Class 12 Biology Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्म जीव Notes in Hindi: कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 10: मानव कल्याण में सूक्ष्म जीव के लिए व्यापक हिंदी नोट्स एक्सेस करें। सरलीकृत स्पष्टीकरण और प्रमुख अवधारणाओं को शामिल किया गया।
Class 12 Biology Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्म जीव Notes in Hindi
सूक्ष्मजीव
वे जीव जिन्हें मनुष्य नंगी आंखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी (Microscope) यंत्र की आवश्यकता पड़ती है, उन्हें सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गैनिज्म) कहते हैं। सूक्ष्मजैविकी (microbiology) में सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है।
घरेलू उत्पादों में सूक्ष्मजीव
सूक्ष्मजीव का उपयोग विभिन्न प्रकार के घरेलू उत्पादों के निर्माण में होता है जिसका प्रयोग हम प्रतिदिन करते हैं। इसका अच्छा उदाहरण दूध से दही का बनना, पनीर या चीज तैयार करना, आटा से इडली तथा डोसा बनाना, विभिन्न प्रकार के पेय पदार्थों का निर्माण करना आदि |
दूध से दही का बनना
घरेलू उत्पादों में सूक्ष्मजीव का उपयोग दूध से दही बनाने में किया जाता है। दूध में पाई जाने वाली शर्करा लैक्टोस को कुछ जीवाणु, जैसे लैक्टोबैसिलस या लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया किण्वन (fermentation) प्रक्रिया द्वारा लैक्टिक अम्ल में बदल देते हैं। इससे दूध खट्टा हो जाता है। लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया दूध में पाए जाने वाले केसीन (casein) नामक प्रोटीन की छोटी-छोटी बूंदों को एकत्रित करके दही जमाने में सहायक होते हैं।
इस के लिए ताजा दूध में दही की थोड़ी मात्रा आरंभ में मिलानी पड़ती है जिससे लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया ताजे दूध को उपलब्ध हो सके। ये जीवाणु अनुकूल तापमान पर कई गुना वृद्धि कर किण्वन द्वारा अपना कार्य संपादित करते हैं।
इस प्रकार प्राप्त दही में विटामिन B-12 की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मानव शरीर की जरूरतें पूर्ण होती है। इसके साथ ही लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया हमारे पेट में पहुंचकर अनेक प्रकार के लाभ पहुंचाते हैं तथा हानिकारक जीवाणु की वृद्धि को रोकते हैं।
औद्योगिक उत्पादों में सूक्ष्मजीव
सूक्ष्मजीवों का प्रयोग औद्योगिक उत्पाद जैसे लैक्टिक एसिड, एसिटिक एसिड तथा ऐल्कोहल उत्पन्न करने में किया जाता है। प्रतिजैविक (ऐंटीबायटिक) जैसे पैनीसिलिन का उत्पादन लाभप्रद सूक्ष्मजीवों द्वारा किया जाता है। प्रतिजैविक संक्रामक रोग जैसे डिप्थीरिया, काली खाँसी, तथा निमोनिया की रोकथाम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
औद्योगिक उत्पाद में सूक्ष्मजीव महत्व
औद्योगिक उत्पाद:-
सूक्ष्मजीवों द्वारा औद्योगिक उत्पाद प्राप्त करने के लिए बडे पात्रों में किण्डवन क्रिया कर जाती है जिन्हें किण्वन कहते है।
किण्वन
किण्वन एक जैव-रासायनिक क्रिया है। इसमें जटिल कार्बनिक यौगिक सूक्ष्म सजीवों की सहायता से सरल कार्बनिक यौगिक में विघटित होते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन की आवश्यकता
नहीं पड़ती है। किण्वन के प्रयोग से अल्कोहल या शराब का निर्माण होता है। पावरोटी एवं बिस्कूट बनाने में भी इसका उपयोग होता है। दही, सिरका एवं अन्य रासायनिक पदार्थों के निर्माण में भी इसका प्रयोग होता है। किण्वन की खोज 1797 में क्रूइकशेंक ने की थी फ्लूजर ने 1875 मे इसे अंतरणविकी स्वसन कहा तथा कोस्टेटचेव ने इसे अवायवीय श्वसन कहा। यहाँ आण्विक ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट दो अथवा अधिक सरल अणुओं में विघटित होते हैं।अवायवीय श्वसन (anaerobic respiration) में ग्लूकोज अणुओं के कार्बन अणु पूर्णरूप से CO2, के रूप में मुक्त नहीं होते हैं। इस क्रिया में माइटोकॉन्ड्रिया की आवश्यकता नहीं होती एवं यह क्रिया पूर्ण रूप से कोशिकाद्रव्य में सम्पन्न होती है। अर्थात् अवायवीय श्वसन के सभी विकर कोशिकाद्रव्य में उपस्थित होते हैं। किण्वन एक चयापचय प्रक्रिया है जो एंजाइम की कार्रवाई के माध्यम से कार्बनिक सब्सट्रेट में रासायनिक परिवर्तन पैदा करती है। जैव रसायन में, इसे ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट से ऊर्जा की निकासी के रूप में परिभाषित किया गया है। खाद्य उत्पादन के संदर्भ में, यह मोटे तौर पर किसी भी प्रक्रिया को संदर्भित कर सकता है
जिसमें सूक्ष्मजीवों की गतिविधि खाद्य पदार्थों या पेय के लिए वांछनीय परिवर्तन लाती है। किण्वन के विज्ञान को जीव विज्ञान के रूप में जाना जाता है।
सूक्ष्मजीवों में, किण्विक रूप से कार्बनिक पोषक तत्वों के क्षरण द्वारा एटीपी उत्पादन का प्राथमिक साधन है। नवपाषाण युग से ही मनुष्य ने खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों के उत्पादन के लिए किण्वन का उपयोग किया है। उदाहरण के लिए, किण्वन का उपयोग एक ऐसी प्रक्रिया में संरक्षण के लिए किया जाता है जो ऐसे खट्टे खाद्य पदार्थों में पाया जाता है जैसे कि मसालेदार खीरे, किमची, और दही के साथ-साथ शराब और बीयर जैसे मादक पेय पदार्थों के उत्पादन के लिए। किण्वन मनुष्यों सहित सभी जानवरों के जठरांत्र संबंधी मार्ग के भीतर होता है। किण्वन की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है!
किण्वन प्रणाली
A – किण्वत पेय:- ब्रीवर्स यीस्ट द्वारा किव्वन
आसवन रहित:- वाइन वीयर
आसवन युक्त किण्वन:- विहस्की, रम, ब्रान्डी
B – प्रतिजैविक टंटीबायोटिक:- सूक्ष्मजीवों द्वारा प्राप्त पदार्थ जो अन्य सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को मंद या बंद कर देता उन्हें प्रतिजैविक कहते है।
सर्वप्रथम खोजा गया:– पेनिसिलिन
खोजकर्ता:- एलेक्जण्डर फ्लैमिग
सूक्ष्मजीव का नाम:- पेनिसिलियम नाटेटम कवक
रोचक तथ्य:- फ्लैमिग स्टेफाइलोकोकस जीवाणु
कार्य कर रहा था। एक दिन उसने देखा कि बिना धुली हुई प्लेट पर मोल्ड (कवक) की उपस्थिति के काण जीवाणुओं की वृद्धि रूक गई
अनैस्ट चैन व हावर्ड फ्लौरे ने इसे एक शक्तिशाली प्रतिजैविक के रूप में व्यक्त किया तथा इन्हें फ्लैमिक के साथ 1945 का नोबल पुरूस्कार प्रदान किया।
C एथेनाल:- सैकेरोमाइीज सैरीविसी (यीस्ट) द्वारा
D एन्जाइम:-
1. लाइवेज:- अपमार्जक संरक्षण व कपड़ों पर तेल के दाग-धब्बे हटाने मंे।
2. पेक्टिेनेजिन व प्रोटियोजिस:- बोतल बंद फलो के रस को स्वच्छ/साफ बनाने में।
3 स्ट्रेप्टोकोइनेस:- (स्ट्रप्टोकोकस द्वारा) (जीवाणु) थक्का स्फोटन में )रूधिर वाहिनी में)
कार्बनिक अम्ल:-
क्र.सं. नाम अम्ल सूक्ष्मजीव का प्रकार सूक्ष्मजीव का नाम
1. एैसिटिक अम्ल जीवाणु ऐस्टिेटोक्टर एसिटी
2. ब्यूटिक अम्ल जीवाणु ब्लोस्ट्रिडियम ब्यूटालिकम
3. साइट्रिक अम्ल कवक ऐस्परजिल्स नाइगर
4. लैक्टिक अमल जीवाणु लेकटोबेसिलर्स लैकटाई
जैव सक्रिय अणु:-
साइक्लोस्पोरिन ट्राइकोडर्मा पालीस्पोरम (कवक) प्रतिरक्षी संदमक (निरोधक)
स्टैनिन मोनोस्कम परायूरिअम (यीस्ट) रक्त कालेस्ट्राल कम करने में
(एन्जाइम निरोधक)
प्रतिजैविक
आम उपयोग में, प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक एक पदार्थ या यौगिक है, जो जीवाणु को मार डालता है या उसके विकास को रोकता है। प्रतिजैविक रोगाणुरोधी यौगिकों का व्यापक समूह होता है, जिसका उपयोग कवक और प्रोटोजोआ सहित सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जाने वाले जीवाणुओं के कारण हुए संक्रमण के इलाज के लिए होता है।
एंटीबायोटिक” शब्द का प्रयोग 1942 में सेलमैन वाक्समैन द्वारा किसी एक सूक्ष्म जीव द्वारा उत्पन्न किये गये ठोस या तरल पदार्थ के लिए किया गया, जो उच्च तनुकरण में अन्य सूक्ष्मजीवों के विकास के विरोधी होते हैं। इस मूल परिभाषा में प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाले ठोस या तरल पदार्थ नहीं हैं, जो जीवाणुओं को मारने में सक्षम होते हैं, पर सूक्ष्मजीवों (जैसे गैस्ट्रिक रसऔर हाइड्रोजन पैराक्साइड) द्वारा उत्पन्न नहीं किये जाते और इनमें सल्फोनामाइड जैसे सिंथेटिक जीवाणुरोधी यौगिक भी नहीं होते हैं। कई प्रतिजैविक अपेक्षाकृत छोटे अणु होते हैं, जिनका भार 2000 Da से भी कम होता हैं।
औषधीय रसायन विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ अब अधिकतर एंटीबायोटिक्ससेमी सिंथेटिकही हैं, जिन्हें प्रकृति में पाये जाने वाले मूल यौगिकों से रासायनिक रूप से संशोधित किया जाता है, जैसा कि बीटालैक्टम (जिसमें पेनसिलियम, सीफालॉसपोरिन औरकारबॉपेनम्स के कवक द्वारा उत्पादितपेनसिलिंस भी शामिल हैं) के मामले में होता है। कुछ प्रतिजैविक दवाओं का उत्पादन अभी भी अमीनोग्लाइकोसाइडजैसे जीवित जीवों के जरिये होता है और उन्हें अलग-थलग रख्ना जाता है और अन्य पूरी तरह कृत्रिम तरीकों- जैसे सल्फोनामाइड्स,क्वीनोलोंसऔरऑक्साजोलाइडिनोंससे बनाये जाते हैं। उत्पत्ति पर आधारित इस वर्गीकरण- प्राकृतिक, सेमीसिंथेटिक और सिंथेटिक के अतिरिक्त सूक्ष्मजीवों पर उनके प्रभाव के अनुसार प्रतिजैविक को मोटे तौर पर दो समूहों में विभाजित किया जा सकता हैं: एक तो वे, जो जीवाणुओं को मारते हैं, उन्हें जीवाणुनाशक एजेंट कहा जाता है और जो बैक्टीरिया के विकास को दुर्बल करते हैं, उन्हें बैक्टीरियोस्टेटिक एजेंट कहा जाता है।
वाहितमल उपचार में सुक्षम जीव
वाहित मल उपचार, या अपशिष्ट जल उपचार, एक प्रकार का अपशिष्ट जल उपचार है जिसका उद्देश्य अपजल से प्रदूषकों को निकालना है जो निकटवर्ती वातावरण में निर्वहन के लिए उपयुक्त है या एक अभीष्ट पुनःउपयोग के लिए उपयुक्त है, जिससे कच्चे अपजल स्राव से जल प्रदूषण को रोका जा सके।
सीवेज में घरों और व्यवसायों से अपशिष्ट जल होता है और संभवतः पूर्व-उपचारित औद्योगिक अपजल होता है। चुनने के लिए बड़ी संख्या में अपजल उपचार प्रक्रियाएं हैं। ये विकेंद्रीकृत प्रणालियों से लेकर बड़े केंद्रीकृत प्रणालियों तक हो सकते हैं जिनमें नली और पंप स्टेशनों (नाली व्यवस्था) का तंत्र शामिल होता है जो सीवेज को एक उपचार संयंत्र तक पहुंचाते हैं। जिन शहरों में एक संयुक्त नाली है, उनके लिए नाली शहरी अपवाह (तूफान) को अपजल उपचार संयंत्र में भी ले जाएगा। सीवेज उपचार में अक्सर दो मुख्य चरण शामिल होते हैं, जिन्हें प्राथमिक और द्वितीयक उपचार कहा जाता है, जबकि उन्नत उपचार में पॉलिशिंग प्रक्रियाओं और पोषक तत्वों को हटाने के साथ एक तृतीयक उपचार चरण भी शामिल होता है। माध्यमिक उपचार, वायुजीवी या अवायुजीवी जैविक प्रक्रियाओं का उपयोग करके अपजल से कार्बनिक पदार्थ (जैविक ऑक्सिजन मांग के रूप में मापा जाता है) को कम कर सकता है।
वाहित मल उपचार का उद्देश्य – समुदायों के लिए कोई विपद पैदा किए बिना या नुकसान पहुंचाए बिना निष्कासनयोग्य उत्प्रवाही जल को उत्पन्न करना और प्रदूषण को रोकना है।
बायोगैस
बायोगैस ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है, जिसका उपयोग बार-बार किया जा सकता है. इसका इस्तेमाल घरेलू तथा कृषि कार्यों के लिए भी किया जाता है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं कि बायोगैस क्या है, कैसे बनती है, इसके क्या घटक है और इसका कहां-कहां इस्तेमाल किया जा सकता है
ऊर्जा दुनिया भर में सबसे बड़ा संकट है और खासतौर पर भारत के ग्रामीण इलाकों में जहां वनों की कटाई बढ़ रही है और ईंधन की उपलब्धता कम हो गई है. बायोगैस ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है, जिसका उपयोग बार-बार किया जा सकता है. क्या आप जानते हैं कि इसका इस्तेमाल घरेलू तथा कृषि कार्यों के लिए भी किया जा सकता है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते है कि बायोगैस क्या होती है, कैसे बनती है, इसके क्या घटक है और इसका कहां-कहां इस्तेमाल किया जा सकता है इत्यादि.
बायोगैस के उत्पादन में सूक्ष्मजी
बायोगैस का उत्पादन कैसे होता है
बायोगैस निर्माण की प्रक्रिया दो चरणों में होती है: अम्ल निर्माण स्तर और मिथेन निर्माण स्तर. प्रथम स्तर में गोबर में मौजूद अम्ल निर्माण करनेवाले बैक्टीरिया के समूह द्वारा कचरे में मौजूद बायो डिग्रेडेबल कॉम्प्लेक्स ऑर्गेनिक कंपाउंड को सक्रिय किया जाता है. इस स्तर पर मुख्य उत्पादक ऑर्गेनिक एसिड होते हैं, इसलिए इसे एसिड फॉर्मिंग स्तर कहा जाता है. दूसरे स्तर में मिथेनोजेनिक बैक्टीरिया को मिथेन गैस बनाने के लिए ऑर्गेनिक एसिड के ऊपर सक्रिय किया जाता है. हालांकि जानवरों के गोबर को बायोगैस प्लांट के लिए मुख्य कच्चा पदार्थ माना जाता है, लेकिन इसके अलावा मल,मुर्गियों की बीट और कृषि जन्य कचरे का भी इस्तेमाल किया जाता है.
उत्पादन में सूक्ष्मजीव
यह अवायवीय जीवाणुओं द्वारा अवायवीय वातावरण में मेथेनोजन (methanogens) जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न होती है मेथेनोबैक्टीरिया (Methanobacteria) इनमें से एक है। इसे गोबर गैस संयन्त्र में तैयार किया जाता है। इसके लिए गोबर की कर्दम (slurry of dung) का उपयोग करते हैं।
बायोगैस संयंत्र के भाग
बायोगैस संयंत्र के दो मुख्य मॉडल हैं : फिक्स्ड डोम (स्थायी गुंबद) टाइप और फ्लोटिंग ड्रम टाइप
उपर्युक्त दोनों मॉडल के निम्नलिखित भाग होते हैं :
1) डाइजेस्टर: यह बायोगैस संयंत्र का महत्वपूर्ण भाग है जो धरातल के निचे बनाया जाता है एवं बीच में एक विभाजन दिवार से दो कक्षों में बांटा जाता है. यह सामान्यत: सिलेंडर के आकार का होता है और ईंट-गारे का बना होता है. इसमें विभिन्न तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया होती है और गोबर व पानी के घोल का किण्वित (fermentation) होता है.
2) गैसहोल्डर या गैस डोम: यह एक स्टील ड्रम के आकार का होता है जिसे डाइजेस्टर पर उल्टा इस प्रकार से फिक्स किया जाता है ताकि ये आसानी से निचे या ऊपर की दिशा में फ्लोट हो सके. इसी डोम के शीर्ष पर एक गैस होल्डर लगा होता है जो पाइप द्वारा स्टोव से जुड़ा होता है. गैस जब बनती है तो सबसे पहले डोम में एकत्रित होती है और फिर बाद में होल्डर के द्वारा पाइपलाइन के माध्यम से गैस चूल्हे के बर्नर तक पहुंचती है.
3) स्लरीमिक्सिंगटैंक: इसी टैंक में गोबर को पानी के साथ मिला कर पाइप के जरिये डाइजेस्टर में भेजा जाता है.
4) आउटलेटटैंक और स्लरीपिट: सामान्यत: फिक्स्ड डोम टाइप में ही इसकी व्यवस्था रहती है, जहां से स्लरी को सीधे स्लरी पिट में ले जाया जाता है. फ्लोटिंग ड्रम प्लांट में इसमें कचरों को सुखा कर सीधे इस्तेमाल के लिए खेतों में ले जाया जाता है.
5) ओवर फ्लो टैंक: यह टैंक डाइजेस्टर में किण्वित हुए घोल को बहार निकालने में काम आता है.
6) वितरण पाइप लाइन: जरुरत की जगह पर गैस का वितरण करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. इस बात का भी ध्यान दिया जाता है कि वितरण पाइप लाइन ज्यादा लम्बी ना हो.
जैव नियंत्रण कारक
पादप रोगों तथा पीड़कों के नियंत्रण के लिए जैव वैज्ञानिक विधि का प्रयोग ही जैव नियंत्रण है। आधुनिक समाज में यह समस्याएँ, रसायनों, कीटनाशियों तथा पीड़कनाशियों के बढ़ते हुए प्रयोगों की सहायता से नित्रित की जाती हैं। ये रसायन मनुष्यों तथा जीव जंतुओं के लिए अत्यंत ही विषैले तथा हानिकारक हैं।
जैव नियंत्रण कारक के रूप में सूक्ष्मजीव
पादप रोगों तथा पीड़कों के नियंत्रण के लिए जैव वैज्ञानिक विधि का प्रयोग ही जैव नियंत्रण है। आधुनिक समाज में यह समस्याएँ, रसायनों, कीटनाशियों तथा पीड़कनाशियों के बढ़ते हुए प्रयोगों की सहायता से नित्रित की जाती हैं। ये रसायन मनुष्यों तथा जीव जंतुओं के लिए अत्यंत ही विषैले तथा हानिकारक हैं। ये पर्यावरण (मृदा, भूमिगत जल) को प्रदूषित करते तथा फलों, साग-सब्जियों और फसलों पर भी हानिकारक प्रभाव डालते हैं। खरपतवार नाशियों का प्रयोग खरपतवार को हटाने में किया जाता है।
पीड़क (Pests) तथा रोगों का जैव नियंत्रण-कृषि में, पीड़कों के नियंत्रण की यह विधि रसायनों के प्रयोग की तुलना में प्राकृतिक परभक्षण (Predator) पर अधिक निर्भर करती है। आर्गेनिक फॉर्मर (कृषक) के अनुसार जैव विविधता ही स्वास्थ्य की कुंजी है। भूदृश्य पर जितनी अधिक किस्में होंगी, वह उतनी ही अधिक स्थायित्व प्रदान करती हैं। अतः आर्गेनिक फार्म (कृषक) एक तंत्र को विकसित करने के लिए कार्य करते हैं, जिसमें कीट, उन्मीलित न हो, वे इसके बजाय उन्हें नियंत्रणीय स्तर पर एक जीवित तथा कंपायमान पारिस्थितिक तंत्र के भीतर, संतुलन तथा जाँच के जटिल तंत्र का निर्माण करते हैं। इस प्रकार जैव नियंत्रण विधि से विषाक्त रसायन तथा पीड़कनाशियों पर हमारी जो आश्रित है। वह काफी हद तक घट जाएगी कुछ प्रमुख जीव जो पीड़क (Pest) को नियंत्रित करते हैं, निम्नलिखित हैं
(a) Bacillus thurigiensis जो Butterfly caterpillar के नियंत्रण में किया जाता है।
(b) Trichoderma एक fungus है जो विभिन्न पादप रोगजनकों के प्रभावशील जैव नियंत्रण में भाग लेता है। (c)Baculoviresis ऐसे रोगजनक हैं जो कीटों तथा संधिपादों (Arthropods) पर नियंत्रण करते हैं।
जैव उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव
जैव उर्वरक
भूमि की उर्वरता को टिकाऊ बनाए रखते हुए सतत फसल उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने प्रकृतिप्रदत्त जीवाणुओं को पहचानकर उनसे बिभिन्न प्रकार के पर्यावरण हितैषी उर्वरक तैयार किये हैं जिन्हे हम जैव उर्वरक (बायोफर्टिलाइजर) या ‘जीवाणु खाद’ कहते है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है की जैव उर्वरक जीवित उर्वरक है जिनमे सूक्ष्मजीव विद्यमान होते है।
फसलों में जैव उर्वरकों इस्तेमाल करने से वायुमण्डल में उपस्थित नत्रजन पौधो को (अमोनिया के रूप में) सुगमता से उपलब्ध होती है तथा भूमि में पहले से मौजूद अघुलनशील फास्फोरस आदि पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में परिवर्तित होकर पौधों को आसानी से उपलब्ध होते हैं। चूंकि जीवाणु प्राकृतिक हैं, इसलिए इनके प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और पर्यावरण पर विपरीत असर नहीं पड़ता। जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों के पूरक है, विकल्प कतई नहीं है। रासायनिक उर्वरकों के पूरक के रूप में जैव उर्वरकों का प्रयोग करने से हम बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते है।
वास्तव में जैव उर्वरक विशेष सूक्ष्मजीवों एवं किसी नमी धारक पदार्थ के मिश्रण हैं। विशेष सूक्ष्म जीवों की निर्धारित मात्रा को किसी नमी धारक धूलीय पदार्थ (चारकोल, लिग्नाइट आदि) में मिलाकर जैव उर्वरक तैयार किये जाते हैं। यह प्रायः ‘कल्चर’ के नाम से बाजार में उपलब्ध है। वास्तव में जैव उर्वरक एक प्राकृतिक उत्पाद है। इनका उपयोग विभिन्न फसलों मे एवं स्फूर की आंशिक पूर्ति हेतु किया जा सकता है। इनके उपयोग का भूमि पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि ये भूमि के भौतिक व जैविक गुणों में सुधार कर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होते हैं। जैविक खेती में जैव उर्वरकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
जीवाणु खाद का प्रभाव धीरे-धीरे होता है। हमारे खेत की एक ग्राम मिट्टी में लगभग दो-तीन अरब सूक्ष्म जीवाणु पाये जाते हैं जिसमें मुख्यतः बैक्टिरीया, फफूंद, कवक, प्रोटोजोआ आदि होते हैं जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने व फसलोत्पादन की वृद्धि में अनेक कार्य करते हैं।
नील-हरित कवक एक जैव-उर्वरक है।
जैव उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव
वास्तव में जैव उर्वरक विशेष सूक्ष्मजीवों एवं किसी नमी धारक पदार्थ के मिश्रण हैं। विशेष सूक्ष्म जीवों की निर्धारित मात्रा को किसी नमी धारक धूलीय पदार्थ (चारकोल, लिग्नाइट आदि) में मिलाकर जैव उर्वरक तैयार किये जाते हैं। यह प्रायः ‘कल्चर’ के नाम से बाजार में उपलब्ध है। वास्तव में जैव उर्वरक एक प्राकृतिक उत्पाद है।
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