Class 12 Biology Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग Question Answer in Hindi

Class 12 Biology Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग Question Answer in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 12: जैव प्रौद्योगिकी और इसके अनुप्रयोग के लिए हिंदी में विस्तृत प्रश्न-उत्तर चर्चा का अन्वेषण करें। अपने संदेहों को स्पष्ट करें और अपनी समझ को बढ़ाएं।

Class 12 Biology Chapter 12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग Question Answer in Hindi

अभ्यास (पृष्ठ संख्या 236-237)

प्रश्न 1 बीटी (Bt) आविष के रवे कुछ जीवाणुओं द्वारा बनाये जाते हैं, लेकिन जीवाणु स्वयं को नहीं मारते हैं, क्योंकि–

  1. जीवाणु आविष के प्रति प्रतिरोधी हैं।
  2. आविष अपरिपक्व है।
  3. आविष निष्क्रिय होता है।
  4. आविष जीवाणु की विशेष थैली में मिलता है।

उत्तर- (c). आविष निष्क्रिय होता है।

प्रश्न 2 पारजीनी जीवाणु क्या है? किसी एक उदाहरण द्वारा सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर- जब किसी इच्छित लक्षण वाली जीन (gene) को जीवाणु के जीनोम में प्रविष्ट कराकर कोई उत्पादन प्राप्त किया जाता है तो विदेशी जीन युक्त जीवाणु को पारजीनी जीवाणु (transgenic bacteria) कहते हैं।

उदाहरण– मानव इन्सुलिन आनुवंशिक प्रौद्योगिकी के द्वारा तैयार किया गया है। इन्सुलिन दो छोटी पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाओं का बना होता है, श्रृंखला ‘ए’ व श्रृंखला ‘बी’ जो आपस में डाइसल्फाइड बन्धों द्वारा जुड़ी होती हैं। मानव इन्सुलिन में प्राक् हॉर्मोन संश्लेषित होता है जिसमें पेप्टाइड-सी’ होता है। यह पेप्टाइड ‘सी’ परिपक्व इन्सुलिन में नहीं पाया जाता, यह परिपक्वता के समय इन्सुलिन से पृथक् हो जाता है। सन् 1983 में मानव इन्सुलिन की श्रृंखला ‘ए’ और ‘बी’ के अनुरूप दो डीएनए अनुक्रमों को तैयार किया गया जिसे ई कोलाई के प्लाज्मिड (plasmid) में प्रवेश कराकर इन्सुलिन श्रृंखलाओं का उत्पादन किया गया। इन अलग-अलग निर्मित श्रृंखलाओं ‘ए’ और ‘बी’ को निकालकर डाइसल्फाइड बन्ध (disulphide bonds) द्वारा आपस में संयोजित कर मानव इन्सुलिन को तैयार किया गया। इन्सुलिन डायबिटीज को नियन्त्रित करने के लिए एक उपयोगी औषधि है। इन्सुलिन के जीन की क्लोनिंग करने का श्रेय भारतीय मूल के डॉ शरण नारंग (Dr. Saran Narang) को जाता है। इन्होंने अपना प्रयोग कनाडा के ओटावा (Ottava) में किया था।

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प्रश्न 3 आनुवंशिक रूपांतरित फसलों के उत्पादन के लाभ व हानि का तुलनात्मक विभेद कीजिए।

उत्तर- आनुवांशिक रूपांतरित फसलों के उत्पादन के निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. अजैव प्रतिबलों (ठंडा, सूखा, लवण, ताप) के प्रति अधिक सहिष्णु फसलों का निर्माण।
  2. रासायनिक पीड़कनाशकों पर कम निर्भरता कम करना।
  3. कटाई पश्चात् होने वाले (अन्नादि) नुकसानों को कम करने में सहायक।
  4. पौधों द्वारा खनिज उपयोग क्षमता में वृद्धि (यह शीघ्र मृदा उर्वरता समापन को रोकता है)।
  5. खाद्य पदार्थों के पोषणिक स्तर में वृद्धि, उदाहरणार्थ- विटामिन A समृद्ध धान।

आनुवांशिक रूपांतरित फसलों के उत्पादन के निम्नलिखित हानि हैं:

  1. अपतृणनाशी जीन पौधों में प्रविष्ट कराये जाते हैं, इनसे फसली पौधों में से कोई भी स्वयं सुपर अपतृण बन सकती है।
  2. आनुवंशिक रूपांतरित फसलें लोगों में एलर्जी उत्पन्न कर सकती हैं।
  3. आनुवंशिक रूपांतरित फसलें बहुत महँगी पड़ती हैं।
  4. ऐसी फसलें काटने की प्रक्रिया में बहुत-से पौधों के अवशेष भूमि में छोड़ दिये जाते हैं, जो जैविक वायुमण्डल को नुकसान पहुंचाते हैं।
  5. इस विधि द्वारा उत्पादित कुछ फसलों में बीज पैदा करने की क्षमता का क्षय हो सकता है।

प्रश्न 4 क्राई प्रोटीन्स क्या हैं? उस जीव का नाम बताइए जो इसे पैदा करता है। मनुष्य इस प्रोटीन को अपने फायदे के लिए कैसे उपयोग में लाता है?

उत्तर- क्राई प्रोटीन एक विषाक्त प्रोटीन है जो cry gene द्वारा कोड की जाती है। क्राई प्रोटीन्स कई प्रकार के होते हैं, जैसे- जो प्रोटीन्स जीन क्राई 1 ऐसीवे क्राई 2 एबी द्वारा कूटबद्ध होते हैं, वे कपास के मुकुल कृमि को नियन्त्रित करते हैं, जबकि क्राई 1 एबी मक्का छेदक को नियन्त्रित करता है। क्राई प्रोटीन बेसिलस थुरिनजिएंसिस (Bt) द्वारा बनता है। इसके निर्माण को नियन्त्रित करने वाले जीन को क्राई जीन कहते हैं, जैसे—क्राई 1 एवी, क्राई 1 एसी, क्राई 11 एवी। यह जीवाणु प्रोटीन को एन्डोटॉक्सिन के रूप में प्रोटॉक्सिन क्रिस्टलीय अवस्था में उत्पन्न करता है। दो क्राई (cry) जीन कॉटन (Bt कॉटन) में डाले जाते हैं, जबकि एक कॉर्न (Bt कॉर्न) में डाला जाता है। जिसके परिणामस्वरूप Bt कॉटन बॉलवार्म के लिए प्रतिरोधक बन जाता है, जबकि Bt कॉर्न प्रतिरोधकता-कॉर्नबोर के लिये विकसित करता है।

प्रश्न 5 जीन चिकित्सा क्या है? एडीनोसीन डिएमीनेज (ADA) की कमी का उदाहरण देते हुए इसका सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर- जीन चिकित्सा में उन विधियों का सहयोग लेते हैं जिनके द्वारा किसी बच्चे या भ्रूण में चिन्हित किए गए जीन दोषों का सुधार किया जाता है। जीन चिकित्सा का सबसे पहले प्रयोग एडीनोसीन डिएमीनेज (एडीए) की कमी को दूर करने के लि ओये किया गया था। यह एंजाइम प्रतिरक्षातंत्र कार्य के लिए अति आवश्यक होता है। एडीनोसीन डिएमीनेज (एडीए) की कमी का उपचार अस्थिमज्जा के प्रत्यारोपण से होता है। इस चिकित्सा में सर्वप्रथम रोगी के रक्त से लसिकाणु को निकालकर शरीर से बाहर संवर्धन किया जाता है। सक्रिय एडीए का सी डीएनए लसीकाणु में प्रवेश कराकर अंत में रोगी के शरीर में वापस कर दिया जाता है। यदि मज्जा कोशिकाओं से विलगित अच्छे जीनों को प्रारंभिक भ्रूणीय अवस्था की कोशिकाओं से उत्पादित एडीए में प्रवेश करा दिए जाएँ तो यह एक स्थायी उपचार हो सकता है।

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प्रश्न 6 ई कोलाई जैसे जीवाणु में मानव जीन की क्लोनिंग एवं अभिव्यक्ति के प्रायोगिक चरणों का आरेखीय निरूपण प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर- पुनर्योगज डीएनए तकनीक DNA में किसी प्रकार के हेर-फेर या एक जीव के DNA में दूसरे जीव के DNA को जोड़ना, DNA पुनर्योगज (DNA recombination) कहलाता है। इस तकनीक को आनुवंशिक इंजीनियरिंग या DNA इंजीनियरिंग भी कहते हैं। इस तकनीक द्वारा DNA खण्डों के नए क्रम तैयार किए जाते हैं। प्रकृति में यह कार्य गुणसूत्रों में विनिमय (crossing over) प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होता है। DNA पुनर्योगज तकनीक द्वारा उच्च जन्तु और पौधों के DNA के इच्छित भागों की अनेकों प्रतिकृतियाँ (copies) तैयार की जाती हैं। इस प्रक्रिया को प्रायः जीवाणुओं में सम्पन्न कराया जाता है।

पुनर्योगज DNA प्राप्त करने के लिए निम्न तीन विधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं-

DNA की दो शृंखलाओं के अन्तिम छोर पर नई DNA श्रृंखलाएँ जोड़कर (By joining new DNA chains at the end point of two chains of DNA) यदि DNA के सिरे पर कुछ क्षारक (जैसे- CCCCC) जोड़ दें तथा दूसरे DNA के सिरे पर इसके संयुग्मी क्षारक (GGGGG) जोड़ दें और फिर इन दोनों प्रकार के DNA को मिलाएँ तो नई श्रृंखला आपस में हाइड्रोजन बन्ध बनाकर दो भिन्न DNA अणुओं को संयुक्त कर देगी। इस कार्य के लिए विशेष एन्जाइम टर्मिनल ट्रान्सफरेज (terminal transferase) का उपयोग किया जाता है। अनजुड़े स्थानों को डीएनए लाइगेज (DNA ligase) नामक एन्जाइम द्वारा जोड़ देते हैं।

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प्रतिबन्ध एन्जाइम्स की सहायता से (With the help of restriction enzymes)- इस विधि में संयुग्मी क्षारकों के बीच हाइड्रोजन बन्ध बनाकर संकर DNA का निर्माण किया जाता है। इस विधि में एक विशेष एन्जाइम, प्रतिबन्ध एण्डोन्यूक्लिएज टाइप-II एन्जाइम (restriction endonuclease enzyme) का उपयोग किया जाता है। ये एन्जाइम चाकू की तरह कार्य करते हैं तथा DNA श्रृंखला को विशिष्ट स्थानों पर इस प्रकार से काटते हैं कि वांछित जीन्स वाले खण्ड प्राप्त हो सकें। अब तक लगभग 350 प्रकार के प्रतिबन्ध एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम ज्ञात हैं जो DNA अणु में 100 से अधिक अभिज्ञान स्थलों (recognition sites) को पहचानते हैं। पृथक् DNA खण्ड को लाइगेज एन्जाइम द्वारा आवश्यकतानुसार DNA खण्ड से जोड़कर पुनर्योगज DNA अणु के रूप में (संवाहक वेक्टर) किसी पोषद कोशिका में प्रवेश कराकर इसकी असंख्य प्रतियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। जैसे- ई-कोलाई प्लाज्मिड संवाहक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस विधि से दो विभिन्न जीवों; विभिन्न प्रकार के पौधों आदि के मध्य संकरण की सम्भावना बढ़ गई है। इतना ही नहीं, पौधों और जन्तुओं में संकरण की सम्भावना भी बढ़ गई है। संकरित जीन में दोनों ही जीवों के गुण उपस्थित होंगे।

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क्लोनिंग (Cloning)- यह विधि सबसे सरल तथा उपयोगी है। शरीर में प्रत्येक पदार्थ के संश्लेषण के लिए कोई निश्चित जीन उत्तरदायी होता है। यदि इस विशिष्ट जीन को प्लाज्मिड के साथ संकरित करा दिया जाए और इस संकरित DNA को पुनः जीवाणु की कोशिका में स्थापित कर उपयुक्त संवर्धन माध्यम में उगने दिया जाए तो जीवाणु में वह जीन उसी पदार्थ को संश्लेषण करता है जो कि वह मूल शरीर में करता था। इस समस्त प्रक्रम को क्लोनिंग कहते हैं। पोषी जीवाणु के लिए ई-कोलाई का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 7 तेल के रसायनशास्त्र तथा RDNA तकनीक के बारे में आपको जितना भी ज्ञान प्राप्त है, उसके आधार पर बीजों से तेल हाइड्रोकार्बन हटाने की कोई एक विधि सुझाइए।

उत्तर- पुनर्योगज डीएनए प्रौद्योगिकी (आरडीएनए) एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए जीव के आनुवंशिक पदार्थ के परिचालन के लिए किया जाता है।

उदाहरणार्थ- इस तकनीक का प्रयोग आधार बीजों तेल को हटाने के लिए किया जाता है। तेल में ग्लिसरॉल तथा फैटी एसिड होता है। आरडीएनए का उपयोग करते हुए, किसी भी ग्लिसरॉल या फैटी एसिड के संश्लेषण को रोककर तेलरहित बीज प्राप्त कर सकते हैं। यह संश्लेषण के लिए उत्तरदायी विशिष्ट जीन को हटाने के द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 8 इण्टरनेट से पता लगाइए कि गोल्डन राइस (गोल्डन धान) क्या है?

उत्तर- गोल्डन राइस (ओराइजा सैटाइवा) जैव प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पन्न चावल की एक किस्म है। इस किस्म के चावल में बीटा कैरोटीन (प्रो-विटामिन A) पाया जाता है जो कि जैव संश्लेषित है। सन् 2005 में गोल्डन राइस-2 की एक और किस्म तैयार की गई जिसमें 23 गुना अधिक बीटा केरोटीन होता है।

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प्रश्न 9 क्या हमारे रक्त में प्रोटिओजेज तथा न्यूक्लिएजेज हैं?

उत्तर- नहीं, मानव रक्त में एंजाइम, प्रोटीओजेज तथा न्यूक्लीऐजिज नहीं होते। मानव में, रक्त सीरम में विभिन्न प्रकार के प्रोटीओजेज अवरोधक होते हैं, जो प्रोटीओजेज की क्रिया से रक्त प्रोटीन को टूटने से बचाते हैं। एंजाइम, न्यूक्लीऐजिज, हाइड्रोलिसिस के उत्प्रेरक न्युक्लिक एसिड रक्त में अनुपस्थित होते हैं।

प्रश्न 10 इण्टरनेट से पता लगाइए कि मुखीय सक्रिय औषध प्रोटीन को किस प्रकार बनाएँगे? इस कार्य में आने वाली मुख्य समस्याओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर- मुखीय औषध प्रोटीन के निर्माण में ड्यूटेरियम एक्सचेंज मास स्पेक्ट्रोमीटरी (DXMS: Deuterium Exchange Mass Spectrometry) तकनीक का प्रयोग किया जाता है। यह तकनीक प्रोटीन संरचना और उसके प्रकार्यों का अध्ययन करने के लिए एक शक्तिशाली माध्यम है। इस कार्य में आने वाली मुख्य समस्याएँ श्रम और समय की हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया होती है। अत: मुखीय प्रोटीन्स का निर्माण कम ही किया जा रहा है। जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करके जीवाणुओं की सहायता से पुनर्योगज चिकित्सीय औषधि मानव इन्सुलिन (ह्यूमुलिन) प्राप्त की गई है। यह एक औषध प्रोटीन है। निकट भविष्य में मानव इन्सुलिन मधुमेह रोग से पीड़ित लोगों को मुख से दिया जा सकेगा।

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