्क्रियता तथा गर्मी में ग्रीष्म निष्क्रियता द्वारा गर्म तथा ठंडी परिस्थिति से बचते हैं। वे तापमान में परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं को आश्रयों में छिपाते हैं जैसे- गुफा, बिल आदि।
  3. पादपों के लिए प्रकाश का महत्त्व: सूर्य के प्रकाश पौधों के लिए ऊर्जा के अंतिम स्रोत के रूप में कार्य करता है। पौधे स्वपोषी जीव होते हैं, जिन्हें प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है। पौधों में उत्पन्न होने वाले दीप्तिकालिक अनुक्रियाओं उत्पत्ति में प्रकाश भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पौधे पुष्पन हेतु अपनी दीप्तिकालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मौसमी विभिन्नताओं के दौरान प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन के प्रति अनुक्रिया करते हैं। समुद्री पादपों के ऊर्ध्वाधर वितरण के लिए जलीय आवासों में भी प्रकाश महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  4. तापमान और पानी की कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन: तापमान सबसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक कारक है। पृथ्वी पर औसत तापमान एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होता है। तापमान में यह परिवर्तन पृथ्वी पर प्राणियों के वितरण को प्रभावित करते हैं। कुछ जीव तापमानों के व्यापक परास (चरम) सहन कर सकते हैं और उसमें खूब बढ़ते हैं, ये पृथुताजापी कहलाते हैं। लेकिन उनमें से अधिकांश तापमानों की कम परास में ही रहते हैं ऐसे जीव तनुतापी कहलाते हैं। प्राणी अपने प्राकृतिक आवास के अनुरूप अनुकूलन करते हैं। उदाहरण के लिए, ठंडे क्षेत्रों में पाए जाने वाले प्राणियों के कान और पाद छोटे होते हैं ताकि ऊष्मा की हानि न्यूनतम हो। इसके अलावा, ध्रुवीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले प्राणियों में उनकी त्वचा के नीचे वसा की मोटी परत होती है जो ऊष्मारोधी का काम करती है और शरीर की ऊष्मा हानि को कम करती है। कुछ जीव अपने प्राकृतिक आवास के अनुरूप विभिन्न व्यावहारिक परिवर्तन प्रदर्शित करते हैं। पर्यावरणीय दबाव से बचने के लिए प्राणियों के व्यवहार में उपस्थित इस अनुकूलन को व्यावहारिक अनुकूलन कहा जाता है। उदाहरण के लिए, मरुस्थलीय छिपकली आंतरोष्मी होते हैं। इसका अर्थ है कि उनमें उच्च तापमान से निबटने के लिए तापमान नियामक तंत्र नहीं होता है, इसलिए जब उनका तापमान सुविधा स्तर से नीचे चला जाता है तब वे धूप सेंककर ऊष्मा अवशोषित करती हैं। लेकिन परिवेश का तापमान बढ़ने लगता है तब वे छाया में चली जाती हैं।

प्रश्न 12 अजैवीय (abiotic) पर्यावरणीय कारकों की सूची बनाइए।

उत्तर- अजैवीय पर्यावरणीय कारक (Abiotic Environmental Factors)- विभिन्न अजैवीय कारकों को निम्नलिखित तीन समूहों में बाँट सकते हैं-

  1. जलवायवीय कारक (Climatic factors)- प्रकाश, ताप, वायुगति, वर्षा, वायुमण्डलीय नमी तथा वायुमण्डलीय गैसें।
  2. मृदीय कारक (Edaphic factors)- खनिज पदार्थ, कार्बनिक पदार्थ, मृदा जल तथा मृदा वायु।
  3. स्थलाकृतिक कारक (Topographic factors)- स्थान की ऊँचाई, भूमि का ढाल, पर्वत की दिशा आदि।

प्रश्न 13 

निम्नलिखित का उदाहरण दीजिए-

  1. आतपोद्भिद् (हेलियोफाइट)
  2. छायोद्भिद् (स्कियोफाइट)
  3. सजीवप्रजक (विविपेरस)अंकुरण वाले पादप
  4. आंतरोष्मी (एंडोथर्मिक) प्राणी
  5. बाह्योष्मी (एक्टोथर्मिक) प्राणी
  6. नितलस्थ (बेंथिक) जोन का जीव।

उत्तर-

  1. आतपोद्भिद् (Heliophytes)-उदाहरण-सूरजमुखी, एमेरेन्थस।
  2. छायोद्भिद् (Sciophytes)-उदाहरण-पाइसिया, ऐबीज, टेक्सस।
  3. सजीवप्रजक (Viviparous)-उदाहरण-राइजोफोरा, सेलकोर्निया, सोनेरेशिया आदि ।
  4. आंतरोष्मी (Endothermic) प्राणी-उदाहरण-भुंग, सरीसृप।
  5. बाह्योष्मी (Ectothermic) प्राणी-उदाहरण-ऊँट, कुत्ता, बिल्ली।
  6. नितलस्थ (Benthos)-उदाहरण-केकड़ा, भृग, ऐम्फिनोड, सीप, कोरल आदि।

प्रश्न 14 समष्टि (पॉपुलेशन) और समुदाय (कम्युनिटी) की परिभाषा दीजिए।

उत्तर- समष्टि (Population)- किसी खास समय और क्षेत्र में एक ही प्रकार की स्पीशीज के व्यष्टियों या जीवों की कुल संख्या को समष्टि कहते हैं।

समुदाय (Community)- किसी विशिष्ट आवास-स्थान की जीव-समष्टियों का स्थानीय संघ समुदाय कहलाता है।

प्रश्न 15 निम्नलिखित की परिभाषा दीजिए और प्रत्येक का एक-एक उदाहरण भी दीजिए-

  1. सहभोजिता (कमेंसेलिज्म)।
  2. परजीविता (पैरासिटिज्म)।
  3. छद्मावरण (कैमुफ्लॉज)।
  4. सहोपकारिता (म्युचुऑलिज्म)।
  5. अंतरजातीय स्पर्धा (इंटरस्पेसिफिक कम्पीटीशन)।

उत्तर-

  1. सहभोजिता (कमेंसेलिज्म)- यह ऐसी पारस्परिक क्रिया है जिसमें एक जाति को लाभ होता है, और दूसरी को न हानि न लाभ होता है। आम की शाखा पर अधिपादप के रूप में उगने वाला ऑर्किड और व्हेल की पीठ पर बैठने वाला बार्नेकल सहभोजिता (कमेंसेलिज्म) का उदाहरण है।
  2. परजीविता (पैरासिटिज्म)- यह दो जातियों के बीच की पारस्परिक क्रिया है, जिसमें एक जाति (प्रायः छोटे) सकारात्मक रूप से प्रभावित होती है, जबकि दूसरी जाति (प्रायः बड़े) नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। इसका एक उदाहरण मानव यकृत पर्णाभ है। मानव यकृत पर्णाभ एक परजीवी है जो परपोषी के शरीर में यकृत में रहता है और उससे पोषण प्राप्त करता है। इस प्रकार, परजीवी को लाभ होता है क्योंकि यह परपोषी से पोषण प्राप्त करता है। जबकि परपोषी नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है क्योंकि परजीवी परपोषी के तंदुरूस्ती को कम कर देता है, जिससे शरीर कमजोर हो जाता है।
  3. छद्मावरण (कैमुफ्लॉज)- यह परभक्षियों से बचने के लिए शिकार द्वारा अपनाई गई एक रक्षाविधि है। कुछ जीव गुप्त रूप से रंगीन होते हैं ताकि वे आसानी से अपने परिवेश में मिलकर परभक्षियों से बच सकें। कीटों तथा मेढ़कों की कुछ जातियाँ छद्मावरण में रहते हैं और परभक्षियों से अपना बचाव करते हैं।
  4. सहोपकारिता (म्युचुऑलिज्म)- इस पारस्परिक क्रिया से परस्पर क्रिया करने वाली दोनों जातियों को लाभ होता है। उदाहरण के लिए, कवक और प्रकाशसंश्लेषी शैवाल या सायनोबैक्टीरिया के बीच घनिष्ठ सहोपकारी संबंध का उदाहरण लाइकेन में देखा जा सकता है।
  5. अंतरजातीय स्पर्धा (इंटरस्पेसिफिक कम्पीटीशन)- अंतरजातीय स्पर्धा दो भिन्न जातियों की समष्टियों की पारस्परिक क्रिया से उत्पन्न होती हैं। वे क्रियाएँ दोनों जातियों के लिए हानिकारक होती हैं। उदाहरण के लिए, साझा आहार के लिए दक्षिण अमेरिकी झीलों में फ्लेमिंगो और आवासी मछलियों के बीच प्राणिपल्वक के लिए स्पर्धा।

प्रश्न 16 उपयुक्त आरेख की सहायता से लॉजिस्टिक (सम्भार तन्त्र) समष्टि वृद्धि का वर्णन कीजिए।

उत्तर- प्रकृति में किसी भी समष्टि के पास इतने असीमित साधन नहीं होते कि चरघातांकी वृद्धि होती रहे। इसी कारण सीमित संसाधनों के लिए व्यष्टियों में प्रतिस्पर्धा होती है। आखिर में योग्यतम् व्यष्टि जीवित बना रहेगा और जनन करेगा। प्रकृति में दिए गए आवास के पास अधिकतम सम्भव संख्या के पालन-पोषण के लिए पर्याप्त संसाधन होते हैं, इससे आगे और वृद्धि सम्भव नहीं है। उस आवास में उस जाति के लिए इस सीमा को प्रकृति की पोषण क्षमता (K) मान लेते हैं।

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किसी आवास में सीमित संसाधनों के साथ वृद्धि कर रही समष्टि आरम्भ में पश्चता प्रावस्था (लैग फेस) दर्शाती है। उसके बाद त्वरण और मंदन और अन्ततः अनन्तस्पर्शी प्रावस्थाएँ आती हैं। समष्टि घनत्व पोषण क्षमता प्रकार की समष्टि वृद्धि विर्हस्ट-पर्ल लॉजिस्टिक वृद्धि कहलाता है। इसे निम्न समीकरण के द्वारा निरूपित किया जाता है-

dN/dt=r/N=(K- N)/K

जहाँ, N = समय t में समष्टि घनत्व,

r = प्राकृतिक वृद्धि की दर,

K = पोषण क्षमता।

प्रश्न 17 निम्नलिखित कथनों में परजीविता को कौन-सा कथन सबसे अच्छी तरह स्पष्ट करता है?

  1. एक जीव को लाभ होता है।
  2. दोनों जीवों को लाभ होता है।
  3. एक जीव को लाभ होता है, दूसरा प्रभावित नहीं होता है।
  4. एक जीव को लाभ होता है, दूसरा प्रभावित होता है।

उत्तर- (d). एक जीव को लाभ होता है, दूसरा प्रभावित होता है।

यह दो जातियों के बीच की पारस्परिक क्रिया है, जिसमें एक जाति (प्रायः छोटे) सकारात्मक रूप से प्रभावित होती है, जबकि दूसरी जाति (प्रायः बड़े) नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। इसका एक उदाहरण मानव यकृत पर्णाभ है। मानव यकृत पर्णाभ एक परजीवी है जो परपोषी के शरीर में यकृत में रहता है और उससे पोषण प्राप्त करता है। इस प्रकार, परजीवी को लाभ होता है क्योंकि यह परपोषी से पोषण प्राप्त करता है। जबकि परपोषी नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है क्योंकि परजीवी परपोषी के तंदुरूस्ती को कम कर देता है, जिससे शरीर कमजोर हो जाता है। 

प्रश्न 18 समष्टि की कोई तीन महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ बताइए और व्याख्या कीजिए।

उत्तर- 

समष्टि की तीन महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. समष्टि आकार और समष्टि घनत्व (population size and population density),
  2. जन्मदर (birth rate),
  3. मृत्युदर (mortality rate)।

व्याख्या-

  1. समष्टि आकार और समष्टि घनत्व- किसी जाति के लिए समष्टि का आकार स्थैतिक प्रायता नहीं है। यह समय-समय पर बदलता रहता है जो विभिन्न कारकों, जैसे- आहार उपलब्धती, परभक्षण दाब और मौसमी परिस्थितियों पर निर्भर करता है। समष्टि घनत्व बढ़ रहा है। अथवा घट रहा है कारण कुछ भी हो, परन्तु दी गई अवधि के दौरान दिए गए आवास में समष्टि का घनत्व चार मूलभूत प्रक्रमों में घटता-बढ़ता है। इन चारों में से दो (जन्मदर और आप्रवासन) समष्टि घनत्व को बढ़ाते हैं और दो (मृत्युदर और उत्प्रवासन) इसे घटाते हैं। अगर समय t में समष्टि घनत्व N है तो समय t + 1 में इसका घनत्व Nt + 1 = Nt + (B + I) – (D + E) होगा। उपरोक्त समीकरण में आप देख सकते हैं कि यदि जन्म लेने वालों की संख्या + आप्रवासियों की संख्या (B + I) मरने वालों की संख्या + उत्प्रवासियों की संख्या (D + E) से अधिक है तो समष्टि घनत्व बढ़ जाएगा, अन्यथा यह घट जाएगा।
  2. जन्मदर- यह साधारणत: प्रतिवर्ष प्रति समष्टि के 1000 व्यक्ति प्रति जन्म की संख्या द्वारा व्यक्त की जाती है। जन्मदर समष्टि आकार तथा समष्टि घनत्व को बढ़ाता है।

जन्मदर= एक वर्ष में जीवित जन्म की कुल संख्या /वर्ष के मध्य में कुल समष्टि×1000

  1. मृत्युदर- यह जन्मदर के विपरीत है। यह साधारणतः प्रतिवर्ष प्रति समष्टि के 1000 व्यक्ति प्रति मृत्यु की संख्या द्वारा व्यक्त की जाती है।

मृत्युदर= एक वर्ष में जीवित मृत्यु की कुल संख्या / वर्ष के मध्य में कुल समष्टि×1000

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